मुसलमान किस सीमा तक एक ऐसी सरकार की सत्ता को स्वीकारेंगे जिसको बनाने और चलाने वाले हिन्दू होंगे
आज इस देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध की आड़ में जिस प्रकार की नफ़रत, हिंसा और देशद्रोही बयानबाजी की जा रही है वह निश्चित रूप से एक बड़ी गहरी साजिश है जिसके पीछे विदेशी ताकतों के साथ-साथ कटटरपंथी विचारधाराओं का भी पूरा समर्थन है.
दरअसल नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने का एकमात्र कारण यह बताया जा रहा है कि इसमें "मुस्लिम" शब्द को क्यों नहीं जोड़ा गया? यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नागरिकता संशोधन कानून, २०१९ के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिखों जो कि ३१ दिसंबर २०१४ तक भारत में आ गए हैं, को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी। इसमें आईने की तरह स्पष्ट है कि नागरिकता केवल उन लोगों को दी जाएगी जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश देश जो इस्लामिक देश हैं, में धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक हैं और इन देशों में उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. ऐसे में यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि इन इस्लामिक देशों में कोई भी मुस्लिम धार्मिक आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है. और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून का कोई संबंध भारत के मुसलमान से नहीं है. उसके बावजूद पुरे देश में जगह-जगह धरने-प्रदर्शन, हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ की गई और लगातार हिन्दु, हिंदुत्व और देश विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं.
इसके पीछे वास्तविक कारण क्या हैं इसे जानने के लिए हमें उस मानसिकता को समझना होगा जिसके चलते यह सब हो रहा है. यहाँ यह चर्चा करना प्रासंगिक होगा कि इस्लाम भू-क्षेत्रीय (देश के) नातों को नहीं मानता।इसके रिश्ते-नाते सामाजिक और मज़हबी होते हैं, अतः दैशिक सीमाओं को नहीं मानते। अंतराष्ट्रीय इस्लामवाद का यही आधार है। इसी से प्रेरित हिंदुस्तान का हर मुसलमान कहता है कि वह मुसलमान पहले है और हिंदुस्तानी बाद में। यही है वह भावना जो स्पष्ट कर देती है कि क्यों भारतीय मुसलमानों ने भारत की प्रगति के कामों में इतना कम भाग लिया है, जबकि वे मुस्लिम देशों के पक्ष का समर्थन करने में इतनी सारी शक्ति लगा देते हैं, और क्यों उनके ख़यालों में मुस्लिम देशों का स्थान पहला और भारत का दूसरा है।
दरअसल नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने का एकमात्र कारण यह बताया जा रहा है कि इसमें "मुस्लिम" शब्द को क्यों नहीं जोड़ा गया? यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नागरिकता संशोधन कानून, २०१९ के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिखों जो कि ३१ दिसंबर २०१४ तक भारत में आ गए हैं, को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी। इसमें आईने की तरह स्पष्ट है कि नागरिकता केवल उन लोगों को दी जाएगी जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश देश जो इस्लामिक देश हैं, में धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक हैं और इन देशों में उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. ऐसे में यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि इन इस्लामिक देशों में कोई भी मुस्लिम धार्मिक आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है. और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून का कोई संबंध भारत के मुसलमान से नहीं है. उसके बावजूद पुरे देश में जगह-जगह धरने-प्रदर्शन, हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ की गई और लगातार हिन्दु, हिंदुत्व और देश विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं.
इसके पीछे वास्तविक कारण क्या हैं इसे जानने के लिए हमें उस मानसिकता को समझना होगा जिसके चलते यह सब हो रहा है. यहाँ यह चर्चा करना प्रासंगिक होगा कि इस्लाम भू-क्षेत्रीय (देश के) नातों को नहीं मानता।इसके रिश्ते-नाते सामाजिक और मज़हबी होते हैं, अतः दैशिक सीमाओं को नहीं मानते। अंतराष्ट्रीय इस्लामवाद का यही आधार है। इसी से प्रेरित हिंदुस्तान का हर मुसलमान कहता है कि वह मुसलमान पहले है और हिंदुस्तानी बाद में। यही है वह भावना जो स्पष्ट कर देती है कि क्यों भारतीय मुसलमानों ने भारत की प्रगति के कामों में इतना कम भाग लिया है, जबकि वे मुस्लिम देशों के पक्ष का समर्थन करने में इतनी सारी शक्ति लगा देते हैं, और क्यों उनके ख़यालों में मुस्लिम देशों का स्थान पहला और भारत का दूसरा है।
डॉ. अम्बेडकर ने लिखा है-
"यदि अंतराष्ट्रीय इस्लामवाद का यह मज़हबपरस्त रूप एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी राजनीतिक स्वरूप अपनाने की ओर बढ़ता है तो उसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता" (पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया, पृष्ठ 287-91)
इस प्रकार की अपनी वैचारिक प्रेरणाओं के प्रभाव में रहते हुए मुसलमान किस सीमा तक एक ऐसी सरकार की सत्ता को स्वीकारेंगे जिसको बनाने और चलाने वाले हिन्दू होंगे? यह प्रश्न भी डॉ. अम्बेडकर ने उठाया । इस संदर्भ में उन्होंने इस बात का वर्णन किया कि मुसलमान हिंदुओं को किस दृष्टि से देखते हैं।
"मुसलमान की दृष्टि में हिन्दू काफ़िर है और क़ाफ़िर सम्मान के योग्य नहीं होता। वह निकृष्टजन्मा और प्रतिष्ठाहीन होता है। इसीलिए क़ाफ़िर द्वारा शासित देश मुसलमान के लिए दारुल-हर्ब होता है।" (पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया,पृष्ठ 294)
स्रोत- (पुस्तक-डॉ. अम्बेकर की दृष्टि में मुस्लिम कटटरवाद, लेखक-एसके अग्रवाल, सुरुचि प्रकाशन, पृष्ठ-२६-२७)








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