मोदी चायवाला है, तो ममता दूधवाली है
केभारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी मेरे बेहद पसंदीदा राजनेताओं में से एक हैं।
मोदी और ममता में एक समानता है, मोदी जी एक ग़रीब परिवार से हैं तो ममता दी ने भी ग़रीबी को बहुत नज़दीक से देखा है।
मोदी जी ने अपने कमज़ोर समय में परिवार के भरण-पोषण के लिये चाय बेची है, जबकि ममता दी ने अपनी विधवा माँ और छोटे भाई-बहनों के भरण-पोषण हेतु दूध बेचा है।
यानी *एक तरफ़ "मोदी चायवाला" है तो दूसरी तरफ़ "ममता दूधवाली" हैं।*
5 जनवरी 1955 को एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मी ममता बनर्जी के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनकी मृत्यु ममता जी के बचपन में ही हो गई थी। और इसीलिए ममता बनर्जी ने अपनी विधवा माँ और छोटे भाई-बहनों को पालने के लिए दूध विक्रेता का कार्य किया था।
ममता बनर्जी बेहद समझदार और पढ़ी-लिखी काबिल राजनीतिज्ञ हैं। दक्षिण कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से उन्होंने इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी। बाद में, कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की। श्रीशिक्षायतन कॉलेज से उन्होंने बी.एड. की डिग्री भी ली। उन्होंने जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून में भी एक डिग्री ली थी।
बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस तरह का व्यवहार आज ममता बनर्जी कर रही हैं, ठीक उसी तरह का व्यवहार एक समय वामपन्थियों ने किया था जिसका सबसे अधिक विरोध खुद ममता बनर्जी ने किया था।2011 के राज्य विधानसभा चुनावों में उन्होंने माकपा और वामपंथी दलों की सरकार को 34 वर्षों के लगातार शासन के बाद उखाड़ फेंका था।
ममता बनर्जी एक साधारण महिला की तरह हमेशा सूती साड़ी पहनती हैं, और उन्होंने कभी कोई आभूषण या महंगा मेकअप नहीं किया।
एक और बात जो बहुत कम लोग जानते हैं कि ऊपर से बेहद कठोर और निर्मम दिखाई देने वाली ममता दी अंदर से एक सुकोमल ह्रदय की महिला हैं जो एक कवियत्री भी हैं।
'राजनीति' शीर्षक से उनकी एक कविता काफी चर्चित रही। कविता की कुछ पंक्तियां-
' राजनीति' एक शब्द, जिससे मन में कभी जागता था श्रद्धाभाव।
अब हो गये हैं इसके मायने बड़ा कारोबार।।
पार्टी के दफ़्तर बन गये हैं बाज़ार।
सच, राजनीति बनकर रह गयी है 'गंदा खेल'...।।
लंका के महाराज रावण राजनीति के प्रकांड पण्डित थे, महान योद्धा थे, कवि थे किन्तु उन्हें "अहंकार" हो गया था, एको अहम द्वितीयो न अस्ति, न भूतो, न भविष्यति। अर्थात एक मैं ही हूँ, और मुझ जैसे न भूतकाल में था, न आज है और न भविष्य में कभी होगा।
आज ममता दी भी कुछ वैसा ही चरित्र बन गई हैं, जो ब्राह्मण भी हैं,विद्वान भी हैं, राजनीतिज्ञ भी हैं, कवि भी हैं, महाकाली की परम भक्त भी हैं और अहंकारी भी हैं।
एको अहम द्वितीयो न अस्ति, न भूतो, न भविष्यति।।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
मोदी और ममता में एक समानता है, मोदी जी एक ग़रीब परिवार से हैं तो ममता दी ने भी ग़रीबी को बहुत नज़दीक से देखा है।
मोदी जी ने अपने कमज़ोर समय में परिवार के भरण-पोषण के लिये चाय बेची है, जबकि ममता दी ने अपनी विधवा माँ और छोटे भाई-बहनों के भरण-पोषण हेतु दूध बेचा है।
यानी *एक तरफ़ "मोदी चायवाला" है तो दूसरी तरफ़ "ममता दूधवाली" हैं।*
5 जनवरी 1955 को एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मी ममता बनर्जी के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनकी मृत्यु ममता जी के बचपन में ही हो गई थी। और इसीलिए ममता बनर्जी ने अपनी विधवा माँ और छोटे भाई-बहनों को पालने के लिए दूध विक्रेता का कार्य किया था।
ममता बनर्जी बेहद समझदार और पढ़ी-लिखी काबिल राजनीतिज्ञ हैं। दक्षिण कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से उन्होंने इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी। बाद में, कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की। श्रीशिक्षायतन कॉलेज से उन्होंने बी.एड. की डिग्री भी ली। उन्होंने जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून में भी एक डिग्री ली थी।
बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस तरह का व्यवहार आज ममता बनर्जी कर रही हैं, ठीक उसी तरह का व्यवहार एक समय वामपन्थियों ने किया था जिसका सबसे अधिक विरोध खुद ममता बनर्जी ने किया था।2011 के राज्य विधानसभा चुनावों में उन्होंने माकपा और वामपंथी दलों की सरकार को 34 वर्षों के लगातार शासन के बाद उखाड़ फेंका था।
ममता बनर्जी एक साधारण महिला की तरह हमेशा सूती साड़ी पहनती हैं, और उन्होंने कभी कोई आभूषण या महंगा मेकअप नहीं किया।
एक और बात जो बहुत कम लोग जानते हैं कि ऊपर से बेहद कठोर और निर्मम दिखाई देने वाली ममता दी अंदर से एक सुकोमल ह्रदय की महिला हैं जो एक कवियत्री भी हैं।
'राजनीति' शीर्षक से उनकी एक कविता काफी चर्चित रही। कविता की कुछ पंक्तियां-
' राजनीति' एक शब्द, जिससे मन में कभी जागता था श्रद्धाभाव।
अब हो गये हैं इसके मायने बड़ा कारोबार।।
पार्टी के दफ़्तर बन गये हैं बाज़ार।
सच, राजनीति बनकर रह गयी है 'गंदा खेल'...।।
लंका के महाराज रावण राजनीति के प्रकांड पण्डित थे, महान योद्धा थे, कवि थे किन्तु उन्हें "अहंकार" हो गया था, एको अहम द्वितीयो न अस्ति, न भूतो, न भविष्यति। अर्थात एक मैं ही हूँ, और मुझ जैसे न भूतकाल में था, न आज है और न भविष्य में कभी होगा।
आज ममता दी भी कुछ वैसा ही चरित्र बन गई हैं, जो ब्राह्मण भी हैं,विद्वान भी हैं, राजनीतिज्ञ भी हैं, कवि भी हैं, महाकाली की परम भक्त भी हैं और अहंकारी भी हैं।
एको अहम द्वितीयो न अस्ति, न भूतो, न भविष्यति।।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*






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