गंगा एक्सप्रेसवे: बिजनौर को स्वीकृत रूट में शामिल करने की रुकावटें और संभावनाएं
गंगा एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा ग्रीनफील्ड राजमार्ग प्रोजेक्ट है। इसका उद्देश्य राज्य की पश्चिमी सीमाओं (मेरठ क्षेत्र) को प्रयागराज तक जोड़कर औद्योगिक, कृषि एवं धार्मिक गलियारा (Industrial–Spiritual Corridor) बनाना है।
परंतु प्रश्न यह उठता है कि — “जब गंगा बिजनौर से होकर बहती है, तो फिर गंगा एक्सप्रेसवे बिजनौर से होकर क्यों नहीं गुजरता?”
इस लेख में हम इस सवाल के तकनीकी, भौगोलिक, पर्यावरणीय और नीतिगत पहलुओं का विश्लेषण करेंगे।
1. गंगा एक्सप्रेसवे की संक्षिप्त रूपरेखा
लंबाई: लगभग 594 किमी
रूट: मेरठ → हापुड़ → बुलंदशहर → अमरोहा → सम्भल → बदायूं → शाहजहांपुर → हरदोई → उन्नाव → रायबरेली → प्रतापगढ़ → प्रयागराज
लेन संरचना: 6 लेन (8 लेन तक विस्तार योग्य)
निर्माण एजेंसी: UPEIDA (Uttar Pradesh Expressways Industrial Development Authority)
उद्देश्य: दिल्ली–प्रयागराज के बीच यात्रा समय को घटाना, आर्थिक गलियारा बनाना, और औद्योगिक निवेश को आकर्षित करना।
2. बिजनौर रूट को शामिल न करने के तकनीकी कारण
(A) भौगोलिक एवं पर्यावरणीय बाधाएँ
बिजनौर क्षेत्र गंगा के उत्तर तट पर स्थित है, जहाँ नदी का प्रवाह, बाढ़ क्षेत्र, और कटान (erosion) जोखिम अत्यधिक है।
इसके साथ ही, हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य (Hastinapur Wildlife Sanctuary) बिजनौर और आसपास के जिलों तक फैला हुआ है। इस संवेदनशील क्षेत्र से किसी भी हाई-स्पीड कॉरिडोर को निकालने के लिए NBWL (National Board for Wildlife) और Environment Clearance की जटिल प्रक्रिया पूरी करनी होती है।
इन कारणों से यह रूट DPR (Detailed Project Report) के लिए अनुपयुक्त माना गया।
(B) नदी तटीय इंजीनियरिंग की चुनौती
गंगा के इस हिस्से में मुख्य धारा के साथ कई सहायक नहरें, बैराज (जैसे बिजनौर बैराज) और जल निकासी चैनल हैं।
यदि एक्सप्रेसवे बिजनौर की दिशा में मोड़ा जाता, तो कम से कम 5–6 बड़े पुल और अनेक एलिवेटेड स्ट्रक्चर बनाना पड़ते, जिससे परियोजना लागत 25–30% तक बढ़ जाती।
(C) भूमि अधिग्रहण और जनघनत्व समस्या
बिजनौर का अधिकांश क्षेत्र गन्ना उत्पादन और सिंचाई नहरों पर आधारित कृषि क्षेत्र है। यहाँ भूमि का औसत मूल्य और घनत्व दोनों अधिक हैं।
एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए विशाल भूमि-अधिग्रहण आवश्यक होता है, जो राजनीतिक और सामाजिक विरोध को जन्म दे सकता था।
(D) स्वीकृत DPR में परिवर्तन की प्रक्रिया जटिल है
गंगा एक्सप्रेसवे का वर्तमान DPR, EIA (Environmental Impact Assessment) और NOC पहले से स्वीकृत हैं।
अब बिजनौर को शामिल करने का अर्थ होगा —
नई DPR, पुनः पर्यावरणीय मूल्यांकन, जन-सुनवाई, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया, और नई क्लीयरेंस —यह सब परियोजना को कम से कम 3–4 वर्ष पीछे धकेल देगा।
3. बिजनौर को जोड़ने की संभावनाएँ
(A) कनेक्टर या स्पर (Connector/Spur) मार्ग
सरकार भविष्य में बिजनौर–नजीबाबाद–हरिद्वार क्षेत्र को जोड़ने के लिए गंगा एक्सप्रेसवे से एक कनेक्टर मार्ग तैयार कर सकती है।
इसकी आवश्यकता इसलिए भी है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह हिस्सा धार्मिक पर्यटन (हरिद्वार मार्ग), शुगर इंडस्ट्री और रक्षा उत्पादन क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण बनता जा रहा है।
(B) मेरठ–हरिद्वार एक्सप्रेसवे का प्रस्ताव
यदि यह नया एक्सप्रेसवे या इंटर-लिंकिंग रूट (मेरठ–हरिद्वार) स्वीकृत होता है, तो बिजनौर को एक “नैचुरल जंक्शन” के रूप में शामिल करने की संभावना प्रबल होगी।
इससे बिजनौर की सीधी पहुँच गंगा एक्सप्रेसवे + दिल्ली–देहरादून कॉरिडोर दोनों से बन जाएगी।
(C) राजनीतिक और जन-आंदोलन का दबाव
स्थानीय व्यापारी संघ, किसान संगठन, और जिला प्रतिनिधि लगातार यह मांग उठा रहे हैं कि “गंगा के नाम वाला एक्सप्रेसवे गंगा किनारे बसे बिजनौर को क्यों न छुए?”
यदि यह आंदोलन राजनीतिक रूप लेता है, तो भविष्य में राज्य सरकार को DPR के संशोधन पर विचार करना पड़ सकता है।
4. संभावित लाभ (यदि बिजनौर को जोड़ा जाए)
1. धार्मिक पर्यटन विकास: बिजनौर–नजीबाबाद–हरिद्वार–देवप्रयाग बेल्ट भारत के “तीर्थ पर्यटन” के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
2. औद्योगिक निवेश: गन्ना-शुगर, पेपर मिल, और कृषि-आधारित उद्योगों को तेज़ लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी मिलेगी।
3. सीमा-सुरक्षा दृष्टि: उत्तराखंड के प्रवेश द्वार पर स्थित होने से रणनीतिक दृष्टि से बिजनौर कनेक्टर सैन्य आपूर्ति व आपदा प्रबंधन के लिए उपयोगी रहेगा।
4. रोजगार और रियल एस्टेट वृद्धि: एक्सप्रेसवे के आस-पास के कस्बों — नजीबाबाद, किरतपुर, अफजलगढ़ — में भू-मूल्य और रोजगार अवसरों में वृद्धि।
गंगा एक्सप्रेसवे का वर्तमान मार्ग बिजनौर से नहीं गुजरता क्योंकि—पर्यावरणीय और वन्यजीव संवेदनशीलता
नदी तटीय जोखिम
भारी इंजीनियरिंग लागत
और मौजूदा DPR की सीमाएँ
परंतु भविष्य में बिजनौर को कनेक्टर मार्ग या एक्सटेंशन लिंक के रूप में जोड़ना व्यवहारिक और रणनीतिक रूप से संभव है।
इसके लिए स्थानीय प्रतिनिधियों, व्यापारिक समुदाय और नीति-निर्माताओं को संयुक्त तकनीकी प्रस्ताव (Feasibility + Socio-Economic Report) प्रस्तुत करना होगा।
हमारा निष्पक्ष मत
“गंगा बिजनौर से बहती है, लेकिन एक्सप्रेसवे फिलहाल उससे दूर निकलता है।
कारण नीति और पर्यावरण हैं, परंतु भविष्य की संभावना मानव संकल्प में निहित है।”






Comments
Post a Comment
Thanks for your Comments.