वन्देमातरम् : इतिहास, विवाद और इस्लाम से जुड़ा सच

 

वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत का इतिहास और विवाद

“वन्दे मातरम्” — यह मात्र एक गीत नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता की आत्मा का प्रतीक है। परंतु यह वही गीत है, जिसने औपनिवेशिक भारत से लेकर आज तक धर्म और राष्ट्रवाद के बीच गहरी बहस को जन्म दिया। क्या यह इस्लाम के विरुद्ध है? क्या इसका रचनात्मक उद्देश्य धार्मिक था? आइए, प्रमाणिक तथ्यों के साथ इसकी परतें खोलते हैं.

1. वन्दे मातरम् का जन्म और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

इस गीत के रचयिता बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय थे, जिन्होंने इसे 1870 के दशक में लिखा। 1882 में यह गीत उनके उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में प्रकाशित हुआ। उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, और बंगाल में विद्रोह की चिंगारियाँ सुलग रही थीं।

‘आनन्दमठ’ का कथानक सन्यासी विद्रोह (Sannyasi Rebellion, 1770s) पर आधारित था — जहाँ साधु-संत विदेशी शासन के विरुद्ध हथियार उठाते हैं। यही गीत उनकी प्रेरणा का स्रोत बना।

 "वन्दे मातरम्" का शाब्दिक अर्थ है — “हे माँ, मैं तुझे नमन करता हूँ।”

यहाँ “माँ” से तात्पर्य भारत माता या मातृभूमि से है, न कि किसी धार्मिक देवी से।

2. राष्ट्रगीत बनने की यात्रा

1896 में रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार गाया।

1905 के बंग-भंग आंदोलन में यह गीत एकजुटता और स्वराज का नारा बना — “वन्दे मातरम्” की ध्वनि हर रैली में गूंजने लगी।

1950 में संविधान सभा ने इसे भारत का राष्ट्रीय गीत (National Song) घोषित किया, जबकि “जन गण मन” को राष्ट्रीय गान का दर्जा मिला।

3. शाब्दिक अर्थ (Linguistic Meaning)

संस्कृत मूल:

“वन्दे” + “मातरम्”

वन्दे (वन्द् धातु) का अर्थ है — मैं नमन करता हूँ, I bow to, I salute.

मातरम् (माता शब्द का द्वितीया रूप) का अर्थ — माँ को (to the mother)।

इस प्रकार पूरा वाक्यांश “वन्दे मातरम्” का अर्थ है — “मैं अपनी माँ को नमन करता हूँ।”

“I bow to thee, Mother.”

गीत में “माँ” से तात्पर्य मातृभूमि — भारतभूमि से है, न कि किसी विशिष्ट देवी से।

हालाँकि आगे के छंदों में “माँ” को देवी-सदृश रूपक (जैसे दुर्गा या कमला) में चित्रित किया गया है — जिससे धार्मिक आयाम जुड़ गया।

4. क्या “वन्दे मातरम्” शब्द इस्लामिक आस्था के विरुद्ध है?

यहाँ हमें इस्लामी सिद्धांत और गीत के रूपक — दोनों को समझना होगा।

(क) इस्लामी दृष्टिकोण:

इस्लाम में सिजदा (साष्टांग प्रणाम) और इबादत (पूजा) केवल अल्लाह के लिए मान्य है।

किसी अन्य जीव, देवता, या प्रतीक के आगे झुकना (bow down) — शिर्क (polytheism) के अंतर्गत आता है, जो वर्जित है।

इस दृष्टि से कुछ इस्लामी विद्वानों ने कहा कि

 “वन्दे मातरम्” में ‘नमन’ की भावना देवी-पूजा जैसी प्रतीत होती है, इसलिए यह इस्लामिक आस्था से मेल नहीं खाती।

परंतु यह व्याख्या भक्तिभाव और प्रतीक-भावना के बीच की रेखा पर निर्भर करती है।

(ख) राष्ट्रवादी / प्रतीकात्मक दृष्टिकोण:

राष्ट्रवादियों का कहना है — “वन्दे मातरम्” में नमन धार्मिक नहीं, देशभक्ति का प्रतीकात्मक सम्मान है।

यहाँ “माँ” कोई देवी नहीं, मातृभूमि भारत है — जो किसी धर्म की नहीं, बल्कि सभी नागरिकों की है।

संविधान के अनुसार, राष्ट्र-गीत धार्मिक न होकर सांस्कृतिक-राष्ट्रीय प्रतीक है।

अर्थात्,

 इस्लामी “शिर्क” का प्रश्न तभी उठता है जब “वन्दे मातरम्” को देवी-पूजा के रूप में लिया जाए।

यदि इसे केवल मातृभूमि-प्रेम और सम्मान के रूप में लिया जाए — तो यह इस्लाम-विरोधी नहीं है।

5. टकराव की संभावना

संस्कृत अर्थ के अनुसार “माँ को प्रणाम” या "मां को सलाम" से मुसलमान को कोई दिक्क़त नहीं

लेकिन गीत के विस्तृत छंदों में दुर्गा-कमला जैसी देवी-उपमा कुछ मुस्लिम विद्वानों के लिए अस्वीकार्य

राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देश-माता के प्रति सम्मान सार्वभौमिक — सभी धर्मों के लिए स्वीकार्य

इसलिए “वन्दे मातरम्” शब्द स्वयं में इस्लाम के विरुद्ध नहीं है, किंतु जब इसे देवी-आराधना के रूप में समझा जाए, तब यह इस्लामिक दृष्टि से असंगत हो सकता है।

भारत के संविधान निर्माताओं ने इस धार्मिक-संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर केवल पहले दो पदों को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया (जहाँ देवी-रूपक नहीं आता)।

1950 से आज तक यह आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय गीत है — धर्मनिरपेक्ष प्रतीक के रूप में, न कि किसी देवी-पूजन के रूप में।

6. सबसे पहले विरोध किसने और क्यों किया?

विरोध के स्वर सबसे पहले मुस्लिम लीग (1905-1910) और बाद में मोहम्मद अली जिन्ना (1938) के बयानों से उभरे।

उनका तर्क था - गीत में माँ को देवी कहा गया है (“दुर्गा दशप्रहरणधारिणी”), जो इस्लामिक आस्था में अस्वीकार्य है।

“वन्दे” (प्रणाम) का अर्थ सिजदा से मेल खाता है, जो इस्लाम में केवल अल्लाह के लिए स्वीकार्य है।

मुस्लिम समाज में यह धारणा बनी कि गीत को जबरन राष्ट्रीय प्रतीक बनाया जा रहा है।

हालाँकि, कई मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों — जैसे अब्दुल बारी, हसन इमाम और Maulana Azad — ने इसे राष्ट्रभक्ति का गीत मानकर समर्थन भी दिया।

हमारा मत 

“वन्दे मातरम्” इस्लाम-विरोधी नहीं, लेकिन इस्लामिक सिद्धांतों से असंगत कहा जा सकता है — यह व्याख्या-निर्भर है।

“वन्दे मातरम्” भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान की नींव है।

इसका अर्थ “माँ को प्रणाम” — यानी मातृभूमि को सम्मान देना है।

गीत का उद्देश्य किसी धर्म को ठेस पहुँचाना नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति भक्ति जगाना था।

संवैधानिक रूप से यह गीत आज भी भारत की एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।

Call to Action

भारत का हर नागरिक “वन्दे मातरम्” के वास्तविक अर्थ — मातृभूमि को प्रणाम — को समझे, और इस गीत को धर्म के बजाय देश के गौरव का प्रतीक बनाए।

#VandeMataram #IndianNationalSong #BankimChandra #RashtraGaurav #SecularIndia


Comments

Disclaimer

The views expressed herein are the author’s independent, research-based analytical opinion, strictly under Article 19(1)(a) of the Constitution of India and within the reasonable restrictions of Article 19(2), with complete respect for the sovereignty, public order, morality and law of the nation. This content is intended purely for public interest, education and intellectual discussion — not to target, insult, defame, provoke or incite hatred or violence against any religion, community, caste, gender, individual or institution. Any misinterpretation, misuse or reaction is solely the responsibility of the reader/recipient. The author/publisher shall not be legally or morally liable for any consequences arising therefrom. If any part of this message is found unintentionally hurtful, kindly inform with proper context — appropriate clarification/correction may be issued in goodwill.