क्या अंबेडकर को संविधान निर्माता कहना अतिशयोक्ति नहीं है?
भारत का संविधान किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं, बल्कि एक संविधान सभा के सामूहिक श्रम का परिणाम था।
संविधान सभा का गठन 9 दिसंबर 1946 को हुआ और इसमें प्रारंभ में 389 सदस्य थे। देश के विभाजन के बाद यह संख्या 299 रह गई।
इस सभा ने लगभग 2 वर्ष 11 माह 18 दिन तक लगातार कार्य किया और 11 सत्रों में संविधान तैयार किया।
इस दौरान लगभग 7,635 संशोधन प्रस्ताव आए, जिनमें से 2,473 पर विचार हुआ।
इस पूरी प्रक्रिया में आठ प्रमुख समितियाँ थीं, जिनमें –
1- संविधान निर्माण पर प्रारूप समिति (Drafting Committee)
2- मौलिक अधिकार समिति (Fundamental Rights Committee)
3- राज्य पुनर्गठन समिति
4- संघ शक्ति समिति आदि प्रमुख थीं।
डॉ. अंबेडकर 29 अगस्त 1947 को गठित प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
इस समिति के कुल 7 सदस्य थे:
1. डॉ. भीमराव अंबेडकर
2. के.एम. मुंशी
3. अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
4. एन. गोपालस्वामी अय्यर
5. मोहम्मद सादुल्लाह
6. बी.एल. मित्तर (बाद में डी.पी. खेतान और टी.टी. कृष्णमाचारी ने पद संभाला)
7. एन. माधव राव
अंबेडकर ने इस समिति का नेतृत्व करते हुए ब्रिटिश भारत, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के संविधानों का अध्ययन किया और उन्हें भारतीय परिप्रेक्ष्य में ढाला।
इसलिए वह “संविधान के प्रारूप निर्माता” (Chief Draftsman) तो निश्चित ही थे, परंतु “संविधान निर्माता” (Sole Architect) कहना अतिशयोक्ति होगी।
सामूहिक योगदान के उदाहरण
संविधान के अनेक प्रमुख अनुच्छेद अन्य विद्वानों के योगदान से बने —
सर बी.एन. राव — संविधान के प्रारंभिक मसौदे के Constitutional Advisor थे।
के.एम. मुंशी — मौलिक अधिकारों की भाषा और संरचना के निर्माण में प्रमुख भूमिका में थे।
सरदार पटेल — प्रांतीय एकीकरण और संघीय ढांचे की बुनियाद रखी।
राजेंद्र प्रसाद — संविधान सभा के अध्यक्ष और अंतिम अनुमोदन प्रक्रिया के मार्गदर्शक रहे।
नेहरू जी — उद्देशिका (Preamble) में निहित “सॉवरेन, सोशलिस्ट, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक” की अवधारणा प्रस्तुत करने वाले प्रथम व्यक्ति थे (Objective Resolution)।
स्वतंत्र भारत के बाद अंबेडकर को “संविधान निर्माता” कहकर प्रतीकात्मक सम्मान दिया गया — यह एक राजनीतिक और सामाजिक स्वीकृति थी, कानूनी उपाधि नहीं।
उनका योगदान निर्विवाद रूप से निर्णायक था, किंतु संविधान को तैयार करने की प्रक्रिया सामूहिक बौद्धिक उत्पाद थी।
डॉ. अंबेडकर भारत के संविधान के प्रमुख वास्तुकार (Principal Architect) थे,परंतु एकमात्र निर्माता नहीं। उनकी भूमिका वैसी ही थी जैसी किसी विशाल भवन के मुख्य अभियंता की होती है. वह पूरी रूपरेखा को सुसंगत, तार्किक और उपयोगी बनाते हैं, भले ही पत्थर और ईंटें अनेक लोगों ने मिलकर रखी हों।
इसलिए हमारा व्यक्तिगत निष्कर्ष यह है:
“हाँ, अंबेडकर संविधान के मुख्य निर्माता थे — लेकिन अकेले नहीं। यह भारत की सामूहिक चेतना, अनेक मस्तिष्कों और हज़ारों विचारों से निर्मित एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है।”
🔗 External References:
संविधान सभा की कार्यवाही, Volume VII & XI
Ministry of Law & Justice: “Framing of the Constitution of India – A Study”
Granville Austin, The Indian Constitution: Cornerstone of a Nation
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