अगर ऐसे ही जारी रहा तो 150 साल बाद हिन्दू नहीं बचेगा- मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
14 अक्टूबर 2025 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक जातिगत अपमान के वायरल मामले पर सुनवाई करते हुए ऐसा वाक्य कहा जिससे पूरे हिन्दू समाज को सचेत हो जाना चाहिए —
“अगर जातिवाद ऐसे ही जारी रहा तो 150 साल बाद हिन्दू नहीं बचेगा।”
(न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति प्रदीप मित्तल की टिप्पणी)
यह कोई ‘भविष्यवाणी’ नहीं थी — यह न्यायपालिका द्वारा राष्ट्र को दी गई अंतिम चेतावनी थी। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या राजनीतिक दलों ने इसे सुना? नहीं। क्योंकि आज “जाति” राजनीति के लिए वोटों की खेती बन चुकी है — और उसी खेती में हिन्दू सभ्यता को बली का बकरा बनाया जा रहा है।
हिन्दू का सबसे बड़ा दुश्मन — कोई बाहरी नहीं, उसका अपना जाति-भेद
मुस्लिम, क्रिश्चियन, पश्चिमी ताकतों ने हिन्दू को कभी भीतर से नहीं तोड़ा — "हिन्दू को हिन्दू ने ही मारा है।"
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने साफ कहा — “हर जाति अपनी जाति पर गर्व जता रही है, धर्म पर नहीं।”
विपक्ष हो या सत्ता — हर राजनीतिक दल अब हिन्दू को नहीं, ‘जाति’ को साध रहा है।
चुनावी नारे अब “जय श्रीराम” नहीं — “जाट-मराठा-पाटीदार-पिछड़ा-दलित समीकरण” बने हैं।
अर्थ स्पष्ट है — हिंदू बनना शर्म की बात, जाति बनना गर्व की बात।
जाति अब वोट है जबकि हिन्दू धर्म अब केवल सम्प्रदायिकता का प्रतीक बना दी गई है.
जो नेता/संगठन हिन्दू एकता की बात करता है उसे “सांप्रदायिक” कहा जाता है.
जो नेता/संगठन जाति सम्मेलन करता है उसे “सामाजिक न्याय” का दूत बताया जाता है.
यही वह विषैला नैरेटिव है जिसने हिन्दू को टुकड़ों में बांटकर मारने की पूरी तैयारी कर दी है.
न्यायपालिका समझ गई — राजनीति कभी नहीं समझेगी.
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने जैसे एक आत्मा-भेदन करने वाला वाक्य कहा —
“हर जाति कह रही है ‘हम श्रेष्ठ’। फिर हिन्दू कहाँ रहेगा?”
यह पहला मौका है जब कोर्ट ने सीधे हिन्दू शब्द का प्रयोग करते हुए, “जातिवाद” को हिन्दू के अस्तित्व के लिए सीधा खतरा बताया।
यह राष्ट्र को बचाने की पुकार थी, लेकिन जातिवादी राजनीतिक दलों ने इसे अपने खिलाफ ‘चुनावी खतरा’ मानकर चुप्पी साध ली।
यह सिर्फ “सामाजिक समस्या” नहीं — यह “सभ्यता विनाश” का यथार्थ है. यही आत्महत्या है। यही वह क्षण है जिसे हाई कोर्ट ने पहचान लिया और राजनीति ने जानबूझकर अनसुना कर दिया।
हिन्दू सभ्यता के पुनरुत्थान की वास्तविक रणनीति (यानी काम की बातें, न slogans)
राजनीतिक, बौद्धिक और सामाजिक तीन स्तरों पर युद्ध चल रहा है — और समाधान भी तीन ही स्तरों पर मिलेगा:
1. राजनीतिक स्तर — राजनीति को मजबूर करना होगा कि वह “जातिगत सम्मेलन” नहीं, “धर्माधारित एकता सम्मेलन” करे.
हर हिन्दू जाति समूह में एक साझा हिन्दू इंटेलेक्चुअल फ्रेमवर्क तैयार किया जाए.
जाति को वोट डाटा बनाकर जो दल खाए बैठे हैं — उन्हें नैतिक रूप से जनता के सामने नंगा करना होगा.
“जाति उत्थान बोर्ड” नहीं — “हिन्दू समाज पुनरुत्थान आयोग” की माँग उठानी होगी
अगर मुस्लिमों के लिए Waqf Board बन सकता है,
तो हिन्दू के लिए एक राष्ट्र स्तरीय “Sanatan Unity Council” क्यों नहीं?
2. बौद्धिक स्तर — हिन्दू समाज को “जाति” को सामाजिक पहचान, लेकिन “हिन्दू” को अस्तित्व पहचान बनाना होगा.
वैदिक, गीता, विवेकानंद, सावरकर — इनसे अलग हटकर अब एक व्यावहारिक पोलिटिकल हिन्दू दर्शन चाहिए.
मीडिया में “जाति मतदाता” शब्द खत्म करके “सांस्कृतिक हिन्दू” शब्द की एंट्री करनी होगी.
हिन्दू एकता को हिंदुत्व बहस बनाने की गलती ना करें — इसे “सभ्यता की रक्षा बनाइये”.
3. सामाजिक स्तर — विवाह, त्योहार, उत्सव — हर जगह “जाति से ऊपर धर्म की पहचान” का वातावरण बनाना होगा.
आज ब्राह्मण और दलित मंदिर में एक साथ पूजा नहीं करते — पर शत्रु के सामने एक साथ मरेंगे
यानी जातिगत अपमान का भाव खत्म नहीं, उस अपमान के पार जाने वाला धर्म-बोध खिलाना होगा
हिन्दू युवाओं को “जातीय गौरव” से निकालकर “भूमंडलीय हिन्दू उत्तरदायित्व” का संस्कार देना होगा
अंतिम सिद्धांत
“जाति” समस्या नहीं — “जाति को हिन्दू से ऊपर रख देना” असली बीमारी है। इसे उलटना संभव है — और करना भी होगा।
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✒️ अस्वीकरण (Disclaimer) : यह लेखक के निजी विचार हैं। इनसे सहमत होना या न होना अनिवार्य नहीं है। उद्देश्य मात्र समाज को जागरूक करना तथा ज्वलंत विषयों पर निष्पक्ष रूप से विचार प्रस्तुत करना है। किसी भी व्यक्ति, संगठन, समाज, सम्प्रदाय अथवा जाति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाना या उनका अपमान करना इसका उद्देश्य नहीं है। इसे केवल ज्ञानवर्धन हेतु पढ़ें।
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