इस हिसाब से तो महाराज रावण की मूर्तियां हर चौराहे पर लगवानी चाहिएं

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कानपुर के चौबेपुर स्थित ग्राम बरुआ में भगवान परशुराम मंदिर के भूमिपूजन एवं शिलान्यास कार्यक्रम में अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. राजेंद्र नाथ त्रिपाठी पहुंचे थे। उन्होंने मंच से घोषणा की थी, कि "ब्राह्मण महासभा यूपी में प्रकाश शुक्ला और विकास दुबे की प्रतिमा स्थापित कराएगी। उन्होंने कहा कि जब फूलन देवी डकैत और ददुआ डकैत की प्रतिमा उनका समाज लगाता है, जो घोषित डकैत थे, तो जो ब्राह्मणों के महापुरुष और वीरता के प्रेरणा स्रोत हैं, उनकी प्रतिमा क्यों नहीं लग सकती है। पूरा ब्राह्मण समाज इसका समर्थन करता है।"

हम बड़ी विनम्रता से श्रीमान त्रिपाठी जी से पूछना चाहते हैं कि अगर आपके कथनानुसार विकास दुबे और श्री प्रकाश शुक्ला जैसे गुंडे-माफिया ब्राह्मण समाज के महापुरुष और वीरता के प्रेरणास्रोत हैं इसलिए उनकी मूर्ति लगनी चाहिए तो प्रश्न यह है कि फिर लँकाधिपति महाराज रावण, उनके भैया कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाथ का पुतला दहन क्यों किया जा रहा है? महाराज रावण भी तो ब्राह्मण थे और उन जैसा विद्वान और महायोद्धा तो न कल था, न आज है और न ही भविष्य में कभी होगा। तब ब्राह्मण समाज ने उनकी मूर्तियां मंदिरों में क्यों नहीं स्थापित कराईं?

प्रश्न यह भी है कि अगर कल को मुस्लिम समाज बुरहान वानी, अफ़ज़ल गुरु, याकूब मेमन, अजमल कसाब और उमर ख़ालिद जैसों की मूर्तियां चौराहों पर लगवाता है, तो आप क्या करेंगे? क्या ब्राह्मण समाज उसका भी समर्थन करेगा? क्या शहाबुद्दीन, मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की भी मूर्तियां चौराहों पर लगवा देनी चाहिए? क्या ब्राह्मण समाज की विचारधारा इतने निम्नस्तर की हो गई है कि वह दस्यु फूलन देवी और ददुआ जैसे डकैतों से अपनी तुलना करने लगा है?
क्या ब्राह्मण समाज में वीर योद्धाओं, विद्वान पुरुषों और महान संतों का अकाल पड़ गया है जो हमें विकास दुबे और श्री प्रकाश शुक्ल जैसे सड़क छाप गुंडों को वीरता और महानता का प्रेरणास्रोत बनाने की आवश्यकता है?

इस तरह के अनावश्यक और फ़िजूल के कुतर्कों से ब्राह्मण समाज का कोई लाभ नहीं होने वाला है। वैसे गलती इसमें श्रीमान त्रिपाठी जी की नहीं है। दरअसल आचार्य द्रोण और महृषि कृपाचार्य भी विद्वान ब्राह्मण थे, परन्तु दुर्योधन और शकुनि की संगति ने उनकी विद्वता और वीरता दोनों पर ग्रहण लगा दिया था। ठीक उसी प्रकार विद्वान त्रिपाठी जी भी शायद किसी दुर्योधन और शकुनि की कुटिल चालों के शिकार हो गए लगते हैं।

त्रिपाठी जी का यह भी कहना है कि उनकी बात को समस्त ब्राह्मण समाज का समर्थन है। यहां शायद त्रिपाठी जी ब्राह्मण समाज को अंडरएस्टीमेट कर गए हैं, क्योंकि वह स्वयं भी जानते हैं कि ब्राह्मण समाज एक बुद्धिजीवी समाज है जिसने सदैव हिन्दू समाज का नेतृत्व किया है। प्रत्येक ब्राह्मण स्वयं में एक कुशल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ  और नेता होता है। वह स्वयं में ही ब्रह्म है, वह निर्णय लेना जानता है। ब्राह्मण कोई भेड़-बकरी नहीं जिसे कोई भी हांक ले, वह भगवान परशुराम का वंशज है, जिन्होंने पूरी पृथ्वी पर अकेले ही नेतृत्व किया।

पंडित राजेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने आगे कहा कि "विकास दूबे और श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ अन्याय हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर वे गुनाहगार थे, तो उन्हें न्यायालय सजा देता। सरकार कौन होती है, सजा देने वाली?

यहां प्रश्न यह बनता है कि यदि कोई आतंकी सुरक्षा-बलों की मुठभेड़ में मारा जाता है, अथवा मार दिया जाता है तो भी क्या इसके लिए सरकार को दोष दिया जाएगा। क्या सुरक्षा बलों को आतंकवादियों, देशद्रोहियों और समाज विरोधियों को मालाएं पहनाकर बैंड-बाजे के साथ माननीय न्यायालय को सौंप देना चाहिए?  क्या ब्राह्मण समाज बाटला हाउस कांड जैसी तमाम मुठभेड़ों का विरोध करेगा? या फिर आदरणीय त्रिपाठी जी भी माननीय सोनिया जी का अनुसरण करते हुए इशरत जहां की मौत पर रातभर आंसू बहाएंगे।

त्रिपाठी जी ने एक कहावत जरूर सुनी होगी कि "जैसा खाये अन्न वैसा हो जाये मन।" बाकी तो वह स्वयं बुद्धिमान हैं, इसलिए उनके लिए इतना ईशारा ही काफी है। 

🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

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