*आखिर हम कब तक धर्मनिरपेक्ष धृष्टराष्ट्र बने रहेंगे*

स्वरा भास्कर ने एक ट्वीट को शेयर किया उसमें लिखा हुआ था- मुगल विजेता के रूप में भारत आए लेकिन वह उपनिवेशवादी नहीं बल्कि भारतीय के रूप में याद किए जाते हैं। उन्होंने व्यापार, विकसित सड़कों, समुद्री मार्गों, बंदरगाहों को प्रोत्साहित किया। उनके तहत हिंदू सबसे अमीर थे।

इस ट्वीट पर स्वरा भास्कर को ख़ूब ट्रोल किया गया।लेकिन हमें लगता है कि इसमें स्वरा भास्कर की कोई गलती नहीं है, बल्कि उन तमाम लोगों की है जिन्होंने हमें गंगा-जमुनी तहजीब का पाठ पढ़ाते हुए विदेशी आक्रमणकारियों और लुटेरों के रूप में भारत आये मुगलों को हमारे समक्ष भारत के उद्धारक के रूप में पेश किया।

इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इतिहास में अंग्रेजों को आक्रमणकारी बताने वालों ने मुगलों को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्थापित किया। जब अंग्रेज भारत आये तब हमारे देश में मुगलों का शासन था। अंग्रेजों की तरह ही मुगलों ने भी हमारे देश पर आक्रमण कर इसपर अपना आधिपत्य जमा लिया था। लेकिन वामपंथी और कांग्रेसी विचारधारा के इतिहासकारों ने मुगलों को इस देश की आज़ादी का हीरो साबित करने में कोई कोताही नहीं बरती और टीपू सुल्तान, बहादुर शाह ज़फ़र जैसे मुगल बादशाहों को स्वतंत्रता सेनानी सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। जबकि सच्चाई केवल इतनी सी थी कि मुगल बादशाह इस देश की आज़ादी के लिए नहीं बल्कि अपनी बादशाहत को बचाने के लिए और इस देश को फिर से मुगलों का गुलाम बनाये जाने के लिए अंग्रेजों से जंग लड़ रहे थे।
हमारा देश अंग्रेजों ने गुलाम नहीं बनाया बल्कि यूँ कहिये कि मुगलों की ग़ुलामी से छुड़ाकर अपना ग़ुलाम बना लिया। हम तो पहले से ही मुगलों के ग़ुलाम थे और बाद में फिर अंग्रेजों के ग़ुलाम हो गए। अंग्रेजों ने भी इस देश की जनता पर अत्याचार किये औऱ मुगलों ने भी घोर अत्याचार किये थे।
मुगलों ने हमारी सांस्कृतिक विरासतों को जी भरकर लूटा, बहन-बेटियों का अपमान किया, हजारों-लाखों राजपूत वीरांगनाएं इन्हीं मुगलों से अपनी लाज बचाने के लिए जौहर में कूद गईं थीं। हमारी संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक पवित्र मन्दिरों और धार्मिक स्थलों को नष्ट-भ्रष्ट किया गया, पवित्र मूर्तियों को पैरों तले रौंदा गया, हजारों-लाखों लोगों को तलवार के दम पर, सूफी-सन्तों के माध्यम से धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया और जिन्होंने अपना धर्म नहीँ बदला उनके ऊपर नाजायज़ कर लगा दिए गए, उनको कत्ल कर दिया गया।

हमारे धार्मिक ग्रँथों को जला दिया गया, उनको नष्ट कर दिया गया, उनमें मनमाने संशोधन कर दिए गए। हमारे विद्वानों, हमारी संस्कृत भाषा, हमारे तीज-त्योहारों का मज़ाक बनाया गया, उनको हतोत्साहित किया गया। हमारे ऊपर जज़िया करों को लगाया गया, हमारी सोच को बदलने का हरसम्भव प्रयास किया गया।
कुल मिलाकर मुगलों ने हमारी संस्कृति, सभ्यता और मान्यताओं पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। हमारी सांस्कृतिक विरासतों को लूटकर हमें सांस्कृतिक दरिद्र बना दिया।
मुगलों ने हमें क्या दिया इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने हमसे क्या लिया या यूं कहिये कि उन्होंने हमारा क्या-क्या लूटा, क्या-क्या बर्बाद किया।
मुगल हमारी संस्कृति, सभ्यता, धर्म और भाषाओं के लुटेरे थे, उन्होंने हमें "सांस्कृतिक और सामाजिक" रूप से दरिद्र बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
लेकिन यह बात वामपंथी और कांग्रेसी विचारधारा से प्रभावित स्वरा भास्कर जैसे लोगों की समझ से परे है, क्योंकि इन लोगों की आँखों पर "छद्म धर्मनिरपेक्षता" की पट्टी बंधी हुई है। आखिर  छद्म धर्मनिरपेक्षता के इस छलावे से हम कब मुक्त होंगे? हमारी आँखों पर बंधी  छद्म धर्मनिरपेक्षता की यह पट्टी कब हटेगी? हम कब तक "धर्मनिरपेक्ष धृष्टराष्ट्र" बने रहेंगे? ये और इन जैसे कई और प्रश्न वर्षों से हमारे लिए नासूर बने हुए हैं।

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