वामपंथी और लिबरल गैंग की हिन्दू विरोधी मानसिकता
अभी हाल ही में अमेरिका की बहुप्रतिष्ठित अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एण्ड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने उन प्रतिभागियों की फोटो शेयर की है, जिन्हें उनके साथ इंटर्नशिप करने का मौका मिला। उन प्रतिभागियों में भारतीय-अमेरिकी इंटर्न प्रतिमा रॉय की तस्वीर भी थी। प्रतिमा रॉय की टेबल पर हिन्दू देवियों की मूर्तियाँ और दीवार पर हिन्दू देवी-देवताओं की फोटो दिखाई दे रही हैं।यह फोटो भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए गौरवांवित करने वाली होनी चाहिए थी, परन्तु सनातन संस्कृति और सभ्यता विरोधी एक "कथित बुद्धिजीवी लॉबी" को प्रतिमा रॉय की इस धर्मपरायणता ने नाराज कर दिया, क्योंकि ये "बुद्धिजीवी" प्रतिमा राय द्वारा अपनी भक्ति दिखाए जाने पर खुश नहीं हैं। इन्होंने प्रतिमा के ‘वैज्ञानिक स्वभाव’ पर भी प्रश्न उठाया। हालाँकि, प्रतिमा ने अपने उसी वैज्ञानिक स्वभाव के कारण NASA के साथ इंटर्नशिप करने का मौका अर्जित किया है। कुछ लोगों ने NASA पर विज्ञान को बर्बाद करने का आरोप लगाया है।
ऐसे तमाम "बौद्धिक दिवालियों" को यह मालूम होना चाहिये कि
यूट्यूब के निर्माता नीलसन को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से जब व्यक्तिगत महत्व की कोई चीज दिखाने के लिए कहा गया तो उन्होंने अपनी जेब से कई छोटी चीजें निकालीं। उन्होंने कहा कि ये चीजें उन्हें 'अपने सफर में अब तक मिले अलग-अलग लोगों की' याद दिलाती हैं. CNN की खबर के अनुसार इन चीजों में पोप फ्रांसिस से मिली मनकों की माला, एक भिक्षु से मिली बुद्ध की छोटी सी प्रतिमा, *भगवान हनुमान की एक मूर्ति* सहित कई चीजें शामिल हैं. ओबामा ने कहा, "मैं हमेशा इन्हें अपने पास रखता हूं. अगर मुझे थकावट महसूस होती है, या मैं कई बार जब खुद को हतोत्साहित महसूस करता हूं तो मैं अपनी जेब में हाथ डालकर कह सकता हूं कि मैं इस चीज से पार पा लूंगा क्योंकि किसी ने मुझे उन मुद्दों पर काम करने का विशेषाधिकार दिया है, जो उन्हें प्रभावित करने वाले हैं।"
जरा कल्पना कीजिये कि यदि कुछ ऐसा ही बयान भारत के किसी राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री ने दे दिया होता तो शायद भारत के तमाम "बौद्धिक लिबरल" और "दोगली सेक्युलर जमात" अपनी छातियाँ कूट-कूट कर जान दे देते। अपने आपको आधुनिक और सभ्य दिखाने की होड़ में "बौद्धिक दिवालियापन" के शिकार हो चुके तमाम लिबरल और वामपंथी जमात यह भूल जाती है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति पूर्णतः वैज्ञानिक है। विडम्बना देखिये कि जिस पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर यह लोग अपने को सभ्य और आधुनिक कहला रहे हैं, वही पश्चिमी सभ्यता के लोग अब हमारे ऋषि-मुनियों और धर्मग्रन्थों पर तमाम तरह के शोध कर रहे हैं।
वामपंथी विज्ञान के दुष्परिणाम पूरे विश्व में "कोविड-19" की शक़्ल में मौत बांट चुके हैं और उससे बचाव के लिए अंततः सम्पूर्ण विश्व को हाथ जोड़कर प्रणाम करने की भारतीय परम्परा को ही अपनाना पड़ा। परन्तु इस सबके बावजूद भारत का लिबरल और वामपंथी गैंग अपनी सनातन हिन्दू विरोधी विचारधारा को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। मज़े की बात यह है कि यदि किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति ने यही फोटो अपने धर्म के प्रतीक चिन्हों के साथ खिंचवाया होता तो यही लिब्रांडू गैंग इसको उसकी आस्था, विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रश्न बताकर खुद की पीठ थपथपा रहा होता।
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को हमेशा ही पिछड़ा हुआ और रूढ़िवादी मानते रहे हैं जबकि विदेशों में जब-तब हमारी ही सभ्यता और संस्कृति का गुणगान होता रहता है।
🖋️ *मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।





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