कर्नाटक कांग्रेस का क्रिप्टो सेक्युलरिज़्म: तुष्टिकरण की पराकाष्ठा या हिन्दू विरोध?

4 अक्टूबर 2025 को कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खरगे द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए एक आधिकारिक पत्र ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को कठघरे में खड़ा कर दिया। पत्र में प्रियांक ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि 

“RSS सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों के साथ-साथ सार्वजनिक स्थानों पर भी गुप्त रूप से शाखाएं चलाता है, जहां बच्चों और युवाओं के मन में नकारात्मक विचार भरे जाते हैं।”

इतना ही नहीं — उन्होंने RSS को “दुनिया का सबसे गोपनीय संगठन” बताते हुए पूछा कि “100 वर्षों का इतिहास रखने के बावजूद यह संगठन रजिस्टर्ड क्यों नहीं है? इसे सैकड़ों करोड़ रुपये किस आधार पर मिलते हैं? RSS अपने योगदानों की सूची क्यों सार्वजनिक नहीं करता?”

उनका यह कथन कि “RSS को हटाओ तो भाजपा का अस्तित्व नहीं बचेगा; धर्म को हटाओ तो RSS समाप्त हो जाएगा” — स्पष्ट रूप से वैचारिक आक्रमण की रणनीतिक भाषा थी।

लेकिन अगले ही दिन तस्वीर ने करवट बदली…

05 अक्टूबर 2025 को हुबली (कर्नाटक) में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में इस्लामिक पवित्र ग्रंथ कुरान का पाठ कराया गया, और कांग्रेस के झंडे लहराए गए।

भाजपा विधायक अरविंद बैलाड ने इसे सरकारी मर्यादाओं का सीधा उल्लंघन बताते हुए X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा —

 “यह एक सरकारी समारोह था। किसी इमाम को बुलाकर कुरान का पाठ कैसे कराया जा सकता है? अधिकारी सरकारी कर्मचारी थे या कांग्रेस कार्यकर्ता?”

कर्नाटक सरकार ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए असहमति जताई।

किन्तु तथ्य यह है कि RSS की वैधता, संविधान विरोध, पारदर्शिता या सांप्रदायिकता पर प्रश्न उठाने वाली कांग्रेस — स्वयं धर्म विशेष के अनुष्ठान को सरकारी तंत्र के मंच पर स्थापित करती दिखाई दी।

यही है कांग्रेस का "क्रिप्टो सेक्युलरिज़्म"

यह कोई साधारण विरोधाभास नहीं, बल्कि वर्षों से चले आ रहे कांग्रेस मॉडल का स्ट्रक्चरल दोहराव है —

RSS पर “धर्म आधारित राजनीति” का आरोप और स्वयं खुलेआम इस्लामिक रिवाज को सरकारी कार्यक्रम से जोड़ना

यही कारण है कि कांग्रेस पर “छद्म धर्मनिरपेक्षता” या अंग्रेज़ी शब्दों में कहें तो Crypto-Secularism (यानी secularism की चादर ओढ़ा हुआ एक directional minority appeasement मॉडल) का आरोप और भी प्रबल हो जाता है।

प्रियांक खरगे का पत्र संघ को वैचारिक रूप से घेरने की एक चाल हो सकता है —

लेकिन हुबली की घटना ने उसी कांग्रेस को निष्पक्षता की कसौटी पर तात्कालिक रूप से असफल साबित कर दिया।

इसी विरोधाभास को भारतीय मतदाता अब “क्रिप्टो सेक्युलरिज़्म” कहते हैं — जहाँ तटस्थता के नाम पर केवल एक ही दिशा में झुकाव हो।


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