जानी, यह "इक़बाल" है, इसे समझना तुम्हारे बस की बात नहीं
आज शहर में एक होली मिलन समारोह के ख़ूब चर्चे हो रहे थे, औऱ होने भी चाहिए आख़िर अगर रेगिस्तान में फूल खिलेगा तो चर्चा तो होगी ही। आज पूरे देश में चंद लोगों द्वारा राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति और व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए जिस प्रकार से नफ़रत, साम्प्रदायिकता, कट्टरपंथ और अराजकता का एक माहौल तैयार किया जा रहा है, वहां यदि क्षेत्र के एक दिग्गज मुस्लिम नेता द्वारा "होली मिलन समारोह" आयोजित कराकर समाज में शांति, सद्भाव, प्रेम और भाईचारे का जो सन्देश देने का प्रयास किया गया है तो वह सचमुच सराहनीय है।फिलहाल इस देश को ऐसी राजनीति की ही जरूरत है जो समाज में शांति और सद्भाव का सन्देश दे सके।
लेकिन लोगों को चेमेगुइयां करने की आदत है, लिहाज़ा यहां पर भी इस समारोह को लेकर काफी खुसरफुसर हो रही है, लेकिन हमारा मानना है कि वक्त और हालात के हिसाब से राजनीति में दशा और दिशा तय होती हैं। समझदार इंसान वही है जो वक्त और हालात के हिसाब से अपने आप को ढाल ले, जो बहाव के विपरीत चला करते हैं, उन्हें अक्सर किनारे नहीं मिलते। राजनीति में जितने पत्ते हाथ में हों उतने ही आस्तीन में होने चाहिए, यही कुशल राजनीतिज्ञ की पहचान है। चांदपुर का "इक़बाल" पिछले 25-30 सालों से बुलन्द रहा है, क्योंकि उसने कभी अपने पूरे पत्ते नहीं खोले।
शहर के एक नए-नए नेताजी ने हमसे फोन करके पूछा कि "शास्त्री जी, यह होली मिलन समारोह हमारी समझ में नहीं आया". हमने उन्हें बस इतना ही जवाब दिया "जानी, यह "इक़बाल" है, इसे समझना तुम्हारे बस की बात नहीं".
कुछ लोग हमारी इन बातों की गहराइयों को नहीं समझेंगे, लेकिन जो समझ रहे हैं, हमें बस उन्हें ही समझाना है। यूं भी यह राजे-रजवाड़ों के खेल हैं, इन्हें खेलना सबके बस की बात नहीं।





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