हिंदुस्तान में हिन्दू स्वयं एक राष्ट्र है. इसके अतिरिक्त अन्य केवल मात्र एक समुदाय है, अंकों में अल्पसंख्यक-वीर सावरकर
"हिंदुस्तान में हिन्दू स्वयं एक राष्ट्र है. इसके अतिरिक्त अन्य केवल मात्र एक समुदाय है, अंकों में अल्पसंख्यक।"-वीर सावरकर -
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वीर सावरकर की जीवनी के लेखक धनंजय कीर ने लिखा है- "सावरकर ने महासभा को एक हिन्दू घोषणापत्र, एक मंच, एक नारा, एक बाइबिल और एक ध्वज दिया।"
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उनकी एक अत्यंत ही प्रसिद्ध एवं विवादित पुस्तक "हिंदुत्व" अंडमान द्वीप में पोर्टब्लेयर के सेलुलर जेल में लिखी गई थी और वहां से तस्करी करके पुणे में पहुंचाई गई. उसे वी जी केलकर ने १९३२ में "एक मराठा" के छद्म नाम से प्रकाशित किया।
नासिक षड्यंत्र कांड के अंतर्गत इन्हें ७ अप्रैल १९११ को काला पानी की सजा सुनाई गई। काले पानी की सजा का अर्थ कड़ा परिश्रम था. यहाँ कैदियों को नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था. इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ़ कर दलदली भूमि व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था. रुकने पर उनको कड़ी सजा दी जाती थी और बेंत व कोड़ों से उनकी पिटाई भी की जाती थी. सावरकर ४ जुलाई, १९११ से २१ मई १९२१ तक पोर्टब्लेयर की जेल में रहे. उन्होंने कागज-कलम के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास को कविता के माध्यम से लिख दिया.
उन्होंने हिन्दुओं के लिए एक वैचारिक मंच तैयार किया, ताकि वे संगठित होकर एकजुट खड़े हो सकें। वे बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े हिंदूवादी नेता थे. उन्हें हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था. वे कहा करते थे कि उन्हें स्वातंत्र्य वीर की जगह "हिन्दू संगठक" कहा जाये। उन्होंने जीवन भर "हिन्दू-हिंदी-हिंदुस्तान" के लिए कार्य किया। महान हिंदूवादी नेता वीर सावरकर ने कहा था- "हरेक व्यक्ति, जो सिंध नदी से सिंधु, अर्थात समुद्र तक की भूमि को अपनी "पितृभू" और "पुण्यभू" मानता है, वही सच्चे अर्थों में हिन्दू हैं."
सावरकर ने कहा था-"हिन्दू जगत अपने-आप में एक समुदाय और राष्ट्र के रूप में न केवल इस बात से जाना-पहचाना जाता है कि उनके लोगों की पुण्यभू, एक ही है वरन इस बात से भी कि वे समान संस्कृति, समान भाषा, समान इतिहास से बंधे हैं और अवश्यमेव उनकी पितृभू भी एक ही है."यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहेंगे कि पितृभू तो किसी भी धर्म को मानने वाले की हो सकती है लेकिन "पुण्यभू" केवल हिन्दू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म को मानने वालों की ही हो सकती है.
"हिंदू - हिंदी - हिंदुस्तान
कभी न होगा पाकिस्तान"
विशेष : इस लेख के कुछ अंश ज्ञान सदन प्रकाशन की पुस्तक भारत का राष्ट्रीय आंदोलन :एक विहंगावलोकन (लेखक मुकेश बरनवाल और डॉ. भावना चौहान) से साभार लिए गए हैं. यह पुस्तक भारतीय इतिहास पढ़ने वालों के लिए एक अनुपम पुस्तक है.
विशेष : इस लेख के कुछ अंश ज्ञान सदन प्रकाशन की पुस्तक भारत का राष्ट्रीय आंदोलन :एक विहंगावलोकन (लेखक मुकेश बरनवाल और डॉ. भावना चौहान) से साभार लिए गए हैं. यह पुस्तक भारतीय इतिहास पढ़ने वालों के लिए एक अनुपम पुस्तक है.










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