श्रीराम मंदिर बनवाकर भाजपा ने महापाप किया था, अब सजा भुगतो

कभी-कभी सोचता हूँ कि श्री अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बनवाकर भारतीय जनता पार्टी ने महापाप किया। काश अगर इसके स्थान पर बाबरी मस्जिद बनवा दी होती तो पश्चिम बंगाल सहित सभी राज्यों में आज भाजपा की पूर्ण बहुमत से सरकार बन होती। और श्रीमान नरेंद्र मोदी को 21वीं सदी का "महापुरुष" बना दिया गया होता। लेकिन हाय री बदकिस्मती, कि श्रीमान मोदी ने 1990 के श्रीरामभक्तों की वीरगति को नमन करते हुए, श्री अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनवा दिया। श्री मोदी शायद भूल गए कि हिंदुओं को मंदिर नहीं सस्ता पेट्रोल चाहिये, सस्ते प्याज-टमाटर, सस्ता राशन, सरकारी नौकरियां, और मुफ़्त की बिजली और पानी चाहिए। इन्हें गन्ने के बढ़ते हुए दाम और मुफ़्त के लैपटॉप चाहिए। सैंकडों वर्षों से विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन करने वाले गुलामों को गुलामी के प्रतीक सुहाते हैं, इन्हें श्रीराम का मंदिर नहीं चाहिए, इन्हें अस्पताल चाहिए। इन्हें मुफ़्त की वैक्सीन चाहिए, इन्हें ऑक्सीजन के सिलेंडर चाहिए। इनकी मानसिकता खाने, सोने और हगने से ज़्यादा कुछ सोच ही नहीं सकती। यह धर्म के प्रति कभी कृतज्ञ नहीं रहे, यह हमेशा ही कृतघ्न रहे हैं। इन्हें आदत है गुलामी की, इन्हें स्वाभिमान से मरना पसंद नहीं है, यह घुटनों के बल रेंगकर जीना पसंद करते हैं। इन कृतघ्न हिंदुओं की इस गुलाम मानसिकता को विपक्ष ने बख़ूबी समझ लिया था। इसीलिए उन्होंने इनको मुफ्तखोरी की आदत डाल दी।

श्री मोदी जी, यदि आपने बाबरी मस्जिद का जीर्णोद्धार कराया होता तो आज पूरी दुनिया में आपके नाम का डंका बज रहा होता और यह कायर, बुजदिल और गुलाम मानसिकता का हिन्दू समाज आपकी जय जयकार कर रहा होता। आप "सेक्युलिरिज्म के देवता" बन गये होते। पूरे देश का मुसलमान आपको अपना मसीहा मानने लगता, लेकिन अहो दुर्भाग्य कि आपने अपनी अंतरात्मा और अपने धर्म से समझौता नहीं किया। शायद आप समझ ही नहीं सके कि इस देश में रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा किसी को कुछ न सुनाई देता है, न ही दिखाई देता है। जातिवाद और पंथवाद के बोझ तले दबा यह कायर हिन्दू समाज कभी अपनी अंतरात्मा, अपने स्वाभिमान, अपने धर्म और अपने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को समझ ही नहीं पाया। सैंकड़ो वर्ष बीतने के पश्चात भी यह अपने आपको ग़ुलामी की बेड़ियों से मुक्त नहीं करा सका। 
शायद मोहनदास करमचंद गांधी हिंदुओं की इस गुलाम मानसिकता को बहुत अच्छी तरह से समझ गए थे, इसीलिये वह "महात्मा" बन गए, लेकिन नाथूराम गोडसे इस सच्चाई को कभी नहीं समझ सका इसलिए वह "आतंकी" कहलाता है।

इस देश की यह विडंबना है कि जिस-जिसने इस देश की संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, परम्पराओं और जीवन मूल्यों को जीवित रखने का प्रयास किया वही व्यक्ति "गोड़सेवादी",  "संघी" और "भगवा आतंकी" कहलाया। और जिसने इस देश लूटने वालों, आक्रांताओं, वहशी-दरिंदों और गद्दारों का महिमामंडन किया, उत्साहवर्धन किया, उन्हें संरक्षण दिया वह सभी "कथित सेक्युलर" , शांतिदूत, और देशभक्त कहलाये।

ज़रा गौर कीजिए साहब, जिन्होंने प्रभु श्रीराम को काल्पनिक कहा, जिन्होंने श्रीरामभक्तों पर गोलियां चलवाईं आज वह छाती ठोककर सराकर बनाने का दावा कर रहे हैं और जिन्होंने प्रभु श्रीराम के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, जिहोंने गुलामी की निशानियों को मिटाने के लिए अपने अस्तित्व को मिटा दिया, वह ख़ामोश बैठे मंचों से "अल्लाह हू अकबर" के नारे सुन रहे हैं।

कौन कहता है कि सत्यमेव जयते, कड़वा सच तो यह है साहब कि इस देश में झूठ, अन्याय और अधर्म फलफूल रहा है, सड़कों पर जाम लगा रहा है और सत्य, न्याय और धर्म की हार का जश्न मनाया जा रहा है।
अब भी समय है, मोदी जी जाग जाइये, बाबरी मस्जिद बनवा दीजिये, गाय को खुलेआम चौराहों पर कटवाकर बीफ़ पार्टी करवाइए, रोहिंग्या को पलकों पर बैठाइए, दरगाहों पर चादर चढ़ाइए, कश्मीर से धारा 370 हटाइये, बाटला हाउस कांड पर आंसू बहाइये, NRC-CAA में मुस्लिम शब्द जोड़िए, गंगा-जमुनी तहज़ीब की नदियां बहाइये, सर पर टोपी रखकर रोज़ा अफ्तारी कराइये, तालिबानी हुक़ूमत से हाथ मिलाइए, इमरान साहब से गले मिल जाइये और मंदिरों में कुरआन ख्वानी कराइये, मिशनरियों को धर्मांतरण की खुली छूट दे दीजिये। हरामखोरी की आदत डलवाईये और मुफ्तखोरों को बिजली, पानी, बस का सफ़र इत्यादि दिलवाइये।

बस फिर कोई आपसे महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्या और गैस के सिलेंडर पर सवाल नहीं पूछेगा। क्योंकि उनके लिए मज़हब पहले है और देश बाद में।

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🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।

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