कांग्रेस ने कब-कब मुस्लिम कट्टरपंथ के आगे घुटने टेके?
भारत का लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है, लेकिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक ऐसी पार्टी रही जिसने इस शब्द को “वोटबैंक तुष्टिकरण” में बदल दिया — वह थी कांग्रेस।
नेहरू से लेकर सोनिया गांधी तक, कांग्रेस के अधिकांश शासनकाल में मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों, धार्मिक दबावों और वोटबैंक समीकरणों ने नीति-निर्धारण पर निर्णायक असर डाला।
इसे भी पढ़ें : -
1. जवाहरलाल नेहरू काल (1947–1964): तुष्टीकरण की वैचारिक नींव
हज सब्सिडी की शुरुआत (1959)
Haj Committee Act, 1959 के तहत भारत सरकार ने हज यात्रियों के लिए सरकारी अनुदान शुरू किया। यह एक धार्मिक सहायता थी, जो किसी अन्य धर्म को नहीं मिली। इसने “राज्य द्वारा धार्मिक सहायता” की परंपरा आरंभ की।
सोमनाथ मंदिर प्रकरण (1951)
नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से दूर रहने की सलाह दी। इसे मुसलमानों की भावनाओं को शांत करने का प्रयास कहा गया, जबकि यह पुनर्निर्माण विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं से मुक्ति का प्रतीक था।
वक्फ बोर्ड का गठन (1954)
Waqf Act, 1954 के माध्यम से कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों को एक कानूनी संरक्षण प्रदान किया। यह अधिनियम “धार्मिक संपत्ति के सरकारी प्रबंधन” की संवैधानिक मर्यादाओं को धुंधला करता है। आलोचक मानते हैं कि यह हिंदू धार्मिक ट्रस्टों पर समान नीति न लागू करने का सीधा उदाहरण था।
नेहरूकाल में तुष्टीकरण की संस्थागत शुरुआत हुई — राज्य ने धर्म से दूरी नहीं, बल्कि चयनित धर्मों से समीपता बनाई।
2. इंदिरा गांधी काल (1966–1977, 1980–1984): मुस्लिम वोटबैंक का संस्थागत विस्तार
- यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा रोक दी गई, ताकि मुस्लिम लॉ में सुधार न हो।
- धार्मिक नेताओं के विरोध के डर से मुस्लिम सामाजिक सुधार ठप रहे।
- दक्षिण भारत में मुस्लिम लीग और अन्य धार्मिक दलों से परोक्ष गठबंधन किए गए।
➡️ इंदिरा युग में कांग्रेस ने “धर्म आधारित निर्वाचन रणनीति” अपनाई, जिससे “समान नागरिकता” की अवधारणा कमजोर हुई.
3. राजीव गांधी काल (1984–1989): कट्टरपंथ के आगे खुला समर्पण
शाहबानो प्रकरण (1986)
सुप्रीम कोर्ट के आदेश (Shah Bano, 1985) ने मुस्लिम तलाकशुदा महिला को रख-रखाव का अधिकार दिया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के बाद, राजीव गांधी ने Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986 पारित किया, जिसने कोर्ट के निर्णय को पलट दिया।
➡️ यह “न्यायपालिका पर कट्टरपंथी दबाव की जीत” थी।
सलमान रुश्दी की The Satanic Verses पर प्रतिबंध (1988)
कट्टर मुस्लिम संगठनों के दबाव में यह पुस्तक प्रतिबंधित कर दी गई, जबकि संविधान की धारा 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देती है।
➡️ न राजीव गांधी ने वोटबैंक बचाने के लिए संविधान की आत्मा की बलि दी।
4. नरसिंहराव काल (1991–1996): कानून के जरिये appeasement
Places of Worship Act, 1991
15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार सभी पूजास्थलों की धार्मिक पहचान फ्रीज़ कर दी गई।
इससे कश्मीरी और मुगलकाल के धार्मिक अन्यायों की पुनर्समीक्षा कानूनी रूप से असंभव बना दी गई। केवल अयोध्या अपवाद थी।
➡️ यह अधिनियम कांग्रेस की “कानूनी तुष्टीकरण नीति” का शिखर था।
बाबरी विवाद पर निष्क्रियता
बाबरी संरचना के वर्षों तक समाधान न निकालना और घटना के बाद हिंदू संगठनों को ही दोषी ठहराना — कांग्रेस की anti-majority stance को दर्शाता है।
5. सोनिया गांधी – मनमोहन सिंह (UPA I & II, 2004–2014): संस्थागत तुष्टीकरण का दशक
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (1992 में अधिनियमित, UPA में सशक्त)
National Commission for Minorities Act, 1992 को UPA सरकार ने अत्यधिक अधिकार दिए।
आयोग को शिक्षा, रोजगार, नीति-निर्माण, बजट और जनकल्याण में विशेष हस्तक्षेप की अनुमति दी गई। आयोग का संचालन लगभग पूरी तरह मुस्लिम प्रतिनिधियों के हाथों में रहा।
नतीजा: सरकार “Minority-First” एजेंडा में बदल गई।
सच्चर समिति (2006)
रिपोर्ट में मुसलमानों की सामाजिक स्थिति पर विशेष ध्यान दिया गया। रिपोर्ट ने मुस्लिम-बहुल जिलों को विशेष सरकारी योजनाओं (MSDP) के लिए प्राथमिकता देने की सिफारिश की।
यह धर्म आधारित विकास नीति थी, न कि सामाजिक-आर्थिक न्याय की योजना।
रंगनाथ मिश्रा आयोग (2007–2009)
आयोग ने अनुशंसा की कि अल्पसंख्यकों को 15% आरक्षण दिया जाए, जिसमें 10% मुसलमानों को। संविधान धर्म आधारित आरक्षण को निषिद्ध करता है; इस सिफारिश ने उस सीमा को तोड़ा।
मनमोहन सिंह का बयान (2006)
“भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।”
यह वक्तव्य किसी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए संवैधानिक विसंगति था।
4.5% अल्पसंख्यक उप-कोटा (2011–12)
OBC के 27% आरक्षण में से 4.5% “अल्पसंख्यकों” को दिया गया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे धर्म आधारित आरक्षण बताते हुए रद्द कर दिया।
Communal Violence Bill (2011)
ड्राफ्ट में बहुसंख्यक समुदाय को संभावित “दोषी वर्ग” के रूप में परिभाषित किया गया। यह बिल सीधे-सीधे हिंदू समाज को अपराधी सिद्ध करने वाला कानूनी औज़ार बनता।
➡️ निष्कर्ष: UPA काल में कांग्रेस ने तुष्टीकरण को प्रशासनिक संस्थाओं, आयोगों और आरक्षण नीतियों में स्थायी रूप से शामिल कर दिया।
समग्र कालक्रम: कांग्रेस का Appeasement Evolution
काल प्रधानमंत्री प्रमुख कदम
1947–64 नेहरू वक्फ बोर्ड, हज सब्सिडी, UCC पर चुप्पी
1966–84 इंदिरा मुस्लिम लॉ सुधार रोकना
1984–89 राजीव शाहबानो कानून, सलमान रुश्दी
1991–96 नरसिंह राव Places of Worship Act
2004–14 सोनिया–मनमोहन अल्पसंख्यक आयोग, सच्चर कमेटी
राष्ट्रवादी विश्लेषण
1. कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता को “मुस्लिम हित-संतुलन” के समानार्थी बना दिया।
2. समान नागरिक संहिता (UCC) को 70 वर्षों तक टाला गया, ताकि पर्सनल लॉ असुधारित रहे।
3. मुस्लिम महिलाओं, शिक्षा और सुधार पर ठोस नीति नहीं बनी।
4. वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक आयोग जैसी संस्थाएँ “संविधान की समानता भावना” के विपरीत बनीं।
5. संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 44 का क्रमिक उल्लंघन हुआ।
➡️ संक्षेप में: कांग्रेस की नीति धर्म आधारित “राज्य संरक्षण” थी, न कि नागरिक आधारित समानता।
नेहरू से सोनिया गांधी तक कांग्रेस की यात्रा इस बात का प्रमाण है कि
“जहाँ राष्ट्रहित और वोट-बैंक में टकराव हुआ, वहाँ कांग्रेस ने राष्ट्रहित का गला घोंटा।”
यह धर्मनिरपेक्षता नहीं, बल्कि संवैधानिक पाखंड था, जिसने न तो मुसलमानों का उत्थान किया, न ही हिंदुओं में विश्वास जगाया। आज समय है कि भारत “धर्म के बजाय नागरिकता आधारित नीतियों” पर लौटे।
CTA (Social Media Caption)
“वक्फ बोर्ड से सच्चर तक — कांग्रेस ने हर दौर में मुस्लिम कट्टरपंथ के सामने झुककर राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाया। अब वक्त है संविधान की सच्ची समानता को स्थापित करने का।”
#CongressAppeasement #ShahBanoCase #SacharCommittee #NationFirst #IndiaPolitics #WaqfBoard






Comments
Post a Comment
Thanks for your Comments.