हिंदुओं का यह विचार कि हिन्दू और मुसलमान एक राष्ट्र हैं, टिक नहीं पाता-बाबा साहेब अंबेडकर

 "यह निर्विवाद है कि भारतवर्ष के अधिकांश मुसलमान उसी जाति के हैं जिसके हिन्दू हैं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सभी मुसलमान एक ही भाषा नहीं बोलते, और बहुत से तो वही बोलते हैं जो हिन्दू बोलते हैं। दोनों समुदायों में कई सामाजिक रिवाज़ भी एक समान हैं। यह भी सत्य है कि कुछ धार्मिक कृत्य व प्रथाएं दोनों समुदायों में एक से हैं। परंतु, प्रश्न यह है कि क्या इन सभी तत्वों से ही हिन्दू व मुसलमान एक राष्ट्र बन जाते हैं, या कि क्या इनसे उनमें एक दूसरे से जुड़ने की इच्छा पैदा हुई है?"
-डॉ आंबेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 15

"पहली बात तो यह है कि दोनों समुदायों (हिन्दू-मुस्लिम) में जो समान विशेषताएं इंगित की जाती हैं वे दोनों समुदायों में सामाजिक ऐक्य स्थापित करने हेतु एक-दूसरे के तौर-तरीकों को अपनाने या उन्हें आत्मसात करने के लिए किए गए किन्हीं सचेतन प्रयासों का परिणाम नहीं है। सच्चाई यह है कि ये समानताएं कुछ अनसोचे कारणों का परिणाम है। कुछ तो ये धर्मांतरण की प्रक्रिया के अधूरी रह जाने से है। भारत जैसे देश में, जहां अधिकांश मुसलमान सवर्ण या असवर्ण हिंदुओं में से बनाये गए हैं, इन धर्मान्तरित लोगों का इस्लामीकरण न तो पूर्ण हो सका, न प्रभावी। इसका कारण, परिवर्तित व्यक्तियों द्वारा विद्रोह का भय भी हो सकता है अथवा धर्मांतरण के लिए मान जाने की स्थिति तक पहुंचाने का तरीका या मौलवियों की अपर्याप्त संख्या के कारण मज़हबी पाठ पढ़ाने में रह गई कमी भी हो सकती है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मुस्लिम समुदाय के बहुत बड़े भाग अपने धार्मिक-सामाजिक जीवन में यहां-वहां अपने हिन्दूमूल को प्रकट कर देते हैं। और कुछ, यह सैंकड़ों वर्षों तक एक ही वातावरण में साथ रहने का भी प्रभाव है। समान वातावरण से समान प्रतिक्रियाएं पैदा होना अवश्यम्भावी है और उस वातावरण के प्रति एक ही प्रकार की प्रतिक्रिया देते-देते व्यक्तियों की एक सी किस्म बन ही जाती है। इनके अतिरिक्त, ये समान विशेषताएं बादशाह अकबर द्वारा आरम्भ किये गए हिन्दू-मुस्लिम धर्म-मज़हब के मेलजोल के भी अवशेष हैं। एक मृतप्रायः भूतकाल के, जिसका न वर्तमान है और न भविष्य".
-डॉ आंबेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 15-16

 "जहां तक जातीय एकता, भाषाई एकता, औऱ एक ही देश में साथ रहने का तर्क है, यह मुद्दा एक दूसरे ही प्रकार का है। यदि ऐसी बातें राष्ट्र को बनाने या तोड़ने में निर्णायक होती हैं तो हिंदुओं का यह कथन ठीक होता कि जातीय, भाषाई और निवास की समानता के कारण हिन्दू व मुसलमान एक राष्ट्र हैं। ऐतिहासिक अनुभवों से तो यह स्पष्ट होता है कि न जाति, न भाषा और न ही एक देश में निवास किसी जनसमूह को एक राष्ट्र के सूत्र में पिरोने के  लिए पर्याप्त हैं".
-डॉ. अम्बेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 16

 "क्या कोई ऐसा ऐतिहासिक घटनाक्रम है जिसे हिन्दू औऱ मुसलमान समान रूप से गौरव या व्यथा के विषय के रूप में याद रखे हुए हैं? समस्या की जड़ में यही प्रश्न है। यदि हिन्दू स्वयं को औऱ मुसलमानों को एक ही राष्ट्र का अंग मानना चाहते हैं, तो उन्हें इसी प्रश्न का उत्तर देना होगा। दोनों समुदायों के बीच सम्बन्धों के इस पक्ष पर दृष्टि डालें तो यही सामने आएगा वे तो बस एक-दूसरे से युद्ध में रत दो सेनाओं की भांति रहे हैं। उनके बीच किसी साझी उपलब्धि की प्राप्ति के लिए मिले-जुले प्रयासों का कोई युग नहीं रहा। उनका इतिहास एक-दूसरे के नाश का इतिहास है। जैसा कि भाई परमानन्द ने अपनी पुस्तिका "हिन्दू राष्ट्रवादी आंदोलन" में उल्लेख किया है, 'हिन्दू अपने इतिहास में पृथ्वीराज, प्रताप, शिवाजी और बन्दा बैरागी के प्रति श्रद्धा रखते हैं, जिन्होंने इस भूमि की रक्षा और सम्मान के लिए मुसलमानों से सँघर्ष किया; जबकि मुसलमान मुहम्मद बिन कासिम जैसे विदेशी हमलावरों और औरँगजेबों जैसे शासकों को अपना राष्ट्रनायक मानते हैं'। धार्मिक क्षेत्र में हिन्दू रामायण, महाभारत और गीता से प्रेरणा पाते हैं। दूसरी ओर, मुसलमान अपनी प्रेरणाएं कुरान और हदीस से प्राप्त करते हैं। अतः, जो बातें उन्हें एक सूत्र  में बांधती हैं, उनसे अधिक शक्तिशाली हैं वे बातें जो उन्हें बांटती हैं। हिंदुओं औऱ मुसलमानों के सामाजिक जीवन की कुछ विशेषताओं-समान जाति, भाषा व देश जैसी कुछ बातों पर निर्भर करके हिन्दू उन बातों को आधारभूत और महत्वपूर्ण मानने की गलती कर रहे हैं। जो केवल संयोगजनित और ऊपरी हैं। हिंदुओं और मुसलमानों को जितना ये तथाकथित समानताएं मिलाती हैं, उससे कहीं अधिक बांटती हैं, उनकी राजनीतिक और साम्प्रदायिक शत्रुताएं। दोनों समुदाय अपना अतीत यदि भूल पाते तो शायद संभावनाएं कुछ और होतीं".
-डॉ. अम्बेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 17-18

"पर दुःख यह है कि दोनों समुदाय अपना भूतकाल न मिटा सकते हैं, न भुला सकते हैं। उनका भूतकाल उनके धर्म या मज़हब में स्थापित हुआ पड़ा है औऱ अपने भूतकाल को भूलना उनके लिए अपने धर्म को या मज़हब को त्यागने जैसा है। इसकी आशा करना व्यर्थ है। ऐतिहासिक समानताओं के अभाव में हिंदुओं का यह विचार कि हिन्दू और मुसलमान एक राष्ट्र हैं, टिक नहीं पाता इसी पर आग्रह करते रहना मानो मतिभ्रम में पड़े रहना है."
-डॉ. अम्बेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 19

"मुसलमानों में हिंदुओं की दुर्बलताओं का अनुचित लाभ उठाने की भावना है। यदि हिन्दू किसी बात पर आपत्ति करते हैं तो मुसलमान उसी बात पर आग्रह करने की नीति बनाने लगते हैं, और यह आग्रह तभी छोड़ने को तैयार होते हैं जब हिन्दू उसके बदले किसी अन्य सुविधा के रूप में उसका मूल्य चुकाने को तैयार हो जाते हैं।"
-डॉ. अम्बेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 259

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