*केवल मदरसे हाईटैक करने और हाथ में कम्प्यूटर दे देने से कोई एपीजे कलाम नहीं बन जायेगा*

2019 लोकसभा चुनाव के बाद "शांतिदूत" बने हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का एक सपना है कि "सबका विश्वास" जीता जाए। इसके लिए उन्होंने अपनी ओर से शुरुआत भी कर दी है। मुस्लिम समुदाय के युवाओं के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर रखने का "मोदी सपना" साकार करने की दिशा में कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने ईद पर स्कॉलरशिप के साथ-साथ मदरसों को हाईटैक करने की महत्वाकांक्षी योजना को भी अमली जामा पहनाना प्रारम्भ कर दिया है। यह अलग बात है कि मोदी जी के इस शांति-अभियान से बेख़बर जहाँ एक ओर कश्मीर के "भटके हुए नौजवान" भारतीय सेनाओं पर पत्थर फेंकने से बाज नहीं आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शफीकुर्रहमान बर्क़ और असदुद्दीन ओवैसी जैसे  मुस्लिम नेता संसद में खुलेआम "वन्देमातरम" को इस्लाम विरोधी बताते हुए राष्ट्रीय गीत का सम्मान न करने की बात कर रहे हैं, सैफ़ुद्दीन सोज जैसे नेता खुलेआम कश्मीर की आज़ादी की बात करते हैं, महबूबा मुफ्ती आतंकवाद को सहलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा ही रही हैं, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में खुलेआम जिन्नाभक्तों का सम्मेलन होता है। यह सभी लोग पढ़े-लिखे ही तो हैं।
शांतिदूत बने मोदी जी को यह भी समझ लेना चाहिए कि दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी संगठनों के जन्मदाता कोई जाहिल-अनपढ़ लोग नहीं थे, बल्कि यह वही लोग थे जिनके एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर रहा है।

दुनिया के सबसे खौफ़नाक आतंकी संगठन आईएसआईएस का सरगना अबू बक्र अल बगदादी पीएचडी है, और मात्र 46 साल का ही है।

1993 मुंबई बम कांड का दोषी याकूब मेमन जिसे फांसी की सजा दी गई थी, वह चार्टर्ड अकाउंटेंट था। उसने द इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया से यह डिग्री हासिल की थी और उसकी अपनी फर्म थी।

एक समय में दुनिया का मोस्ट वांटेड आतंकी जिसने 1998 में अमेरिका पर सबसे बड़े आतंकी हमले को अंजाम दिया था, उस ओसामा बिन लादेन ने 1979 में सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। उसने किंग अब्दुल्ला अजीज यूनिवर्सिटी से इकॉनोमिक्स और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की हायर एजूकेशन हासिल की थी।

 1991 में भारतीय संसद पर हमले को अंजाम देने वाले अफ़ज़ल गुरु की शुरुआती पढ़ाई जम्मू-कश्मीर से हुई थी, फिर इसने झेलम वेली मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और वहां से एमबीबीएस किया।

पाकिस्तान में बैठकर भारत में आतंकवाद फैलाने वाले दहशतगर्दों के सरगना हाफ़िज़ सईद के पास दो-दो मास्टर्स डिग्रियां हैं। इसने यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब से पढ़ाई की है।

जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मो. मसूर अजहर जिसने जुलाई 2008 में अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया था। उसने पुणे के विश्वकर्मा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की है।

इंडियन मुजाहिद्दीन की स्थापना करने वाला रियाज़ भटकल जिसका 2006 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट, 2007 के हैदराबाद ब्लास्ट और 2008 के दिल्ली ब्लास्ट में इसका हाथ था, वह आतंकी बनने से पहले एक इंजीनियर था।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि दुनियाभर में कथित तौर पर अपने व्याख्यानों द्वारा आतंकवाद को भड़काने वाला इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का अध्यक्ष और संस्थापक ज़ाकिर अब्दुल करीम नायक जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा भगोड़ा घोषित किया जा चुका है, वह भी मुंबई विश्वविद्यालय में पढ़ा हुआ है, और एमबीबीएस की डिग्री लिए हुए है।

यह लोग वास्तव में एक हाथ में कुरान तो दूसरे हाथ में कम्प्यूटर रखने वाले लोग ही थे, लेकिन उस सबके बावजूद इनका मोस्ट वांटेड आतंकी संगठन बनाना और आतंकी घटनाओं को लगातार अंजाम देना या आतंकी घटनाओं के लिए प्रेरित करने वाले व्याख्यान देना यह साबित करता है कि "कुछ" तो ऐसा है जो इन लोगों को ग़लत दिशा में भटकने को मजबूर करता है, वह "कुछ" जानना ही महत्वपूर्ण है। दरअसल यह "कुछ" नकारात्मक विचारधारा है जिसे नासमझ लोग "जिहाद" का नाम दे देते हैं, हालांकि जिहाद शब्द नकारात्मक नहीं है और न ही जिहादी होना आतंकवाद की निशानी है।
*जिहाद ग़लत नहीं है बल्कि ग़लत है जिहाद की दिशा और दशा।जिहाद अगर रचनात्मक कार्यों के लिए किया जाए तो एपीजे कलाम बना देता है और अगर विध्वंसक कार्यों के लिये किया जाए तो ओसामा बिन लादेन बना देता है।*

जहां एक ओर कुछ लोगों ने नकारात्मक विचारधारा के चलते अपनी योग्यताओं औऱ एजुकेशन का दुरुपयोग किया वहीं एपीजे अबुल कलाम जैसी महान शख्सियत भी रही हैं जिन्होंने इस देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाया और पूरे विश्व में भारत को एक अलग पहचान दी।

शांतिदूत बने मोदी जी को यह समझना होगा कि केवल मदरसे हाईटैक करने और मुस्लिम युवाओं के हाथ में कम्प्यूटर दे देने से कोई एपीजे कलाम नहीं बन जायेगा। उसके लिए इन युवाओं में रचनात्मक सोच भी पैदा करनी होगी ताकि वह अपने लिए एक सकारात्मक दिशा तय कर सकें।

*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*

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