जहां गए अरविंद केजरीवाल, वहीं बांटा मुफ़्त का माल
ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल का चुनावी मंत्र है-
"भाड़ में जाए जनता, कौन करे विकास।
मुफ़्त का माल बांटकर चुनाव जीतो झकास।।"
भारत की राजनीति में जब भी "मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाले नेताओं" की सूची बनाई जाएगी तब माननीय अरविंद केजरीवाल का नाम उस सूची में सबसे ऊपर लिखा जाएगा। अरविंद केजरीवाल जैसे नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को परवान चढ़ाने के लिए भारत की जनता में "मुफ्तखोरी" की गन्दी आदत डालने का हरसम्भव प्रयास कर रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है कि जब ऑस्ट्रेलिया से शिक्षा ग्रहण किये हुए और खुद को "विकास पुरुष" मानने वाले श्री अखिलेश यादव भी अरविंद केजरीवाल के इस "मुफ्तखोर भारत बनाओ" मॉडल की न केवल सराहना करते हैं बल्कि उनके इस चुनावी मॉडल की हूबहू नकल करने पर भी अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। आपको याद होगा कि अखिलेश सरकार ने "मुफ्त लैपटॉप" वितरित किये थे।
भारत को "गरीबों का देश" तो पहले से ही कहा जाता रहा है लेकिन 10-20 वर्षों पश्चात अब इसे "मुफ्तखोरों का देश" भी कहा जाने लगेगा।
एक समय था जब भारतीय नेता अपने विचारों और आदर्शों के बल पर चुनाव जीतते थे और देश के विकास को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल जैसे महानुभावों ने विचारों और आदर्शों को "मुफ्तखोरी" की भेंट चढ़ा दिया है और "विकास" को "विनाश"में बदल दिया है।
इसका उदाहरण पंजाब और गोवा में होने वाले चुनावों में भी देखा जा सकता है जहां एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी की सरकार बनने पर "मुफ्त बिजली" की घोषणा की है।
प्रश्न यह है कि मुफ़्त बिजली, मुफ्त राशन, मुफ़्त लेपटॉप आदि बांटने के लिए सरकार के पास बजट कहाँ से आता है। ज़ाहिर है जनता की खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को ही "मुफ्तखोर राजनीति" की भेंट चढ़ाया जाता है। भारत के एक कर्मठ और जुझारू नागरिक की जेब से पैसा निकालकर "मुफ्तखोरों" को बांटना किस प्रकार से उचित ठहराया जा सकता है। क्या किसी भिखारी को भीख देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित है?दुनिया के कई देशों में भीख मांगना एक अपराध है लेकिन शायद भारत एक ऐसा देश है जहाँ भीख मांगना भी एक कला और रोजगार बन गया है और भीख देना "पुण्य" और धर्म का काम है। क्या मुफ्तखोरी के इस चुनावी मॉडल से भारत का विकास किया जा सकता है?
यदि अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव जैसे "विकास पुरुष" वास्तव में भारत की जनता का विकास करने के प्रति गम्भीर हैं तो रोजगार के नए अवसर पैदा करें, स्वरोजगार को बढ़ावा दें, युवाओं में स्वावलंबन की भावनाएँ जागृत करें, लघु और सूक्ष्म उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए, रोजगारपरक शिक्षा संसाधनों पर ध्यान केंद्रित किया जाए, कृषकों को कृषि के अत्याधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाए। ग्रामीण युवाओं को खेती और उनके पुश्तेनी व्यवसाय को आगे बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, आदि -आदि।
लेकिन मुफ्तखोरी की यह राजनीति देश का भविष्य दीमक की तरह चाटकर खोखला कर देगी।
यह सब जानने-बुझने के बावजूद जिस प्रकार अरविंद केजरीवाल जैसे नेता लगातार "मुफ्तखोर" बनाने की नई-नई स्कीमें ला रहे हैं, उससे यह देश और इस देश की जनता निरन्तर "विनाश" की ओर अग्रसर हो रही है। अरविंद केजरीवाल का यह "मुफ्तखोर मॉडल" भारतीय राजनीति के इतिहास में काले अक्षरों में "विनाशकारी सभ्यता" के नाम से दर्ज किया जाएगा।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
व्हाट्सऐप-
9058118317
ईमेल-
manojchaturvedi1972@gmail.com
ब्लॉगर-
https://www.shastrisandesh.co.in/
फेसबुक-
https://www.facebook.com/shastrisandesh
ट्विटर-
https://www.twitter.com/shastriji1972
*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।





Comments
Post a Comment
Thanks for your Comments.