मुसलमान इस देश की आज़ादी के लिए लड़ रहा था या उसपर वापस अपना कब्ज़ा जमाने के लिये

1947 से लेकर आज तक भारत का मुसलमान और उसके पैरोकार यही शोर मचाते रहते हैं कि भारत की स्वतंत्रता में मुसलमानों का बहुत बड़ा योगदान है।

हाल ही में अकबरुद्द्दीन ओवैसी ने कहा था कि भारत पर हमने 800 साल हुक़ूमत की है, यह बात अकेले ओवैसी ही नहीं कह रहे हैं बल्कि इस देश का लगभग हर मुसलमान यही वाक्य दोहराता है। यानी हम यह मान लें कि अंग्रेजों से पहले इस देश में मुगलों की हुक़ूमत थी, और मुग़लवंशियों को भारत का मुसलमान अपना वंशज मानता है। ज़ाहिर है कि अंग्रेजों से पहले इस देश में मुसलमानों की ही हुक़ूमत थी। उसके बाद अंग्रेज आ गए, यानी इस देश का हिन्दू-बौद्ध-जैन-सिक्ख तो मुसलमानों और अंग्रेजों के ग़ुलाम ही माने जाने चाहिए।

इसका अर्थ यह हुआ कि अंग्रेजों से जो मुसलमान लड़ रहे थे वह इस देश को स्वतंत्र कराने के लिए नहीं लड़ रहे थे, बल्कि उसे फिर से वापस अपने कब्जे में लेने के लिए लड़ रहे थे। दूसरे शब्दों में कहें तो एक आक्रमणकारी, दूसरे आक्रमणकारी से अपनी सत्ता को वापस पाने के लिए लड़ रहा था। 

*कई इतिहासकारों के अनुसार 1857 का जो गदर हुआ था, वह मुसलमानों द्वारा सत्ता वापसी के लिए किया गया ज़िहाद था, जबकि हिन्दू-बौद्ध-सिक्ख और जैन समाज के द्वारा किया गया स्वतंत्रता संग्राम था।*

*क्योंकि अपनी स्वतंत्रता के लिए सही मायने में कोई जद्दोजहद कर रहा था तो वह था इस देश का हिन्दू-बौध्द, जैन और सिक्ख। वास्तव में स्वतंत्रता के लिए जद्दोजहद करने की जरूरत तो हिंदुओं को तभी से पड़ी होगी जबसे इस देश में मुसलमान आक्रांता के रूप में भारत आये थे यानी 711 ईसवी के बाद से हिन्दू अपनी धरती पर आए विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ता चला आ रहा है।*

इस कड़वे सत्य को वामपंथी इतिहासकारों ने बहुत ही खूबसूरती के साथ छिपा लिया, औऱ ऐसा दिखाया कि मानो यह देश आदिकाल से ही हिन्दू-मुस्लिम समुदाय का था, जबकि सच यह है कि 711 से पहले इस देश में इस्लाम नहीं था, 1600 से पहले कोई ईसाई नहीं था।

सिक्ख, बौद्ध, जैन तो कोई धर्म ही नहीं हैं, बल्कि यह तो केवल मत हैं, जो सनातन हिन्दू धर्म की शाखाएं हैं। इस देश में केवल चार धर्म हैं, हिन्दू-इस्लाम-पारसी और ईसाई। जिनमें से इस्लाम, पारसी और ईसाई विदेशी धर्म हैं।

इसपर ज्यादा गहराई से जानने के लिए आप बाबा अम्बेडकर द्वारा 1941 में लिखित पुस्तक "थॉट्स ऑन पाकिस्तान" या उसका दूसरा संस्करण "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" जो कि 1945 में लिखी गई जरूर पढ़ें। आपके दिमाग़ के सारे ढक्कन खुल जाएंगे।


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