सोनिया गांधी के इस बयान में उनकी सत्ता के प्रति छटपटाहट स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है
मीडिया सूत्रों के हवाले से ख़बर मिली है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष के 19 दलों के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा है कि *"देश की जनता मोदी शासन से मुक्ति चाहती है। इसलिए विपक्षी दलों को एकजुट होकर 2024 के लोकसभा चुनाव पर फोकस करना है।"*
श्रीमती गांधी ने विपक्ष के प्रमुख नेताओं और मुख्यमंत्रियों को वर्चुअल बैठक के जरिए संबोधित करते हुए कहा कि *विपक्षी दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव की योजना पर व्यवस्थित रूप से और एकमात्र एजेंडे के तौर पर काम करना है। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों की अपनी कुछ बाध्यताएँ हो सकती हैं लेकिन चुनौती लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की है और इस चुनौती से निपटने के लिए सब को एकजुट होकर के काम करना है तथा मिलकर मोदी सरकार से देश की जनता को मुक्ति दिलाना है।* श्रीमती गांधी ने कहा कि *विपक्षी दलों को एकजुटता से बहुत बड़ा राजनीतिक युद्ध लड़ना है।*
यहां गौरतलब है कि श्रीमती गांधी को आज समझ में आया कि देश की जनता क्या चाहती है। काश अगर यह बात श्रीमती गांधी और उनके होनहार विद्वान सुपुत्र श्रीमान राहुल गांधी की समझ में पहले ही आ जाती तो शायद भारत की जनता को श्री नरेन्द्र मोदी जैसा यशस्वी और राष्ट्रभक्त प्रधानमंत्री कभी नहीं मिल पाता। परन्तु कहते हैं कि ईश्वर जो कुछ करता है, भले के लिए ही करता है। श्रीमती सोनिया गांधी शायद यह समझ पाने में असक्षम हैं कि भारत की जनता अब किसी भी विदेशी के हाथ में अपने भाग्य की बागडोर देना नहीं चाहेगी। इस देश की जनता ने लगभग 60 सालों तक खून के घूंट पीकर एक परिवार की तानाशाही को बर्दाश्त किया है। और अब जाकर भारत को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो इस राष्ट्र का प्रहरी बनकर भारत की जनता की रक्षा और देखभाल कर रहा है।
आज कोई चाबी वाला गुड्डा इस देश का प्रधानमंत्री बनने की सोच ही नहीं सकता जिसने 10 वर्षों तक केवल उतना ही किया जितनी कि उसमें चाभी भरी गई थी। श्रीमती सोनिया गांधी शायद भूल रही हैं कि देश की जनता को किसी ऐसे प्रधानमंत्री की कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी जो देश के संसाधनों पर केवल एक वर्ग विशेष का ही अधिकार मानता हो। जो समाज में समानता और समरूपता की बात न करता हो।
श्रीमति सोनिया गांधी को समझना होगा कि यदि भारत की जनता को "मोदीराज" से मुक्ति चाहिए होती तो शायद कांग्रेस को छोटे-छोटे दलों के आगे झोली नहीं फैलानी पड़ती।
दरअसल, श्रीमती सोनिया गांधी के इस बयान में कांग्रेस पार्टी की सत्ता के प्रति छटपटाहट स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। कांग्रेस की सत्तालोलुपता और "नेहरू परिवार" का सत्ता से मोह इस देश की जनता के लिये कोई नई बात नहीं है। इस परिवार की समस्या यह है कि इन्होंने सदैव विलासितापूर्ण राजसी जीवन जिया है, परन्तु श्रीमोदी सरकार के आने के पश्चात वह पूरी तरह से नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। सत्ता के लिए जनता की भावनाओं और अपनों के जीवन से सदैव खिलवाड़ करने वाली कांग्रेस पार्टी आज सत्ता प्राप्ति के लिए ठीक ऐसे ही तड़प रही है जैसे जल से निकली हुई मछली ऑक्सीजन को पाने के लिए तड़पती और छटपटाती है।
श्रीमती सोनिया ने कथिततौर पर अपने बयान में यह भी कहा है कि "चुनौती लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की है।"
सोनिया जी शायद भूल गईं कि श्री नरेन्द्र मोदी उसी लोकतंत्र की देन हैं। सच तो यह है कि भारत पर अपना एकछत्र राज समझने वाले शाही परिवार की बहू को आज लोकतंत्र का वास्तविक महत्व समझ आ गया है। सोनिया जी जान चुकी हैं कि यह देश नेहरू परिवार से नहीं चलता। उन्हें यह भी समझ आ चुका है कि नेहरू परिवार इस देश का अन्नदाता नहीं है बल्कि नेहरू परिवार को इस देश की जनता ने ही पाला-पोसा है। सोनिया जी को अब तक यह अच्छी तरह समझ आ जाना चाहिए कि "नेहरू परिवार" और "कांग्रेस पार्टी" इस देश के भाग्य विधाता न तो कभी थे और न ही कभी हो सकते हैं। इस देश का भाग्यविधाता केवल इस देश की जनता-जनार्दन है, जिसने भारतीय संविधान के अनुरूप लोकतांत्रिक प्रक्रिया से श्री नरेन्द्र मोदी को इस देश का "चौकीदार" बनाया है और जब तक जनता नहीं चाहेगी, कोई भी "गठबंधन" अथवा "विदेशी ताक़त" माननीय नरेंद्र मोदी का बाल भी बांका नहीं कर सकती है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
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