"कट्टरपंथी विचारधारा" को लेकर जो भविष्यवाणी की गई थी आज वह अक्षरशः सही होती नज़र आ रही है
श्रीमती एनी बेसेंट लिखती हैं- "ख़िलाफ़त आंदोलन (1919) के बाद से बहुत कुछ बदल गया है, और ख़िलाफ़त आंदोलन को प्रोत्साहन मिलने से भारत के लिए उत्पन्न हुए अनेक दुष्परिणामों में से एक यह है कि इस्लाम में विश्वास न रखने वालों के विरुद्ध मुसलमानों की घृणा की अंदरूनी भावना पूरी निर्लज्जता के साथ नग्न रूप में उभर आई है, जैसी कि वह बीते समय में थी। हमने सक्रिय राजनीति में तलवार के बल पर बढ़ने वाले इस्लाम के प्राचीन रूप को पुनर्जीवित होते देख लिया है। हमने मुस्लिम नेताओं को कहते सुना है कि यदि अफगानों ने भारत पर आक्रमण किया तो वे अपने मुसलमान भाइयों का साथ देंगे और शत्रुओं से मातृभूमि की रक्षा करते हिंदुओं की हत्या कर देंगे। हम देखने पर विवश हुए हैं कि मुसलमानों की प्रथम निष्ठा मुस्लिम देशों के प्रति है, अपनी मातृभूमि के लिए नहीं।
"भारत के स्वतंत्र होने पर, मुस्लिम समुदाय देश की स्वतंत्रता के लिए सामने खड़ी विप्पति बन जायेगा, क्योंकि अनजान जनसाधारण तो वही मानेंगे जो उन्हें पैगम्बर के नाम से बताया जाएगा और ऐसा करने वालों के पीछे ही वह चलेंगे। वे अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, ईरान, इराक़, अरब, तुर्की, मिस्र और मध्य एशिया के मुस्लिम कबीलों के साथ मिलकर भारत में मुस्लिम राज लाने के लिए विद्रोह करेंगे।"
हम सोचते थे कि भारत के मुसलमान अपनी मातृभूमि के लिए निष्ठावान हैं और निःसन्देह, अब भी हमें आशा है कि शिक्षित लोगों में से अनेक इस मुस्लिम विद्रोह को रोकने का प्रयास करेंगे। परन्तु, वे प्रभावी प्रतिरोध कर पाने के लिए बहुत कम हैं, और उनको दीन के ग़द्दार बताकर क़त्ल कर दिया जाएगा।
(पुस्तक-डॉ. अम्बेडकर की दृष्टि में मुस्लिम कट्टरवाद, पृष्ठ 44)
दिल्ली हिंसा ने हमें बता दिया है कि इस्लामिक राज का अर्थ आज भी क्या है, अतः हम एक और "डायरेक्ट एक्शन दिवस" की प्रतीक्षा में नही बैठ सकते। ताहिर हुसैन, शाहरुख, जैसे हजारों-लाखों उग्र कट्टरपंथी भेड़ की खालों से बाहर आ चुके हैं, उनके चेहरों पर पड़े छद्म धर्मनिरपेक्षता के नक़ाब उतर चुके हैं। आज इस देश में जो हालात बन चुके हैं उनको देखते हुए यह कहना गलत न होगा कि वर्षों पहले जो भविष्यवाणी श्रीमती एनी बेसेंट ने "कट्टरपंथी मुस्लिम विचारधारा" को लेकर की थी आज वही अक्षरशः सही होती नज़र आ रही है। हालांकि अभी भी हालात काफी हद तक काबू में माने जा सकते हैं परन्तु भविष्य को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं माना जा सकता है। हम कबूतर की तरह आंख बंद करके कब तक अपने आप को धोखा देते रहेंगे।





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