भाईचारा शब्द की कीमत वो क्या समझेंगे साहब, जिन्होंने आपको केवल चारा समझ रखा है

"अगर भारत से पुलिस को हटा लिया जाये तो 15 मिनट के अंदर यहां के 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं का खात्‍मा कर सकते हैं।"* यह बयान किसी तालिबान से नहीं आया था और न ही किसी हाफ़िज़ सईद ने दिया था। बल्कि इस बयान को देने वाला एक अहंकारी, कपटी, धूर्त और मक्कार हैदराबादी "भाईजान" था। जिसके बड़े भाईसाहब हमेशा "संविधान" और "भाईचारा" शब्दों को च्युंगम की तरह चबाते घूमते हैं।
"भाईचारा" शब्द इन जैसे "भाईजानों" के लिए "शब्दों का मायाजाल" है, जिसमें उलझाकर यह अपने ही भाइयों को "चारा" बना डालते हैं। जिसकी ताज़ी और बेहतरीन मिसाल अफगानिस्तान में हो रहे जुल्मों-सितम हैं। 
आज हम अपनी आंखों से देख रहे हैं, सुन भी रहे हैं और शायद प्रतिक्रिया में बोल भी रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि ऐसे मंजर इतिहास में कोई पहली दफ़ा हो रहे हैं। इससे पहले यह सब इसी भारत में हो चुका है, जिसका सबसे लेटेस्ट उदाहरण कश्मीर है। जहां कश्मीरी हिंदुओं के साथ ठीक वही सुलूक किया गया था जो अफगानिस्तान में यह लोग अपने ही "बिरादरों" के साथ आज कर रहे हैं। अब आप स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि भारत के जिन हिस्सों में तुर्कों, अफगानों, पठानों और मुगलों का शासन रहा है, वहां के हिंदुओं के साथ कितना अमानवीय और क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया होगा। न जाने कितने मासूमों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया होगा, न जाने कितनी अबलाओं की आबरू को रौंदा गया होगा, न जाने कितने नौजवानों को सूली पर टांग दिया गया होगा और न जाने कितने कमज़ोर और बूढ़े लोगों को बेदर्दी के साथ क़त्ल कर दिया गया होगा। लेकिन वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने इस क्रूरतम अत्याचार को बड़ी चतुराई के साथ "गंगा-जमुनी तहज़ीब" जैसे खोखले और बेबुनियाद शब्दों की आड़ में छुपा लिया। और हमें "बापू" के "तीन बंदर" बनाकर बैठा दिया गया, जो इतिहास में कट्टरपंथी बादशाहों के क्रूरतम अत्याचारों को न देख सके, न सुन सके और न ही उसपर कभी कुछ बोलने की कभी हिम्मत जुटा सके। बस अहिँसा की प्रतिमूर्ति बने ख़ामोशी से अपने और अपनों के घरों के फुंकने का तमाशा देखते रहे। एक गाल से दूसरे गाल और दूसरे से तीसरे गाल पर थप्पड़ खाते रहे। और आज तक वही दस्तूर क़ायम है।

आज भी वही हो रहा है, तालिबानी मानसिकता का महिमामंडन किया जा रहा है, बड़ी बेशर्मी से उनकी तुलना भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से की जा रही है, औरतों और बच्चों के साथ वहशियाना हरकतें करने वालों के लिए जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं। 

विडम्बना देखिये कि इस बार भी वही कांगी, वामी और जिहादी इस घिनौने और घृणित मानसिकता के पैरोकार बने हुए हैं। आतंकवाद और आतंकियों का महिमामंडन करने वाले कभी किसी के नहीं हो सकते, जो अपने भाइयों का न हुआ वह तुम्हारा कैसे हो सकता है। जिस दिन भाईजान ताकतवर हो गए उसी दिन से तुम्हारा "चारा" बनना शुरू हो जाएगा।

🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

व्हाट्सऐप-

 9058118317

ईमेल-
 manojchaturvedi1972@gmail.com

ब्लॉगर-

https://www.shastrisandesh.co.in/

फेसबुक-

https://www.facebook.com/shastrisandesh

ट्विटर-

https://www.twitter.com/shastriji1972

*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।

Comments

Disclaimer

The views expressed herein are the author’s independent, research-based analytical opinion, strictly under Article 19(1)(a) of the Constitution of India and within the reasonable restrictions of Article 19(2), with complete respect for the sovereignty, public order, morality and law of the nation. This content is intended purely for public interest, education and intellectual discussion — not to target, insult, defame, provoke or incite hatred or violence against any religion, community, caste, gender, individual or institution. Any misinterpretation, misuse or reaction is solely the responsibility of the reader/recipient. The author/publisher shall not be legally or morally liable for any consequences arising therefrom. If any part of this message is found unintentionally hurtful, kindly inform with proper context — appropriate clarification/correction may be issued in goodwill.