टिकैत जी की महापंचायत में श्रीराम के उदघोष से परहेज क्यों है
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों विशेष रूप से उत्तरप्रदेश की ग्रामीण जनता के बीच आज भी अभिवादन के लिए "राम-राम जी" का इस्तेमाल किया जाता है। आप किसी भी गांव में जाइये वहां पर चौपालों पर बैठा हर इंसान अभिवादन के लिए एक-दूसरे को "राम-राम" ही कहता दिखाई देगा। किसान भाइयों में तो विशेषकर राम-राम ही कहा जाता है। सच पूछिए तो उत्तरभारत में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का नाम लेना ही ईश्वर का भजन करने के तुल्य माना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम न केवल उत्तर भारत अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष के आदर्श हैं।एक अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत सह-बौद्धिक प्रमुख हरिनारायण ने कहा था कि "प्रभु श्रीराम सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं। शबरी का आतिथ्य स्वीकार कर प्रभु ने जूठे बेर खाया। वनवासी हनुमान को गले लगाकर तथा निषादराज के प्रति आत्मीयता का भाव प्रकट कर भगवान राम ने शहरी- ग्रामीण के भेदभाव को पाट दिया। ऊंच -नीच जाति- पाति आदि को नजरअंदाज कर उन्होंने श्रेष्ठ भारत के निर्माण के लिए अपना संपूर्ण जीवन समाज को दे दिया। अत: भगवान राम के गुणों को आत्मसात किए बिना नए भारत का निर्माण संभव नहीं है।"
श्रीराम का निर्देश है कि
"कच्चित् ते दयितः सर्वे, कृषि गोरक्ष जीविनः”।" किसान, पशुपालक सभी हमेशा खुश रहें।
परन्तु बेहद आश्चर्य का विषय है कि मुजफ्फरनगर में हुई "महापंचायत" में श्रीराम के आदर्शों को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले किसान भाइयों ने "जय श्रीराम" या "प्रभु श्रीराम की जय" जैसे सुंदर शब्दों का उच्चारण क्यों नहीं किया? महापंचायत में श्री राकेश टिकैत साहब ने अल्लाह हू अकबर के नारे लगाए, लेकिन गुलाम मौहम्मद जौला साहब ने एक बार भी जय श्रीराम का उदघोष क्यों नहीं किया? जबकि स्वयं अल्लामा इक़बाल साहब ने प्रभु श्रीराम को "इमामे हिन्द" कहा था। तब भला इमामे हिन्द की शान में आवाज बुलंद क्यों नहीं की गई?
अल्लाह महान है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता और न ही किसी को इस बात से कोई आपत्ति हो सकती है, परन्तु प्रभु श्रीराम के नाम से भला परहेज़ क्यों रखा गया?
अगर महापंचायत का मुख्य उद्देश्य सामाजिक समरसता, शांति, सौहार्द और एकता बनाये रखना था तो फिर उसके लिए प्रभु श्रीराम से बड़ा कोई उदाहरण हो ही नहीं सकता था। दूसरे श्रीराम ने तो सदैव असत्य, अन्याय और अधर्म के विरुद्ध युद्ध किया और सत्य, न्याय और धर्म का साथ दिया है। ऐसे में श्री राकेश टिकैत और उनके समस्त मित्रों-शुभचिंतकों के लिए श्रीराम से बड़ा कोई आदर्श हो ही नहीं सकता।
तो ज़ोर से बोलिए "जय श्रीराम" और गुलाम मौहम्मद जौला साहब को भी "इमामे हिन्द" का जयघोष करना चाहिए। तभी देश में शांति, सौहार्द और सद्भावना स्थापित हो पाएगी।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
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