नोआखाली से कश्मीर तक: पीड़ा झेलने वाले हिन्दू आतंकी क्यों नहीं बने?
भारत में आतंकियों के राजनीतिक आका का एक विलाप अक्सर एक दोहराया जाता है —
“अगर हालात खराब हों, न्याय न मिले, उत्पीड़न हो, तो कोई भी आतंकी बन सकता है।”
यह तर्क सुनने में भावुक लगता है, पर इतिहास इस कथन को पूरी तरह चुनौती देता है।
कश्मीर से लेकर नोआखाली, पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक, हजारों अत्याचार झेलने के बावजूद भारत के अनेक समुदाय कभी आतंकवाद की ओर नहीं गए।
प्रश्न इसलिए उठता है—
अगर हालात ही आतंकी बनाते हैं, तो कश्मीरी पंडित आतंकी क्यों नहीं बने?
नोआखाली नरसंहार में बचे हिन्दू क्यों नहीं बने?
पाकिस्तान-बांग्लादेश के अत्याचार झेलने वाले अल्पसंख्यक आतंकी क्यों नहीं बने?
रामभक्त आतंकी क्यों नहीं बने?
यह लेख इन्हीं सवालों का तथ्यपूर्ण, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
क्या परिस्थितियाँ आतंकवाद पैदा करती हैं या विचारधारा?
आतंकवाद पर वैश्विक शोध, विशेषकर RAND Corporation, Stanford Center for International Security, और भारत की NIA की रिपोर्ट, एक ही निष्कर्ष देती है:
परिस्थितियाँ कभी भी अकेले आतंकवाद नहीं बनातीं। आतंकवाद विचारधारा, धार्मिक-राजनीतिक ब्रेनवॉश और संगठित कट्टरपंथ से पैदा होता है।
अगर हालात ही कारण होते, तो दुनिया के कई समुदाय सबसे बड़े आतंकी संगठन बन जाते। पर ऐसा नहीं हुआ।
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कश्मीरी पंडित सबसे बड़ा खंडन
कश्मीरी पंडितों पर 1990 में जो हुआ, वह आधुनिक भारत का सबसे बड़ा मानवीय अपराध था, घर जलाए गए, महिलाओं के साथ क्रूरताएँ, बच्चों को मारकर सडक़ों पर टांगा गया, ‘Raliv, Chaliv ya Galiv’ जैसी धमकियाँ, अपने देश में शरणार्थी बनने की त्रासदी, इन परिस्थितियों से अधिक भयावह परिस्थितियाँ दुनिया में कम ही मिलेंगी।
लेकिन क्या कश्मीरी पंडितों का कोई आतंकी संगठन बना?
क्या उन्होंने हथियार उठाए?
क्या उन्होंने “बदला” लेने की राह चुनी?
नहीं। क्यों?
क्योंकि उनके समाज का सामूहिक चरित्र हिंसा-आधारित नहीं है। उनके सांस्कृतिक मूल में धर्म, ज्ञान, परंपरा और अहिंसक संघर्ष है। इसलिए सबसे क्रूर परिस्थितियों के बावजूद आतंकवाद जन्म नहीं ले सका।
नोआखाली नरसंहार के पीड़ित हिन्दू क्यों नहीं बने आतंकी?
1946, नोआखाली नरसंहार:
- हिन्दू महिलाओं का सामूहिक उत्पीड़न
- मंदिरों का विनाश
- हजारों परिवारों की हत्या
- जबरन धर्मांतरण
- घरों में आगजनी
यह सब योजनाबद्ध तरीके से हुआ। लेकिन क्या इसका परिणाम आतंकवाद निकला? नहीं।
क्योंकि पीड़ित समुदाय का सामाजिक स्वभाव “सामूहिक हिंसा” पर आधारित नहीं था। किसी धार्मिक कट्टरपंथ ने उन्हें “जन्नत” या “शहादत” का वादा नहीं किया। किसी वैश्विक जिहादी नेटवर्क ने उन्हें ट्रेनिंग नहीं दी। यानी हालात नहीं, विचारधारा आतंकवाद पैदा करती है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित हिन्दू आतंकी क्यों नहीं बने?
1947 के बाद भारत के बाहर हिन्दू सबसे ज्यादा अत्याचार झेलने वाला समुदाय है—
- पाकिस्तान में मंदिर तोड़े जाते हैं
- बेटियों का सामूहिक अपहरण होता है
- जबरन धर्मांतरण रोजमर्रा की बात
- बांग्लादेश में जनसंख्या 23% से गिरकर 7% रह गई
- दंगे, टारगेट किलिंग, धार्मिक हिंसा नियमित
इन परिस्थितियों में अत्याचार इतना अधिक है कि कोई अन्य समुदाय होता तो दुनिया का सबसे बड़ा “रिएक्टिव आतंकी संगठन” बन जाता।
लेकिन यहाँ भी वही सवाल—एक भी हिन्दू आतंकी संगठन क्यों नहीं पैदा हुआ? क्योंकि हिन्दू दर्शन “प्रतिकार से अधिक पुनर्निर्माण” पर आधारित है। वह हिंसा के मार्ग को स्थायी समाधान मानता ही नहीं।
हजारों रामभक्तों की हत्या हुई, पर एक भी ‘रामभक्त आतंकी’ क्यों नहीं बना?
अयोध्या आंदोलन में—
- हजारों रामभक्तों को गोली मारी गई
- दंगों में जलाया गया
- घर लूटे गए
- जनसभाओं पर हमले हुए
- भावनात्मक, धार्मिक और राजनीतिक अन्याय चरम पर था।
लेकिन फिर भी—
कोई “रामभक्त आतंकी संगठन” आज तक क्यों नहीं बना?
इतिहास के और उदाहरण: जहाँ हालात अत्याचारपूर्ण थे, पर आतंकवाद नहीं जन्मा
1. 1984 सिख दंगे
2. गुजरात दंगे के पीड़ित
3. नक्सली हिंसा में मारे गए ग्रामीण
4. पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदाय
5. दलित अत्याचार
हालात नहीं, विचारधारा आतंकी बनाती है
इसका अर्थ स्पष्ट है—
“आतंकवाद परिस्थितियों की प्रतिक्रिया नहीं, कट्टरपंथी विचारधारा का परिणाम है।”
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