दिल्ली में भाजपा की हार बनाम मोदी का गांधीवाद
आज दिल्ली में भाजपा की हार हो गई और आम आदमी पार्टी की जीत हुई। इसके लिए मैं अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी टीम के साथ-साथ तमाम दिल्लीवासियों को हार्दिक बधाईयां देता हूँ।
इस जीत और हार को लेकर प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना दृष्टिकोण है। मेरा मानना है कि यह भाजपा के उस गांधीवाद की हार है जो "सबका विश्वास" साथ लेकर चलने की बात करता है, और जिसने "सबका विश्वास" जीतने के चक्कर में अपनों का ही विश्वास खो दिया है।
मैंने दिल्ली चुनाव को बहुत करीब से देखा है, और पिछले तकरीबन एक माह से मैं भाजपा के कई दिग्गजों के साथ बातचीत करता रहा हूँ।
और मैंने महसूस किया कि कहीं न कहीं भाजपा को यह खुशफ़हमी हो चली है कि हिन्दू वोट उसका जरखऱीद ग़ुलाम बन गया है औऱ हिंदुत्व या राष्ट्रवाद के नाम पर उसे वोट देना उसकी मजबूरी बन गई है।
CAA-NRC की आड़ में जिस प्रकार से पिछले दो माह में कुछ देश विरोधी ताक़तों के द्वारा पूरे देश में हिंसा और अराजकता का माहौल बनाया गया और हमारी केंद्र सरकार गांधीवादी दर्शन की दुहाई देते हुए अप्रत्यक्ष रूप से उन अराजकतावादी ताक़तों की हौंसला अफ़जाई करती रही वह हमारी समझ से बिल्कुल परे है।
2019 चुनाव से पहले भाजपा ने कहीं न कहीं हिंदुओं को यह आश्वासन देने का प्रयास किया था कि अगर वह उसे पूर्ण बहुमत से जिता देते हैं तो वह उनकी सुरक्षा की गारंटी लेगी। हिंदूओं ने उन्हें अपना पूर्ण बहुमत देकर गद्दी पर बैठा दिया, लेकिन जिस प्रकार 20 दिसम्बर 2019 को पूरे देश में हिंसा का तांडव खेला गया और पुलिस प्रशासन पर सीधे अटैक किया गया, औऱ उस सबके बावजूद मोदी और उनके मंत्री गांधीवाद का राग अलापते रहे, उससे आम जनता के मन में अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर भय की भावना ने जन्म ले लिया। ओवैसी बन्धुओं, शरजील इमाम, फैजुल हसन, कन्हैया कुमार, अमनुतुलल्ला खान, शुएब इक़बाल सहित जेएनयू, एएमयू और जामिया के छात्रों द्वारा जिस प्रकार की देशविरोधी, समाजविरोधी और हिन्दुविरोधी बयानबाजी हुई, राष्ट्रीय चैनलों पर विपक्ष के प्रवक्ताओं खासतौर से राजेश वर्मा, प्रेम कुमार, शुएब जमाई और वारिस पठान जैसों ने खुलेआम धमकियां दीं, राष्ट्रीय चैनलों के प्रतिनिधियों पर हमले किये गए ,उसका जवाब में भाजपा के नेता केवल "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान" का भजन कीर्तन करते रहे लेकिन कार्यवाही नहीं की गई। और तो और दिल्ली में एक शाहीन बाग़ को रोकने के बजाय भाजपा ने एक गाल पर थप्पड़ खाकर दूसरा गाल आगे करने की गांधीवादी नीति का अनुसरण करते हुए जिस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से पूरे देश को शाहीन बाग़ बनाने की सहमति प्रदान की, उससे आम जनता में न केवल खौफ़ पैदा हुआ बल्कि असुरक्षा की भावना भी घर कर गई।
*आख़िर क्या कारण है कि अभी तक भी पीएफआई, एसडीपीआई और तमाम ऐसे संगठन जो देश में अराजकता फैला रहे हैं, को प्रतिबंधित नहीं किया जा रहा है? कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शरजील इमाम जैसे देशद्रोही बयानबाजों को सींखचों के पीछे नहीं डाला जा रहा है? सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बावजूद शाहीन बाग़ के आयोजन पर सख़्ती के साथ रोक क्यों नहीं लगाई जा रही? उन भाजपा नेताओं पर भी कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही जो उलटे-सीधे बयान देकर जनता की भावनाओं को भड़काने की कोशिश में लगे रहते हैं? क्या कारण है कि ओवैसी बन्धुओं को "कुछ भी" कहने की छूट दे रखी है? जो लोग खुलेआम देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के लिए अपशब्दों और धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ सख़्ती क्यों नहीं की जा रही है? आख़िर कब तक आप गांधीवाद की चादर ओढ़कर जनता से मुहं छिपाते फिरेंगे??*
मोदी जी, आपको जनता ने बैलेट दिया है, अब बुलेट चलाने की जिम्मेदारी आप और आपकी सरकार की है। अगर आगे भी आप यही गांधीवाद की दोगली नीति अपनाए रहे तो भाजपा यह समझ ले कि जिस जनता ने अर्श पर बैठाया है वह फर्श पर भी पटक सकती है। इसकी शुरूआत देश की राजधानी से हो चुकी है।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*





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