मिलते हैं मुस्कुरा कर वो गले, मगर "ख़ंजर" पीठ पर घोंपते हैं

आजकल उत्तरप्रदेश में बहरूपियों की मानो बाढ़ सी आई हुई है। जिधर देखिये आपको कुछ लोग रामनाम का दोशाला ओढ़े हुए मंदिर-मंदिर भटकते हुए मिल जाएंगे। जहां कुछ लोग राम नाम का जप कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ बहरूपियों को हरे कृष्णा-हरे कृष्णा का जाप करते हुए भी देखा जा सकता है। कुछ तो अपने आपको श्रीकृष्ण का वंशज बताने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। दो बहरूपिये तो विशेष रूप से दिल्ली से इम्पोर्ट हुए हैं, जिनमें से एक सज्जन तो किसी ज़माने में सिनेमाओं के टिकट ब्लैक करने का घोर पाप भी किया करते थे। और उत्तरप्रदेश की जनता ने स्याही से उनका मुहं भी काला कर दिया था, और वह अपना मुहं काला कराकर दबे पांव भाग निकले थे। लेकिन बेशर्मी की हद देखिये कि इतना सबकुछ होने के बावजूद भी वह अपना काला मुहं लेकर उत्तरप्रदेश में पुनः प्रयासरत हैं। एक और भाई-बहन का जगप्रसिद्ध जोड़ा उत्तरप्रदेश में माथा टेकते हुए घूम रहा है, गले में जेएनयू धारण किये हुए, सत्तात्रेय गोत्र के यह पोंगापण्डित इससे पहले भी मंदिरों में काफी माथा फोड़ चुके हैं, लेकिन इनके हाथ में आया बाबा जी का ठुल्लू।
मजे की बात यह है कि आजकल जो लोग भगवा वस्त्र लपेटकर और माथे पर लम्बा-चौड़ा तिलक लगाए गली-गली भटक रहे हैं, यह वही लोग हैं जो कल तक "सेखयुलर" नामक ख़तरनाक़ बीमारी के वायरस से पीड़ित थे। यह वही बीमारी है जो कि एक समय हमारे देश में एक महामारी के रूप में तेज़ी से फैल रही थी। इस घातक बीमारी के मरीज़ को राष्ट्रवाद, हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदी से मानो घृणा सी होने लगती थी। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति "भगवा रंग" से ऐसे घबराता है कि जैसे कुत्ता काटे का मरीज़ पानी देखकर डरता है। इसे हिन्दुफोबिया भी कह सकते हैं। इस बीमारी के मरीज़ को भगवान श्रीराम का नाम सुनते ही लकवा मार जाता है। और तो और इस बीमारी का मरीज़ दरगाहों पर चादर चढ़ाने लगता था, कव्वाली गाने लगता था। 
लेकिन जैसे ही भारत में आरएसएस नामक एक देशभक्त संस्था ने "योगी-मोदी" नामक "दो वैक्सीनो" का अविष्कार किया, तैसे ही इस वायरस का तेज़ी से खात्मा शुरू हो गया और पूरे देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और श्रेष्ठ संस्कारों की बयार सी बहने लगी। अब यह बहरूपिये दरगाहों और कब्रिस्तानों में चादर चढ़ाना और अगरबत्ती लगाना छोड़कर, मंदिरों में दीपक जलाने और तिलक लगाने में ही अपना समय बिताने लगे हैं।
कब्रिस्तानों की दीवारें अब सूनी पड़ी हैं और यह लोग श्मशानों में लाशों की तस्वीरें खींचने में व्यस्त हैं।  सत्ता की मलाई चाटने के लिए इन्होंने मुफ्तखोरों को मुफ्त की बिजली, मुफ़्त का पानी और मुफ़्त का राशन बांटने का प्रलोभन भी देना शुरू कर दिया है।
पर ये बहरूपिये यह बताना भूल गए कि 300 यूनिट मुफ़्त बिजली की सौगात बांटने वालों ने, अंकित शर्मा के शरीर पर 300 जानलेवा घाव भी किये थे। जिस डायन के इशारों पर पश्चिम बंगाल में हजारों श्रीरामभक्तों की माताओं-बहनों की इज़्ज़त-आबरू लूटी गईं, लाखों श्रीरामभक्तों की लाशों को गिद्ध नोच-नोचकर खा गए, अनेक श्रीरामभक्त घर से बेघर हो गए, उसी डायन से यह बहरूपिये गले मिलने गए थे और उत्तरप्रदेश में जीत का मंत्र पूछ रहे थे।

कल तक अपने मंचों से अल्लाह हू अकबर और अपनी रैलियों में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगवाने वाले आज क्योंकर भगवा पहनकर हरे राम-हरे कृष्ण का जाप करते घूम रहे हैं, यह बात पब्लिक बख़ूबी समझ रही है। यह पब्लिक है यह सब जानती है। कौन रामभक्त है औऱ जिन्नाभक्त सब पहचानती है।

इस मौके पर किन्हीं साहब का एक शेर इन बहरूपियों की नज़र अर्ज करते हैं-

*मिलते हैं मुस्कुरा कर वो गले, मगर "ख़ंजर" पीठ पर घोंपते हैं।*

*बातों में तो उनकी शहद घुला है, मगर नियत है "क़त्ल" करने की।।*




🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

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