इतिहास साक्षी है कि अहंकार ने हमेशा सत्ताओं की बलि ली है

क्षत्रिय का परम कर्तव्य है कि वह ब्राह्मण और ब्राह्मणत्व की रक्षा करे, क्षत्रिय के लिए ब्रह्महत्या मानो गऊ हत्या समान है।
एक बार महाराज धृष्टर्राष्ट्र के दरबार में चार अपराधी आये, जिसमें एक ब्राह्मण, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा वैश्य और चौथा शुद्र था, चारों ही एक हत्या के अपराधी थे। जब न्याय की बात आई तो पहले दुर्योधन को अवसर दिया गया, अहंकारी और सत्ता के मद में चूर दुर्योधन ने चारों अपराधियों को मृत्युदंड का निर्णय सुना दिया। परन्तु जब धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा गया तो उन्होंने ब्राह्मण को सबसे कठोर दंड दिया परन्तु मृत्युदंड देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि ब्राह्मण की हत्या नहीं की जा सकती है।
नन्दवंशी राजा घनानंद को अपनी सत्ता और सम्पदा पर बहुत अहंकार था, उसने कभी ब्राह्मणों का सम्मान नहीं किया, और उसी अहंकार के चलते उसने आचार्य चाणक्य का भी भरे दरबार में अपमान किया था, क्योंकि उसे लगता था कि निहत्थे, कमज़ोर और हमेशा पठन-पाठन में लगे रहने वाले ब्राह्मण भला उसका क्या बिगाड़ सकते हैं। परन्तु परिमाण उसकी सोच के ठीक विपरीत आया जो कि सर्वविदित है।

अहंकार तो महाराज रावण, कंस, हिरण्यकश्यप और स्वयं महाराज इंद्र का भी नहीं रहा था। सत्ता तो आनी-जानी है। कल किसी और के पास थी, आज आपके पास है और कल किसी और के पास होगी। 
इतिहास साक्षी है कि अहंकार की वेदी पर सदैव सत्ताओं की बलि चढ़ी है। 

उत्तरप्रदेश में जो कुछ भी हो रहा है उससे समस्त ब्राह्मण समाज में बेहद आक्रोश है, और वह स्वभाविक भी है। यदि समय रहते उसे शांत नहीं किया गया तो उत्तरप्रदेश में भाजपा पुनः 14 वर्ष का वनवास भोगेगी। यह बात भाजपा के सभी जिम्मेदार नेताओं विशेषतः ब्राह्मण नेताओं को समझनी होगी। अन्यथा सत्ताएं बदलते देर नहीं लगती। 

यद्यपि विकास दूबे को नायक बनाये जाना भी निश्चित रुप से अनुचित जान पड़ता है, तथापि एक के बाद एक ब्रह्महत्याओं का होना भविष्य में किसी अनिष्ट का संकेत अवश्य है।

*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता

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Comments

  1. ब्राह्मण जाति से नही होता कर्म से होता हैं।
    गीता में गया है पापी को मारना है तो पाप का सहारा लगाने से पाप नही लगता।।

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  2. कर्मों के हिसाब से तो बहन मायावती क्षत्रिय हैं और बाबा साहेब अंबेडकर ब्राह्मण।

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