अखिलेश जी आपने परिवार द्वारा परिवार के लिए परिवार का शासन बना दिया

मीडिया के हवाले से ख़बर मिली है कि
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि "भाजपा के कारण लोकतंत्र कमजोर हुआ है।"
यहाँ एक प्रश्न श्री अखिलेश यादव से बनता है कि महोदय क्या मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे गुंडों-माफियाओं के बलबूते पर शासन चलाने वालों के शासनकाल में लोकतंत्र मज़बूत था? लोकतंत्र का अर्थ है- जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन। परन्तु पूर्ववर्ती सरकारों ने लोकतंत्र की परिभाषा को पूरी तरह बदलते हुए इसे - *"परिवार द्वारा, परिवार के लिए, परिवार का शासन बना दिया।"*

पूर्ववर्ती सरकारों में मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे बाहुबलियों ने और गायत्री प्रजापति जैसे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे राजनीतिज्ञों ने लोकतंत्र का मख़ौल बनाया। आजम खान जैसे लोगों ने गरीब जनता को न्याय दिलाने के स्थान पर पुलिस-प्रशासन को भैंसों की रखवाली पर लगा दिया। संवैधानिक संस्थाओं का इससे बड़ा दुरुपयोग भला और क्या हो सकता है। उत्तरप्रदेश जनता शायद अभी नहीं भूली है कि 2016 में किस प्रकार से सत्तामोह में फंसा "मुलायम कुनबा" एक-दूसरे के प्रति ज़हर उगल रहा था, जिसके चलते भाजपा ने बाजी मार ली थी। क्या उस लड़ाई में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मान-सम्मान रखा गया था? शायद नहीं। 

श्री अखिलेश यादव ने आगे कहा कि- "भाजपा द्वारा बिना कोई जनहित कार्य किये सरकारी संसाधनों का दुरूपयोग करना जनता के साथ धोखा है। गन्ने का बकाया, बिजली बिल बढोत्तरी, बुनकरों की समस्या, बेरोजगारी की समस्या, महिला उत्पीड़न, अपराध के आंकड़ों में आज उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों से आगे है। समाज का प्रत्येक वर्ग परेशान और दुखी है। सरकारी लूट से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। बीजेपी सिर्फ झूठ फैलाकर दूसरे के कार्यों को अपना बताने में लगी है।"

यहां उल्लेखनीय है कि इंग्लिश अखबार मेल टुडे के मुताबिक समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया की 46वीं पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित पार्टी मीटिंग में श्री अखिलेश यादव के पिताश्री माननीय मुलायम सिंह यादव ने कहा था, *"समाजवाद पार्टी के मंत्रियों के आचरण पर कोई सवाल नहीं उठना चाहिए। संयम से काम लीजिए। कुछ सुविधा ले लीजिए, कुछ कमा लीजिए, कुछ खा लीजिए लेकिन पांच सालों में नौजवानों ने जो कुर्बानियां दी हैं, उन पर आंच नहीं आनी चाहिए।"*
मुलायम सिंह यादव का यह बयान उनके छोटे भाई और तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर शिवपाल यादव की उस सलाह को दोहराता नज़र आया था, जो उन्होंने नौकरशाहों को दी थी। 9 अगस्त 2012 को शिवपाल यादव ने कहा था, *'अगर मेहनत करोगे तो थोड़ी-बहुत चोरी कर सकते हो, लेकिन आप डकैती नहीं डाल सकते।'* हालांकि, बाद में शिवपाल ने कहा था कि उन्होंने यह कॉमेंट मजाकिया लहजे में किया था। इस मामले को हाइलाइट करने पर उन्होंने कुछ पत्रकारों को धमकी भी दी थी। (यह पूरी खबर नवभारतटाइम्स की वेबसाइट पर 2012 में छपा था)
श्रीमान अखिलेश यादव ने यदि अपने पिताश्री मुलायमसिंह यादव और तातश्री शिवपाल यादव को नौकरशाहों और सपा सरकार के मंत्रियों को ग़लत नसीहतें देने से रोका होता और गायत्री प्रजापति जैसे नेताओं पर लगाम कसी होती तो शायद आज समाजवादियों को बुरे दिन न देखने पड़ते। उत्तरप्रदेश की जनता ने माननीय  अखिलेश यादव को प्रदेश सरकार की बागडोर क्या इसीलिए सौंपी थी कि वह केवल एक मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते रहें, क्या उनका कोई उत्तरदायित्व नहीं था?  आख़िर क्या कारण था कि 2017 में उत्तरप्रदेश की जनता ने "विकास पुरुष" के हाथों से सत्ता छीनकर भाजपा के हाथों में थमा दी थी। श्री अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को गम्भीरता पूर्वक आत्ममंथन करना चाहिए था कि आख़िर किन कारणों से उनके हाथों से सत्ता फिसल गई थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में तमाम कोशिशों के बावजूद भी समाजवादी पार्टी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई थी। क्या सपा के थिंकटैंक ने इस विषय पर गम्भीरता से विचार करने का कष्ट किया?
समाजवादी पार्टी ने जिस प्रकार से खुलेआम तुष्टिकरण की राजनीति की है, और लगातार गुंडों-माफियाओं और आतंकियों को संरक्षण दिया, क्या उससे उनकी निष्पक्षता और ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा? 
श्री अखिलेश यादव बखूबी जानते हैं कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार , गुंडागर्दी और तुष्टिकरण किस हद तक था। सपा सरकार में किस प्रकार से सरकारी योजनाओं में तुष्टिकरण का खेल खेला गया, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार द्वारा संचालित ‘हमारी बेटी उसका कल’ योजना के तहत मुस्लिम लड़कियों को तीस हजार रुपये का अनुदान उच्च शिक्षा के तहत दिया गया। जिसपर तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री अवधेश प्रसाद ने विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के रघुनंदन भदौरिया के प्रश्न के लिखित उत्तर मे कहा था कि मुस्लिम लड़कियों की तरह निर्धन हिंदू या अन्य वर्ग की लड़कियों को अनुदान देने की कोई योजना नहीं है।"
सरकारी योजनाओं में इस प्रकार के भेदभावपूर्ण रवैये को क्या संवैधानिक माना जा सकता है? क्या एक "सेक्युलर" सरकार के  लिए ऐसा करना न्यायपूर्ण और निष्पक्षता का उदाहरण माना जा सकता है? 
माननीय अखिलेश यादव को इन तमाम प्रश्नों के उत्तर जनता को देने ही होंगे।


🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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