एक बार फिर जिन्ना का जिन्न बोतल से बाहर निकला

एक बार फिर जिन्ना का जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। बीजेपी कार्यकर्ता शिवांग तिवारी ने कथिततौर पर खून से खत लिखकर पीएम मोदी से मांग की है कि जिन्ना की तस्वीर हटवाई जाए. वही जिन्ना जिसने पाकिस्तान बनाकर हिंदुस्तान के दो टुकड़े करवाए. उल्लेखनीय है कि 14 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद अलीगढ़ जाने वाले हैं, ऐसे में एक बार फिर जिन्ना की तस्वीर पर विवाद शुरू हो गया है.
बीजेपी कार्यकर्ताओं ने साफ कहा है कि अगर प्रशासन जिन्ना की तस्वीर AMU से नहीं हटाता है तो वो खुद ही ये काम कर देंगे.
इससे पहले अगस्त 2021 में हुए करणी सेना के जिला स्तरीय अधिवेशन में करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष व भाजपा के हरियाणा प्रदेश के प्रवक्ता सूरजपाल अम्मू ने समाज के लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि "एएमयू में जिन्ना की तस्वीर को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जो लोग जिन्ना की तस्वीर का समर्थन करते हैं, उन्हें करणी सेना जाने का खर्च देगी और पाकिस्तान के बॉर्डर तक छोड़कर भी आएगी।"
मालूम हो कि इससे पहले भी अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर हटाने की मुहिम शुरू की थी लेकिन जिन्नागैंग ने इस मांग का पुरजोर विरोध किया था। 

जिस तस्वीर को लेकर हंगामा मचाया जा रहा है वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन हॉल में 1938 से लगी हुई है। उस समय मौहम्मद अली जिन्ना को AMU की आजीवन सदस्यता दी गई थी। यह आजीवन मानद सदस्यता AMU स्टूडेंट यूनियन देता है, जिसने महात्मा गांधी, BR अम्बेडकर, सीवी रमन, जेपी नारायण और मौलाना आज़ाद को भी आजीवन सदस्यता दी थी। 
भाजपा सांसद सतीश गौतम के हवाले से लिखा गया था, ''ये तस्वीर भले ही आज़ादी से पहले लगाई गई हो लेकिन इसे अब तक लगाए रखने का क्या औचित्य है. जिन्ना के कारण देश का बंटवारा हो गया. इस तस्वीर को पाकिस्तान भेज देना चाहिए।"

जिन्ना की तस्वीर हटाने के मुद्दे पर छात्रसंघ के अध्यक्ष उस्मानी ने कहा था कि ''ये लोग जिन्ना की तस्वीरों की बात करते हैं लेकिन गांधी की हत्या के अभियुक्त सावरकर को भूल जाते हैं. देश की संसद, जहां संविधान की रक्षा होती है वहां सावरकर की तस्वीर क्यों लगाई हुई है. फिर सावरकर की तस्वीर भी हटाइए."

हमारा प्रश्न यह है कि आखिर जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए इतना शोर क्यों? क्या केवल जिन्ना की तस्वीर हटाने मात्र से भारत आतंक मुक्त हो जाएगा? 
जिन्ना एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा है। मौहम्मद अली जिन्ना आज इस देश में क्या दुनिया में भी नहीं है। लेकिन जिन्नावादी विचारधारा आज भी इस देश में जीवित है और लगातार पुष्पित-पल्लवित हो रही है। भारत की तुष्टिकरण की राजनीति ने जिन्नावादी विचारधारा को हमेशा सींचने का कार्य किया है और आज वही जिन्नावाद एक छोटे से पौधे से वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। जिसका वास्तविक रूप हम और आप CAA-NRC के विरोध के समय देख चुके हैं। मज़हबी कट्टरता और राष्ट्रवादियों के विरुद्ध नफ़रत का वह नमूना हम शाहीन बाग़ में भी देख चुके हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की नींव रखने वाले सर सैयद अहमद खान के हिन्दू और हिंदी को लेकर जो विचार थे, उन्हें मौहम्मद अली जिन्ना ने तो केवल आगे बढ़ाने का ही कार्य किया है।
जिन्ना का चरित्र भारत में आज भी जीवित है, तो फिर उसका चित्र हटाने मात्र से किसी को क्या लाभ हो सकता है? जिस जिन्ना ने मज़हब के नाम पर भारत के दो टुकड़े किये, उसी जिन्ना की तस्वीर को कुछ कट्टरपंथियों ने अपने हृदय में बसाया हुआ है। आप एक चित्र को तो हटा सकते हैं लेकिन हजारों-लाखों की तादाद में जो "जिन्ना" इस देश में रहकर निरन्तर इसके टुकड़े करने के मंसूबे बना रहे हैं और अंदर ही अंदर इसे खोखला बनाने पर तुले हैं, उनसे आप कैसे निपटेंगे।

कोई भी व्यक्ति ताक़तवर या कमज़ोर नहीं होता बल्कि उसकी सोच उसे ताक़तवर या कमज़ोर बनाती है। जिन्ना का चित्र कोई मायने नहीं रखता किंतु उसका चरित्र बहुत मायने रखता है। सांप को मारने से पहले उसके ज़हर को ख़त्म कर देना चाहिए। बिना ज़हर का सांप एक रस्सी से ज़्यादा कुछ नहीं होता और रस्सी से किसी को डरना नहीं चाहिए।

प्रश्न यह भी है कि आप रस्सी से क्यों डर रहे हैं, या फिर आप रस्सी को सांप बताकर दूसरों को डराने का प्रयास क्यों कर रहे हैं। आख़िर क्या कारण है कि चुनाव से ठीक पहले ही जिन्ना का जिन्न बोतल से बाहर निकलता है और चुनाव बीतने के तुरन्त बाद वह वापस बोतल में समा जाता है। सबको मालूम है कि 2022 में उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, और यह भी सभी जानते हैं कि देश में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है। उत्तरप्रदेश में श्री योगी आदित्यनाथ जैसे हिन्दू शिरोमणि मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर रहे हैं और  केंद्र में हिन्दू हृदय सम्राट श्री नरेन्द्र मोदी शासन चला रहे हैं। तब ऐसे में क्या यह प्रश्न उठना  न्यायसंगत नहीं है कि पिछले 5 सालों में जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए कोई कड़ा कदम क्यों नहीं उठाया गया? क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का प्रशासन और छात्रसंघ भारत सरकार से अधिक ताक़तवर हो गया है? क्या जिन्नागैंग उत्तरप्रदेश सरकार पर हावी है? आख़िर क्या कारण है कि राष्ट्रवादी सरकारें मज़हबी कट्टरता के प्रतीक और भारत के पहले आतंकी मौहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को AMU के हॉल से नहीं हटा सके। 
जिन्ना इस देश और देशवासियों का सबसे बड़ा दुश्मन है, था और हमेशा रहेगा। जहां तक वीर दामोदर सावरकर का प्रश्न है वह इस देश के लिए जिये और इसी देश में उन्होंने अपने प्राण भी त्याग दिए। लेकिन जिन्ना एक भगोड़ा आतंकी था जिसने इस देश को एक ऐसा ज़ख्म दिया है जो अब नासूर बनता जा रहा है। इसलिए प्रत्येक राष्ट्रभक्त और देशभक्त को चाहिये कि वह जिन्ना को अपने दिल और दिमाग़ दोनों से निकालकर बाहर फेंक दे। परन्तु इसके लिए राष्ट्रवादी संगठनों और सरकारों को सकारात्मक और सार्थक पहल करनी होगी। केवल क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए देशवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ भी एक प्रकार का देशद्रोह ही है।

🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

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