‘दलित-मुस्लिम राजनीतिक एकता’ का वह भयानक सच जिसे इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया

भारत में दलित-मुस्लिम एकता के प्रथम पैरोकार और पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल जिन्होंने जिन्ना के पाकिस्तान में दलित समाज के उत्थान के सपने देखे थे. मंडल ने शेडयूल कास्ट फेडरेशन और मुस्लिम लीग में समझौता किया था. जोगेंद्र नाथ मंडल नमोशूद्राय जाति से ताल्लुक रखते थे. जिन्ना ने जोगेंद्र नाथ मंडल को पाकिस्तान का पहला कानून मंत्री नियुक्त किया था. लेकिन पाकिस्तान में जिस प्रकार से दलित समाज के साथ धोखा किया गया और उनके साथ जो अत्याचार किये गए जो कि आज तक बदस्तूर चल रहे हैं, उनसे दुखी होकर जोगेंद्र नाथ मंडल ने २० फरवरी १९५० को तत्कालीन राष्ट्रपति को अपना जो इस्तीफा सौंपा था, उसके कुछ अंशों को यहाँ प्रस्तुत किया गया है. 
"बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी। दोनों ही पिछड़ेमछुआरे और अशिक्षित थे। मुझे आश्वस्त किया गया था मुस्लिम लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा। हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहार्द बढ़ेगा। इन्हीं कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया। 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डेमनाया। जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए। कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओं की हत्याएं हुईंसैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया। हिंदू महिलाओं का बलात्कारअपहरण किया गया। इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। मैंने हिन्दुओं के भयानक दुःख देखे जिनसे अभिभूत हूँ लेकिन फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा।14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया। मैंने ख्वाजा नजीमुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगों को शामिल करने का अनुरोध किया। उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा किया। लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मैं बहुत हताश हुआ। गोपालगंज के पास दीघरकुल (Digharkul ) में एक मुस्लिम की झूठी शिकायत पर स्थानीय नमोशूद्राय लोगों के साथ क्रूर अत्याचार किया गया। पुलिस के साथ मुसलमानों ने मिलकर नमोशूद्राय समाज के लोगों को पीटाघरों में छापे मारे। एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया निर्दोष हिंदुओं, विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगों पर सेना और पुलिस ने भी हिंसा को बढ़ावा दिया। सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष पुरुषों और महिलाओं को पीटा गया। सेना ने न केवल लोगों को पीटा बल्कि हिंदू पुरुषों को उनकी महिलाओं को सैन्य शिविरों में भेजने के लिए मजबूर किया गया ताकि वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके। मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया थामुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई। खुलना (Khulna) जिले कलशैरा (Kalshira) में सशस्त्र पुलिससेना और स्थानीय लोगों ने निर्दयता से पूरे गाँव पर हमला किया। कई महिलाओं का पुलिससेना और स्थानीय लोगों द्वारा बलात्कार किया गया।मैंने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया। जब मैं कलशैरा में आया तो देखा यहाँ जगह उजाड़ और खंडहर में बदल गयी।यहाँ करीबन 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया। मैंने तथ्यों के साथ आपको सूचना दी। ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। ढाका नारायणगंज और ढाका चंटगाँव के बीच ट्रेनों और पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओं की हत्याओं ने मुझे गहरा झटका दिया। मैंने ईस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर दंगा प्रसार को रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया।20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल (Barisal) पहुंचा। यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकर में चकित था। यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओं को जला दिया गया था। उनकी बड़ी संख्या को खत्म कर दिया गया। मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। मधापाशा(Madhabpasha) में जमींदार के घर में 200 लोगों की मौत हुई और 40 घायल थे। एक जगह है मुलादी (Muladi ), प्रत्यक्षदर्शी ने यहाँ भयानक नरक देखा। यहाँ 300 लोगों का कत्लेआम हुआ। वहां गाँव में शवों के कंकाल भी देखे, नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशों को खा रहे थे। यहाँ सभी पुरुषों की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया। राजापुर में 60 लोग मारे गये। बाबूगंज(Babuganj) में हिन्दुओं की सभी दुकानों को लूटकर आग लगा दी गयी. ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10,000 लोगों की हत्याएं हुईं। अपने आसपास महिलाओं और बच्चों को विलाप करते हुए मेरा दिल पिघल गया। मैंने अपने आप से पूछा, 'क्या मैं इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था।पश्चिम बंगाल में आज क्या हालात हैं विभाजन के बाद लाख हिन्दुओं ने देश छोड़ दिया है। मुसलमानों द्वारा हिंदू-वकीलोंहिंदू-डॉक्टरोंहिंदू-व्यापारियोंहिंदू-दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका हेतु पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा। मुझे मुसलमानों द्वारा पिछड़ी जाति की लडकियों के साथ बलात्कार की जानकारी मिली है। हिन्दुओं द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान खरीददार पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं। तथ्य की बात यह है कि पाकिस्तान में न कोई न्याय हैन कानून का राज इसीलिए हिंदू चिंतित हैं। पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं। विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है। मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमें 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं। इनमें से कुछ को मोची की दुकानकसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया गया है. मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है। इन सबका कारण एक है- हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है। 'पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुएमेरा अपना तजुर्बा भी कुछ कम दुखदायीपीड़ादायक नहीं है। आपने अपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया थाजो मैंने सितम्बर को दिया था। आप जानते हैं कि मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मैं ऐसे असत्य, और असत्य से भी बुरे अर्धसत्य भरा वक्तव्य जारी करूं। जब तक मैं मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था पर अब मैं इससे ज्यादा झूठे दिखावे तथा असत्य के बोझ को अपनी अंतरात्मा पर नहीं लाद सकता। मैंने यह निश्चय किया कि मैं आपके मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफे का प्रस्ताव आपको दूँजो कि मैं आपके हाथों में थमा रहा हूँ। मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे। आप बेशक इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र हैं।"
       -जोगेंद्र नाथ मंडल (प्रथम कानून मंत्री, पाकिस्तान)
जिन्ना की मौत के बाद मंडल अक्टूबर, 1950 को लियाकत अली खां के मंत्रीमंडल से त्याग-पत्र देकर भारत आ गये ।
पाकिस्तान में मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गये । कुछ वर्ष गुमनामी की जिन्दगी जीने के बाद अक्टूबर, 1968 को पश्चिम बंगाल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

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