क्या मदरसा शिक्षा भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई है? एक बेबाक और प्रमाणिक विश्लेषण
भारत की शिक्षा व्यवस्था कई धाराओं में बंटी है—सरकारी स्कूल, निजी स्कूल, मिशनरी स्कूल, गुरुकुल और मदरसे।
लेकिन “मदरसा” शब्द जब सुरक्षा बहस में आता है, तो तुरंत भावनाएँ गर्म हो जाती हैं। मुसलमान इसे “हमले” के रूप में देखते हैं, जबकि हिंदू पक्ष इसे “कट्टरपंथ का गढ़” मान लेता है।
लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा न भावनाओं से चलती है, न प्रचार से—यह ठोस तथ्यों, संरचनात्मक जोखिम और व्यवहारिक विश्लेषण से संचालित होती है।
इसीलिए यह प्रश्न जरूरी है: क्या भारत में मदरसा शिक्षा आज एक सुरक्षा-जोखिम बन गई है?
मदरसों की ऐतिहासिक भूमिका: धार्मिक संस्था, न कि सुरक्षा संस्था
भारत में मदरसों का मूल उद्देश्य हमेशा धार्मिक ज्ञान रहा —कुरान, हदीस, अरबी-फारसी भाषा और धार्मिक कानून (Fiqh) की शिक्षा।
मदरसा मॉडल गरीब मुस्लिम समुदायों के लिए मुफ्त शिक्षा और भोजन का स्रोत भी रहा। समस्या वहाँ नहीं है। समस्या वहाँ है जहाँ यह मॉडल आधुनिक भारत से अलग-थलग हो गया है।
खतरा कहाँ पैदा होता है?
तीन स्पष्ट बिंदु — जिन्हें नकारना असंभव है
पहला जोखिम : अनरजिस्टर्ड और अनियंत्रित मदरसों की भरमार
UP, बंगाल, असम, केरल में हजारों मदरसे—बिना सरकारी पंजीकरण, बिना निरीक्षण, बिना बाल सुरक्षा मानक,बिना फंडिंग पारदर्शिता चल रहे हैं।
किसी भी संस्था में निगरानी का अभाव = सुरक्षा जोखिम. यह नियम हर धार्मिक संस्था पर लागू होता है।
दूसरा जोखिम : एकांगी धार्मिक शिक्षा और आधुनिक विषयों से दूरी
कई मदरसे STEM विषयों (Science, Technology, Engineering, Math) के बिना चलते हैं। बच्चे 8–10 वर्षों तक केवल धर्म सीखते हैं।
इससे एक मानसिक ढाँचा बनता है:
👉दुनिया “हलाल–हराम” में बंटी है
👉गैर-मुस्लिम सामाजिक संपर्क कम
👉राष्ट्र और संविधान की समझ न्यूनतम
ऐसी मिट्टी कट्टरपंथ के लिए अधिक उपयुक्त होती है। यह किसी धर्म की आलोचना नहीं — यह शिक्षा-संरचना का जोखिम विश्लेषण है।
तीसरा जोखिम : अवैध विदेशी फंडिंग और वैचारिक घुसपैठ
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार कई मदरसों में:
👉विदेश से संदिग्ध फंडिंग
👉हवाला चैनलों का उपयोग
👉कट्टरपंथ प्रेरित NGO
👉विदेशी उपदेशक और प्रशिक्षक की उपस्थिति पाई गई है।
इसका अर्थ यह नहीं कि हर मदरसा संदिग्ध है—इसका अर्थ यह है कि सिस्टम में घुसपैठ की संभावना अधिक है।
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क्या सभी मदरसे खतरा हैं?
भारत के कई मदरसे शांतिपूर्ण और पारंपरिक हैं। वे बच्चों को आश्रय देते हैं, भोजन देते हैं और धार्मिक शिक्षा देते हैं। लेकिन “सुरक्षा जोखिम” की बात करते समय एक भी प्रतिशत लापरवाही महंगी पड़ती है। यह “समुदाय” नहीं—“संस्थागत जोखिम” का मुद्दा है।
अंतरराष्ट्रीय तुलना : कट्टरपंथ में मदरसों की भूमिका क्यों सवालों में आती है?
पाकिस्तान : 80 के दशक के बाद से तालिबान और कई आतंकी संगठनों की भर्ती मदरसों से हुई।
बांग्लादेश : कई क्वॉमी मदरसों के हिफाज़त-ए-इस्लाम से राजनीतिक संबंध पाए गए।
अफ़ग़ानिस्तान : तालिबान की जड़ें मदरसा-प्रणाली में गहरी थीं।
भारत का संदर्भ अलग है, लेकिन मॉडल का जोखिम समान है। इसलिए भारत को पहले से ही एहतियात बरतना चाहिए।
राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों का दृष्टिकोण (सार)
IB, NIA, ATS और राज्य पुलिस की रिपोर्टों में यह कहा गया है:
👉मदरसे स्वयं खतरा नहीं, लेकिन उनमें घुसपैठ आसान है।
👉अनियंत्रित मदरसा मॉडल सुरक्षा के लिए संभावित जोखिम है।
👉आधुनिकीकरण और पंजीकरण अनिवार्य होना चाहिए।
यह निष्कर्ष समुदाय के खिलाफ नहीं—व्यवस्था की कमजोरी के खिलाफ है।
सबसे बड़ा खतरा : बच्चों का मुख्यधारा से कटाव
जब एक बच्चा 5 से 15 साल तक विज्ञान से दूर, संविधान से दूर, भारतीय इतिहास से दूर, नागरिक कर्तव्यों से दूर, आधुनिक दुनिया से दूर, केवल एक धार्मिक कोष में पनपता है, तो वह सामाजिक विविधता, लोकतांत्रिक सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वंचित रह जाता है।
कट्टरपंथ की जड़ धर्म नहीं —कट्टरपंथ की जड़ एकांगी शिक्षा और सामाजिक अलगाव है।
क्या मोदी–योगी सरकारें इसे इसलिए उठाती हैं कि यह “मुस्लिम मुद्दा” है?
राजनीति अपना अलग खेल खेलती है,परंतु—मदरसा सुधार एक वास्तविक और आवश्यक मुद्दा है।
इसे पूरी तरह राजनीति कहकर खारिज करना बुद्धिमानी नहीं। इसे केवल सुरक्षा मुद्दा कहना भी गलत।
राष्ट्रहित और अल्पसंख्यक अधिकार दोनों को संतुलित रखकर
सभी मदरसों का अनिवार्य पंजीकरण
👉 फंडिंग का पूर्ण ऑडिट
👉 STEM + NCERT विषयों का समावेश
👉 शिक्षक-प्रशिक्षण अनिवार्य
👉 बाल सुरक्षा और POCSO अनुपालन
👉 बोर्ड परीक्षा में एकीकृत हिस्सा
👉 कोई भी अवैध गतिविधि पर ज़ीरो टॉलरेंस
इससे न केवल सुरक्षा जोखिम घटेगा, बल्कि मुस्लिम बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित होगा।
यही भारत के भविष्य और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे ईमानदार, तार्किक और प्रमाणिक निष्कर्ष है।





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