आदरणीय मोदी जी यह आपकी राजनीति हो सकती है, राष्ट्रनीति नहीं
सादर प्रणाम
महोदय,
यद्यपि आपकी राष्ट्रभक्ति और राष्ट्र के प्रति आपकी निष्ठा पर संदेह करना ठीक ऐसा ही है जैसे कोई प्रभु श्री हनुमान की श्रीरामभक्ति और निष्ठा पर संदेह करने का दुस्साहस करे।
*परन्तु हम बहुत विनम्रता किंतु पूर्ण दृढ़ता से आपसे जानना चाहते हैं कि अफगानी नागरिकों को भारतवर्ष में शरण देने के प्रति कौन सा राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रहित छुपा हुआ है। यह तो ठीक वैसी ही नीति है जैसी कि स्व. मोहनदास करमचंद गांधी ने भारत-पाक विभाजन के समय शरण देकर की थी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने बांग्लादेशियों को शरण देकर की थी। आज आप भी बिल्कुल वही सब दोहरा रहे हैं। यह राजनीति तो हो सकती है परन्तु इसे किसी भी दशा में राष्ट्रनीति नहीं माना जा सकता है।*
आप शायद भूल रहे हैं कि राजा परीक्षित को जिस तक्षक नाग ने डसा था वह एक छोटे से फल में सूक्ष्म रूप में राजा परीक्षित के महल में पहुंचा था। परन्तु वहां पहुंचते ही उसने अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया और उसी विराट रूप में आकर उसने राजा परीक्षित को डस लिया था।
भारतवर्ष की सबसे बड़ी विडम्बना यही रही है कि हमने नागपंचमी जैसी कु-परम्पराओं को जीवित रखा जिसमें सांपों को दूध पिलाया जाता है। हम यह क्यों भूल जाते हैं कि सर्प अपना मूलगुण कभी नहीं छोड़ सकता। वह सदा ही जहर उगलेगा। विद्वानों का कथन है कि समस्या को बढ़ने से पूर्व ही उसे समाप्त कर देना चाहिए, परन्तु हम मूर्ख अपने ही काल को पालने-पोसने में लगे रहते हैं।
महोदय,
इतिहास से सीखना ही बुद्धिमत्ता है, इतिहास को दोहराना महान मूर्खता है। लगता है कि आप अति उदारीकरण की नीतियों के वशीभूत होकर भारत के अंधकारमय भविष्य को नहीं देख पा रहे हैं। आप यह क्यों भूल रहे हैं कि "अति सर्वत्र वर्जयेत" अर्थात अति करने से सदैव बचना चाहिए।
महोदय,
भारत कोई धर्मशाला अथवा अनाथ आश्रम नहीं है। आप सही मायनों में भारत के नागरिकों के मूल अधिकारों में अनावश्यक हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रहे हैं, जो कि कदापि उचित नहीं है।
आपको मालूम हो कि भारत आज कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। क्या ऐसी विषम परिस्थितियों में इस प्रकार दूसरों के फटे में टांग अड़ाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित जान पड़ता है?
महोदय,
भारत में पहले से ही रोहिंग्या मुस्लिम, बांग्लादेशी मुस्लिम सहित तमाम पाकिस्तानी अवैध रूप से घुसपैठ बना चुके हैं, और हमारे अधिकारों में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहे हैं। और ऊपर से अब हमें इन अफगानी मुस्लिम शरणार्थियों का दंश झेलना पड़ेगा।
आखिर हम कब तक अपनी खून-पसीने की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इस भारत सरकारों की इस विनाशकारी "अति उदारीकरण" की भेंट चढ़ाते रहेंगे?? क्या आपको भारत को विश्वगुरु बनाने का एकमात्र यही मार्ग सूझ रहा है। विश्व में 57 मुस्लिम देश हैं, स्वयं तालिबान भी तो मुस्लिम है। उसने तो अपने देश का नाम ही "इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगान" रख छोड़ा है, तब वहां से अफगानी मुस्लिमों को भारत में बसाने का भला क्या औचित्य है?
महोदय,
सम्भव है कि आज किसी विशेष विदेश नीति के चलते वर्तमान में हमें इसका कोई लाभ हो जाये परन्तु भविष्य में इससे राष्ट्र का अहित ही होना है। शायद आप भूल रहे हैं कि नज़दीक के फायदे के लिए दूर का नुकसान करना, दूरंदेशी का प्रमाण नहीं है। और इस देश की जनता आपको एक दूरदर्शी नेता मानती है।
हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप किसी भी परिस्थिति में भारतवर्ष की 130 करोड़ जनता के विश्वास को टूटने नहीं देंगे।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।





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