क्या अखिलेश यादव के लिए सत्ता का मोह राष्ट्रधर्म से अधिक मूल्यवान है
उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि - "मुझे उत्तरप्रदेश की पुलिस पर भरोसा नहीं है।" उन्होंने यह बयान तब दिया है जबकि UP ATS ने आतंकी संगठन अलकायदा के दो आतंकी मिनहाज अहमद और मशीरुद्दीन मुशीर को गिरफ्तार किया है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि यह दोनों आतंकी अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में आतंकी हमला करने की योजना बना रहे थे।
इससे पहले कोविड वैक्सीन पर बयान देते हुए अखिलेश यादव ने कहा था कि-"मुझे भाजपा की वैक्सीन पर भरोसा नहीं है।" हालांकि बाद में उन्होंने उसी वैक्सीन को लगवा लिया।
जनसंख्या नियंत्रण बिल और कोरोना जैसी महामारी पर भी समाजवादी पार्टी के नेताओं, चाहे वह शफीकुर्रहमान बर्क़ हों, इक़बाल महमूद हों या फिर एसटी हसन, के बयान न केवल बेहद ग़ैर-जिम्मेदाराना रहे हैं बल्कि कुछ बयान तो बेहद हास्यास्पद भी हैं।
उत्तरप्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में समाजवादी पार्टी का भाजपा से मतभेद होना स्वाभाविक है और राजनीतिक बयानबाजी भी होनी चाहिए। यह भी सही है कि विपक्ष को सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना चाहिए परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं होना चाहिये कि विपक्ष अपनी मर्यादा और नैतिक जिम्मेदारियों को ही भूल जाये।
सरकार के साथ-साथ विपक्ष के भी कुछ कर्तव्य बनते हैं, जिन्हें निभाना उसकी जिम्मेदारी है।
लेकिन उत्तरप्रदेश में पिछले साढ़े चार सालों में विपक्षी दलों विशेषकर समाजवादी पार्टी ने जो भूमिका निभाई है, वह न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि एक वर्ग विशेष को ख़ुश करने की रणनीति की ओर भी ईशारा करती है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं कि विपक्ष अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति नहीं निभा पा रहा है, बल्कि सही मायने में विपक्ष केवल अपने वोटबैंक को साधने के लिए हर जायज़-नाजायज़ हथकंडा अपनाने में लगा हुआ है।
माननीय अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। वह युवा हैं और काफी लोकप्रिय नेता भी हैं ऐसे में उनका कोई भी बयान जिसका प्रभाव जन सामान्य पर पड़ता हो, गैर-जिम्मेदाराना नहीं होना चाहिए। विशेषकर तब, जबकि उसका सम्बंध देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता से जुड़ा हो। अखिलेश जैसे युवा और कर्मठ नेताओं को चाहिए कि वह अपने देश के सुरक्षा बलों के हौंसले बुलंद करें, उन्हें प्रोत्साहित करें।
हालांकि अपने ही देश के सुरक्षा बलों पर उंगलियां उठाने वाले अखिलेश यादव पहले और आखिरी नेता नहीं हैं, बल्कि ऐसे लोगों की एक लंबी लिस्ट है, जिन्हें अपने ही देश की सेना और पुलिस पर भरोसा नहीं है। सेना और पुलिस की बात तो छोड़िए, इन लोगों को देश की न्यायपालिका पर भी भरोसा नहीं है।
एक वर्ग विशेष को ख़ुश करने के लिए देश के सुरक्षा बलों पर उंगलियां उठाने वाले अखिलेश जैसे नेताओं से जनता यह जरूर जानना चाहती है कि सत्ता की इस राजनीतिक बिसात पर आखिर कब तक देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता को दांव पर लगाया जाता रहेगा? आखिर कब तक राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की वेदी पर निर्दोष और निरपराध जनता की बलि चढ़ाई जाती रहेगी? क्या आज सत्ता का मोह राष्ट्रधर्म से अधिक मूल्यवान हो गया है?? आखिर विपक्ष अपनी जिम्मेदारियों को कब समझेगा?
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
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