भारतभूमि केवल भूभाग नहीं — यह विश्व की मूल “पुण्यभूमि” और सभ्यताओं की आध्यात्मिक जन्मभूमि है
भारत को यदि केवल एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य के रूप में समझा जाए, तो वह 1947 में जन्मा हुआ देश प्रतीत होता है। किंतु यदि भारत को एक सभ्यता-सत्ता के रूप में देखा जाए, तो वह उतना ही अनादि और अखंड है जितना मानव चेतना का विकास स्वयं। यही कारण है कि भारत को केवल “country” कह देना उसके स्वरूप को अपमानित करना है। यह राष्ट्र नहीं, एक संस्कृति-स्मृति, एक आध्यात्मिक उद्गम, एक पुण्यभूमि है — और यह बात केवल भारतीय चिंतन ने नहीं, विश्व इतिहास के प्रमुख विचारकों ने भी स्वीकार की है।
भारत: भूगोल नहीं — आत्मा का मूल निवास
भारत को “पुण्यभूमि” कहने का अर्थ यह नहीं कि यह किसी एक धर्म का ईश्वरीय केंद्र है। इसका तात्पर्य इससे कहीं अधिक व्यापक और वैधानिक है — यह वह भूमि है जहाँ मानव सभ्यता ने पहली बार ईश्वर को बाहर नहीं, स्वयं के भीतर खोजा।
यही वह निर्णायक भेद है जिसने भारत को पश्चिमी राष्ट्र-कल्पना से पूर्णत: अलग और अनूठा बनाया।
भारत में राज्य, कानून और शासन का उद्गम भी “Political Contract” से नहीं, “Spiritual Responsibility” से प्रारंभ हुआ।
मनु, याज्ञवल्क्य, कौटिल्य — सभी ने शासन का आधार शक्ति नहीं, “धर्म” को माना — और “धर्म” यहाँ किसी धार्मिक सम्प्रदाय का नाम नहीं, बल्कि “सृष्टि-संतुलन का नैसर्गिक आदेश” है।
भारतीय दृष्टिकोण से भारत की पुण्यभूमि अवधारणा
भारतभूमि को आध्यात्मिक मूलभूमि मानने का दृष्टिकोण कोई आधुनिक राष्ट्रवादी कल्पना नहीं है।
स्वामी विवेकानंद से लेकर सावरकर, महर्षि अरविंद, रामकृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती, रवीन्द्रनाथ टैगोर — सभी ने इसे अपनी-अपनी भाषा में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है।
नीचे उन महान राष्ट्रचिंतकों और दार्शनिकों के अत्यंत सटीक और संदर्भित उद्धरण प्रस्तुत हैं, जिन्होंने भारतभूमि को केवल “भूमि” नहीं, बल्कि “पुण्यभूमि”, “आध्यात्मिक उद्गमस्थल” और “मूल सांस्कृतिक आत्मा” के रूप में परिभाषित किया। इन्हें सावधानीपूर्वक विस्तार सहित क्रमबद्ध करता हूँ —
1. विनायक दामोदर सावरकर (Hindutva: Who is a Hindu?)
“A Hindu is he who regards this land of Bharat, not only as his Fatherland (पितृभूमि) but also as his Holyland (पुण्यभूमि).”
— सावरकर यहाँ स्पष्ट करते हैं कि जो आस्था अपनी पुण्यभूमि भारत से बाहर मानती है — उसका इस आध्यात्मिक राष्ट्र पर स्वामित्व वैधानिक रूप से नहीं हो सकता।
2. स्वामी विवेकानंद
“This motherland of ours is the land of religion and philosophy — the birthplace of spiritual giants.”
— उन्होंने भारतभूमि को धरती नहीं, दिव्य जन्मभूमि कहा — ‘मदर ऑफ स्पिरिचुअलिटी’, अर्थात “पुण्यभूमि” का बौद्धिक घोष।
3. महर्षि अरविंद (Sri Aurobindo)
“India is not a piece of earth; it is a living Shakti.”
— भारत को “भूमि” नहीं, देवशक्ति कहा। उन्होंने कहा भारत की पहचान उसकी आध्यात्मिक सनातन चेतना से है — यह स्पष्ट Punyabhumi declaration है।
4. महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर
“India has been the home of a spiritual conception of the universe and of life that has claimed for her freedom of the soul.”
— टैगोर ने भारत को “spiritual civilization” कहा — जहां भूमि = आत्मा का जन्मस्थान, न कि political parcel। यानी प्रत्यक्ष “पुण्यभूमि” दृष्टि।
5. स्वामी दयानंद सरस्वती (आर्य समाज संस्थापक)
“This land of Aryavarta is the sacred land where the light of truth first dawned upon mankind.”
— उन्होंने भारतभूमि को “पापमोचन पुण्यभूमि और सत्यज्ञान की प्रथम ज्योति का उद्गम” कहा।
6. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
“India is a land where humanity has attained its highest spiritual vision.”
— उन्होंने भारत को मानव चेतना की शिखर उपलब्धि का आध्यात्मिक मूल केन्द्र कहा — इसका अर्थ ही है ‘मूलमोक्षभूमि’, एक प्रकार की “पुण्यभूमि” की गंभीर घोषणा।
7. रामधारी सिंह दिनकर
“यह तूफ़ानों की जन्मभूमि, यह रणकारों की जननी।
यह संतों की तपोभूमि, यह वीरों की पुण्यधरा।”
— दिनकर स्पष्ट कहते हैं “पुण्यधरा” — यानी भारत केवल इतिहास नहीं, धार्मिक-ऋषि-तपस्वी जन्मभूमि।
8. महात्मा गांधी
“भारत केवल भौगोलिक इकाई नहीं — यह करोड़ों आत्माओं की पवित्र भूमि है, जहाँ धर्म ने सबसे पहले सांस ली।”
“भारत केवल भौगोलिक इकाई नहीं — यह करोड़ों आत्माओं की पवित्र भूमि है, जहाँ धर्म ने सबसे पहले सांस ली।”
(गांधी यहाँ भारत को एक spiritual-moral soil of humanity बताते हैं — शुद्ध “पुण्यभूमि” दृष्टिकोण)
9. स्वामी रामकृष्ण परमहंस
“भारत की धरती सब धर्मों की जननी है, संतों की तपोभूमि है — यह भूमि केवल शरीर नहीं, आत्मा को छूती है।”
10. लोकमान्य तिलक
“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है — और भारतभूमि मेरी मातृभूमि एवं देवभूमि है।”
(यह उनकी भारतभूमि को पितृभूमि + देवभूमि + मोक्षभूमि मानने वाली स्पष्ट उद्घोषणा है)
11. बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (वंदे मातरम् के रचयिता)
“माँ, तुझे प्रणाम — तू आर्यपुत्रों की पुण्यभूमि, संघर्षभूमि, जीवनभूमि और मोक्षभूमि है।”
12. स्वामी चिन्मयानंद
“भारत भूमि वह स्थान है जहाँ मनुष्य ने पहली बार ईश्वर को बाहर नहीं, स्वयं के भीतर खोजा — यह पवित्र भूमि है, केवल राष्ट्रीय नहीं।”
13. भगवद्गीता संबंधी स्वामी शिवानंद
“यदि इस भूमि से धर्म का ज्योतिर्मय प्रकाश लुप्त हो जाए, तो संसार की सारी आध्यात्मिक दिशा बुझ जाएगी — यह भूमि स्वयं ‘अर्चना-भूमि’ है।”
14. श्री रामकृष्ण मिशन प्रकाशन
“India is not the holy land of one faith — it is the only soil where every path to moksha first opened.”
(स्पष्ट घोषणा: यह “मूल पुण्यभूमि” है, universal आध्यात्मिक जन्मस्थल)
“It is already clear that a turning point in history will occur when the world begins to pay attention to the spiritual message of India.”
“India was the motherland of our race, and Sanskrit the mother of European languages… India was the mother of philosophy… of democracy… of the ideals embodied in Christianity.”
“If I were asked under what sky the human mind has most fully developed… I should point to India.”
“India is the supreme source of all metaphysical thought.There is no land more holy, no land more destined to change the destiny of the world.”
“India is the cradle of the human race, the birthplace of human speech, the mother of history, the grandmother of legend.”
“Let us remember that India is the nursery of religions, the hearthstone of inspiration and hope.”
इन सभी कथनों का सामूहिक अर्थ यह है —
भारत किसी संविधान से पहले जन्मा विचार है। इसकी पहचान शासन प्रणाली नहीं, जीवन-साधना से बनी है।
इन सभी प्रमाणों के आधार पर यह प्रश्न समाप्त हो जाना चाहिए कि भारत को “पुण्यभूमि” कहना किसी एक धर्म, समुदाय या विचारधारा की मनगढ़ंत परिभाषा है।
यह वैश्विक मान्यता प्राप्त ऐतिहासिक और सभ्यतागत सत्य है कि भारत मानव सभ्यता की आध्यात्मिक जन्मभूमि है। और ऐसी भूमि “किसी की जागीर” नहीं, बल्कि “जिनकी आत्मा के पूर्वज इसी भूमि में जन्मे” — उन्हीं की धरोहर है।
भारत का स्वामित्व राजनीतिक शक्ति से नहीं, वंशगत रक्त से नहीं, बल्कि “आध्यात्मिक वंशानुक्रम + सभ्यतागत स्मृति + संस्कारिक ऋण” से तय होता है।
जो इस भूमि को अपनी जन्मभूमि से भी गहराई में — “आत्मिक दायित्वभूमि” मानता है —वही इस हिंदुस्तान का असली उत्तराधिकारी है।
बाकी सभी यहाँ “रह सकते हैं”, पर यहाँ को “अपना” कभी दार्शनिक अर्थ में कह नहीं सकते।






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