कुकुरमुत्ते की तरह उगते शाहीन बाग़ क्या भाजपा की कायरतावादी और दोगली नीति का परिणाम हैं

आज जनता यह जानना चाहती है कि जब शाहीन बाग़ में विरोध-प्रदर्शन की आड़ में दुर्योधन और दुशासन बने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और एसडीपीआई द्वारा आम जनता के अधिकारों का चीरहरण किया जा रहा है, तब श्री नरेन्द्र मोदी धृष्टराष्ट्र की तरह आंख बंद क्यों बैठे हैं? 

डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" नामक पुस्तक में एक जगह लिखा है कि-

"कांग्रेस ने मुसलमानों को राजनैतिक और अन्य रियायतें देकर उन्हें सहन करने और खुश रखने की नीति अपनाई है। क्योंकि वे समझते हैं कि मुसलमानों के समर्थन बिना वे अपने मनोवांछित लक्ष्य स्वतंत्रता को पा नहीं खा सकते। मुझे लगता है कि कांग्रेस ने दो बातें समझी नहीं है। पहली तो यह कि तुष्टिकरण और समझौते में अंतर होता है, और यह एक महत्त्वपूर्ण अंतर होता है। तुष्टिकरण का अर्थ है, एक आक्रामक व्यक्ति या समुदाय को मूल्य देकर अपनी ओर करना, और यह मूल्य होता है उस आक्रमणकारी द्वारा किये गए, निर्दोष लोगों पर, जिनसे वह किसी कारण से अप्रसन्न हो, हत्या, बलात्कार,लूटपाट और आगजनी जैसे अत्याचारों को अनदेखा करना। दूसरी ओर, समझौता होता है- दो पक्षों के बीच कुछ मर्यादाएं निश्चित कर देना जिनका उल्लंघन कोई भी पक्ष नहीं कर सकता। तुष्टिकरण से आक्रांता की मांगों और आकांक्षाओं पर कोई अंकुश नहीं लगता, समझौते से लगता है. दूसरी बात, जो कांग्रेस समझ नहीं पाई है, यह है कि छूट देने की नीति ने मुस्लिम आक्रामकता को बढ़ावा दिया है; और, अधिक शोचनीय बात यह है कि मुसलमान इन रियायतों का अर्थ लगाते हैं हिंदुओं की पराजित मानसिकता और सामना करने की इच्छा-शक्ति का अभाव। तुष्टिकरण की यह नीति हिंदुओं को उसी भयावह स्थिति में फंसा देगी जिसमें मित्र देश हिटलर के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाकर स्वयं को पाते थे".
-डॉ. अम्बेडकर कृत "पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया" पृष्ठ 260-1

आज CAA-NRC और NPR पर दिल्ली के शाहीन बाग़ में चल रहे धरना-प्रदर्शन की आड़ में जिस प्रकार से अराजकता और देशद्रोही मानसिकता का भौंडा प्रदर्शन किया जा रहा है, क्या उसे केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण की राजनीति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। एक अनुमान के अनुसार इस विरोध-प्रदर्शन के कारण प्रतिदिन करीब 10 लाख लोगों का आम जनजीवन प्रभावित हो रहा है। लाखों लोगों के रोज़गार प्रभावित हो रहे हैं, विद्यार्थियों की शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, कई पटरी दुकानदारों की रोज़ी-रोटी छीन ली गई है। लेकिन इस सबके बावजूद केंद्र सरकार धृष्टराष्ट्र की तरह आंखें  बंद किये बैठी है।

दूसरी तरफ़ माननीय सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ भी अचंभित करने वाला है, आख़िर क्या कारण है कि सबकुछ जानने और समझने के बावजूद कोर्ट ने अभीतक भी कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिए हैं। बात-बात पर संविधान की दुहाई देने वाले प्रदर्शनकारी यह बताएं कि क्या उन लोगों के संवैधानिक अधिकार नहीं हैं जिन लोगों का आमजीवन इस प्रदर्शन के कारण प्रभावित हो रहा है।

आज प्रदर्शनकारी CAA-NPR-NRC को लेकर शाहीन बाग़ घेरे हुए हैं, क्या कल यही लोग "फ्री कश्मीर" का नारा लगाते हुए चांदनी चौक को नहीं घेरेंगे? कल यह भी हो सकता है कि ये लोग या इन जैसी विचारधारा के लोग केरल, हैदराबाद या फिर कोई और मुस्लिम बाहुल्य राज्य को "स्वतंत्र" करने की मांग लेकर संसद भवन को घेर लें.

आख़िर यह नई परिपाटी क्यों शुरू करने दी गई? क्यों इनपर सख़्ती नहीं की जा रही? क्या जानबूझकर इस अराजकतावादी विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है? कुकुरमुत्ते की तरह उगते यह शाहीन बाग़ क्या भाजपा की कायरतावादी और दोगली नीति का परिणाम हैं?


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