चांदपुर विधानसभा में बसपा के टिकट के लिए घमासान शुरू
चांदपुर विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर अभी से घमासान शुरू हो चुका है लेकिन अभी तक जो सबसे मज़बूत दावेदार सामने आ रहे हैं उनमें से एक हैं वर्तमान बसपा विधानसभा प्रभारी डॉ. शकील हाशमी साहब और दूसरे हैं पूर्व बसपा विधायक मौहम्मद इक़बाल साहब। हालांकि इन दो नामों के अतिरिक्त एक पूर्व सपा नेता का भी नाम चर्चाओं में है लेकिन अभी तक उसका कोई पुख़्ता सबूत हमारे सामने नहीं आया है। अलबत्ता विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दो हिंदुवादी नेता जरूर आजकल बसपा के दिग्गज नेता सतीश चंद्र मिश्र के इर्दगिर्द चक्कर काटते देखे गए हैं। हो सकता है कि भाजपा की ओर से उन्हें निराशा दिखाई दे रही हो।
बहरहाल, कुल मिलाकर सबसे मज़बूत दावेदारी में मौहम्मद इक़बाल साहब और शकील हाशमी साहब का नाम चर्चा में है। यह दोनों ही दावेदार मुस्लिम शेख हैं और दोनों ही आजकल काफ़ी मेहनत-मशक्कत कर रहे हैं।
अंतर केवल इतना है कि जहां एक ओर शकील अहमद साहब विधानसभा की चुनावी राजनीति के नए रंगरूट हैं वहीं मौहम्मद इक़बाल साहब चार बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें से एक बार वह निर्दलीय लड़े और बाकी के तीन बार वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े हैं। जिसमें से दो बार लगातार उन्होंने जीत हासिल की और पिछली बार वह रनर की भूमिका में रहे थे।
जहां मौहम्मद इक़बाल साहब को एक लंबा अनुभव होना उनका सकारात्मक बिंदु है वहीं उनके लंबे राजनीतिक करियर के चलते उनके शत्रुओं की सूची भी खासी लंबी है। उधर डॉ. शकील हाशमी साहब की स्थिति "न काहू से दोस्ती और न काहू से बैर" वाली है। क्योंकि जैसा कि हमने कहा कि वह नए-नए राजनीतिक रंगरूट हैं, इसलिये उनके शत्रुओं की संख्या न के बराबर ही है। अभी तक बसपा ने अपने विधानसभा प्रभारी में कोई फेरबदल नहीं किया है, और यह मानकर चला जाता है कि बसपा जिसको अपना विधानसभा प्रभारी बनाती है, उसी को अपना प्रत्याशी भी घोषित करती है। लेकिन अभी यह भी पूरे दावे और विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि बसपा में कोई फेरबदल हो ही नहीं सकता। यह राजनीति है यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं होता।
जहां तक मुस्लिम समाज की बात है, तो अभी तक मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर है। और चांदपुर विधानसभा के मुस्लिम समाज में अभी तो चारों ओर श्री अखिलेश यादव और स्वामी ओमवेश जी का ही बोलबाला हो रहा है।
लेकिन एक बात यहां हम अवश्य स्पष्ट करना चाहते हैं कि एक कहावत है - हाथी हमेशा हाथी ही रहेगा "मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है।" और समझदार इंसान को इतना ईशारा ही काफी है।
फिलहाल 2022 में हाथी पर कौन बैठेगा यह इस बात से तय होगा कि चांदपुर विधानसभा के "मियां-भाइयों" को कौन कितना शीशे में उतार सकता है, साथ ही बहनजी की नजरें किस पर मेहरबां होती हैं।
देखते हैं कि कौन बनेगा हाथी के मुकद्दर का सिकन्दर।।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
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