मादरे वतन पर जो लगाते हैं तोहमत,वो कहते हैं कि उनके हिस्से में माँ आई

मुन्नवर राणा साहब चंद "दरबारी शायरों" की नज़र हमारा एक शेर पेश है. ज़रा मुलाहिज़ा फरमाइए-

*मादरे वतन पर जो लगाते हैं तोहमत।*
*वो कहते हैं कि उनके हिस्से में माँ आई।।*

*चंद सिक्कों में जो बेच गए ज़मीर अपना।*
*वही चीखते हैं मुल्क़ में बढ़ गई महंगाई।।*

उर्दू के "दरबारी शायर" मुनव्वर राणा ने कहा है कि- *"अगर योगी आदित्यनाथ 2022 में फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो वह उत्तर प्रदेश छोड़ देंगे। उन्होंने कहा कि अगर योगी आदित्यनाथ फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं, तो यह सिर्फ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी की वजह से होगा। ओवैसी और भारतीय जनता पार्टी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बीजेपी और ओवैसी लोगों को गुमराह कर रहे हैं। दोनों की चुनावी लाभ के लिए मतदाताओं के ध्रुवीकरण की नीति अपना रहे हैं।"* राणा ने यह भी कहा कि *अगर यूपी के मुसलमान ओवैसी के जाल में पड़ गए और एआईएमआईएम को वोट दिया, तो कोई भी योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनने से रोक नहीं सकेगा। अगर योगी फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं, तो मैं मान लूंगा कि राज्य अब मुसलमानों के रहने लायक नहीं रह गया है और मुझे दूसरी जगह पलायन करना पड़ेगा।*. 

"दरबारी शायर" और कथित बुद्धिजीवी मुन्नवर राणा की उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ से मुख़ालफ़त तो समझ आती है, लेकिन "मुस्लिम हृदय सम्राट" जनाब असदुद्दीन ओवैसी और भारत में मुसलमानों की एकमात्र हितैषी AIMIM पार्टी से उनकी मुख़ालफ़त हमारी समझ से परे है।

उल्लेखनीय है कि यह वही मुन्नवर राणा हैं जिनकी साहबजादी सुमैया राणा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में चल रहे सीएए, एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के अवसर पर धरने पर कहा था, *“हमें ध्यान रखना है कि हमें इतना भी न्यूट्रल (तटस्थ) नहीं होना है कि हमारी पहचान ही खत्म हो जाए। पहले हम मुस्लिम हैं और उसके बाद कुछ और हैं। हमारे अंदर का जो दीन है, जो इमान है, वह जिंदा रहना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम अल्लाह को भी मुँह दिखाने लायक न रह जाएँ।”* 

इस हिसाब से तो मुन्नवर राणा को एकमात्र मुस्लिम नेता ओवैसी साहब का ही समर्थन करना चाहिए, न केवल समर्थन बल्कि ओवैसी साहब और उनकी पार्टी को अधिक से अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए। लेकिन इसके उलट वह तो खुलकर "मुस्लिम हृदय सम्राट" ओवैसी साहब का विरोध कर रहे हैं। विचारणीय है कि मुन्नवर राणा जैसे कट्टरपंथी मुस्लिम को ओवैसी साहब से भला क्या दिक़्क़त है। वह क्यों छाती फाड़कर ओवैसी की मुख़ालफ़त पर उतर आये हैं। क्या मुन्नवर राणा नहीं चाहते कि उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री एक मुस्लिम बने? क्या मुन्नवर राणा को अल्लाह का खौफ़ नहीं है? क्या मुन्नवर राणा के अंदर का दीन और ईमान मर गया है या फिर चंद सिक्कों की ख़ातिर राणा साहब ने अपना ज़मीर बेच दिया है?
श्रीरामजन्मभूमि पर आए फैसले के बाद मुनव्वर राणा ने कथितरूप से कहा था,- *'रंजन गोगई जितने कम दाम में बिके, उतने में हिंदुस्तान की एक ‘वेश्या’ भी नहीं बिकती है.'* 

अब मुन्नवर राणा बताएं कि वह ख़ुद वेश्या से ज़्यादा कीमत में बिके हैं या उससे कम कीमत में? और उनकी बोली किसने लगाई है? अगर नहीं बिके हैं तो दें अपनी कौम का साथ, और बोलें "ओवैसी जिंदाबाद".

🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

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