कांग्रेस का सबसे बड़ा शत्रु मोदी नहीं बल्कि ममता, मुलायम, लालू जैसे सेक्युलर हैं

कांग्रेस शासित प्रदेशों पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार की स्थिति डांवाडोल है। पंजाब के हालात तो अब असामान्य से होने लगे हैं। टुकड़े-टुकड़े गैंग के चीफ़ कन्हैया कुमार के "शुभ कदमों" के पड़ते ही कांग्रेस पार्टी का टुकड़े-टुकड़े होना आरम्भ हो गया है। इसे कुछ यूं कहिये कि "जहां गए दास मलूका, वहीं पड़ गया सूखा।।" उधर उत्तरप्रदेश में "बोटी-बोटी गैंग" के मुखिया कहे जाने वाले इमरान मसूद साहब ने भी सुर बदलते हुए कांग्रेस को सपा के समक्ष आत्मसमर्पण करने की सी नसीहत दे डाली है। दूसरे शब्दों में कहें तो कन्हैया कुमार की तरह ही इमरान मसूद साहब ने भी कांग्रेस के जहाज को डूबता हुआ बताना शुरू कर दिया है। उल्लेखनीय है कि यह वही इमरान मसूद साहब हैं जिन्हें कांग्रेस आलाकमान ने ज़मीन से उठाकर एकदम से आसमान पर बैठा लिया था। उसका कारण केवल इतना भर था कि इमरान मसूद साहब ने कथितरूप से देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की "बोटी-बोटी" अलग करने का दम भरा था। और कांग्रेस हर उस व्यक्ति को गले लगाने के लिए एकदम से तैयार रहती है, जो श्री मोदी-योगी का अन्धविरोधी है। सच पूछिए तो गांधी परिवार हमेशा ही अपनी लकीर बड़ा करने के स्थान पर मोदी की लकीर को छोटा करने के लिए उतावला रहता है।
अब ख़बर मिली है कि जल्दी ही इमरान मसूद साहब सपा में शामिल हो सकते हैं। कहते हैं कि जब जहाज डूबता है तो सबसे पहले उसमें से चूहे कूदकर भागते हैं। और कन्हैया कुमार तो पहले ही कह चुके हैं कि कांग्रेस का जहाज डूब रहा है। 
दरअसल वर्तमान में कांग्रेस नेतृत्वविहीन और दिशाहीन हो चुकी है। वर्तमान में कांग्रेस चार धड़ों में बंटी हुई है। पहला सोनिया धड़ा, दूसरा राहुल धड़ा, तीसरा वाड्रा धड़ा और चौथा असंतुष्ट दिग्जजों का धड़ा। असंतुष्टों का धड़ा अर्थात वह तमाम लोग जो किसी ज़माने में गांधी परिवार के "विश्वासपात्र" माने जाते थे, वह सभी दिग्गज आज गांधी परिवार की जड़ों में मट्ठा डालने में लगे हुए हैं।
कहते हैं कि राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन। यहां कोई किसी का वफ़ादार नहीं है। कपिल सिब्बल साहब से लेकर आनन्द शर्मा और मनीष तिवारी से लेकर शशि थरूर तक सभी "पीवी नरसिंघा राव" बनने की तैयारियां करने में लगे हैं। यूं भी शतरंज और राजनीति में कौन सा प्यादा कब वज़ीर बन जाये, कोई नहीं जानता। कल तक जो लोग गांधी परिवार के प्यादे हुआ करते थे। आज वही लोग वज़ीर बनने की कोशिशों में लगे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है गांधी परिवार का आपसी बिखराव और विरासत को लेकर भीतरघात। इसका एक बड़ा कारण श्री राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता, अदूरदर्शिता और अपने उत्तरदायित्वों के प्रति उदासीनता है। श्रीमान राहुल गांधी कभी अपनी राजनीतिक योग्यता सिद्ध नहीं कर पाए, और न ही उन्होंने कभी श्रीमान नरेंद्र मोदी जी की नेतृत्व कुशलता, राजनीतिक सूझबूझ और दूरंदेशी से कुछ सीखने की कोई कोशिश ही की है। विद्वानों का मत है कि यदि शत्रु से भी कुछ सीखने को मिलता है तो जरूर सीख लेना चाहिए।

लेकिन हमेशा चाटुकारों और श्री मोदी विरोधियों से घिरे रहने वाले श्री गांधी को विद्वानों से सीख लेने की कभी फुर्सत ही नहीं मिली। उधर प्रियंका जी कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन केवल इंदिरा जैसी नाक के बल पर वह कभी गांधी परिवार की वारिस नहीं बन सकती हैं। वह वाड्रा परिवार की बहू हैं और उससे ज़्यादा कुछ नहीं। 
श्रीमती सोनिया गांधी ढलता हुआ सूरज हैं और अब उनके कंधों में इतनी क्षमता नहीं कि वह राहुल गांधी को सहारा दे सकें। 
इन सब बातों का फायदा उठाते हुए ही गांधी परिवार को मोदी और आरएसएस का कट्टर विरोधी बना दिया गया। जबकि सही मायने में देखा जाए तो कांग्रेस की जड़ें खोखली करने में ममता बनर्जी, शरद पवार,  लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और कुछ हद तक अरविंद केजरीवाल जैसे "सो कॉल्ड सेक्युलर्स" शामिल हैं। जिस प्रकार लोहे को हमेशा लोहा ही काटता है, ठीक उसी प्रकार सेक्युलर का चोला ओढ़े कांग्रेस को इन कथित सेक्युलर दलों ने ही सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। लेकिन गांधी परिवार को यह सच्चाई न तो किसी ने कभी बताई और न ही ख़ुद गांधी परिवार ने उसे कभी समझने की कोई कोशिश ही की है।


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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
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