ममता दीदी शायद भूल रही हैं कि हर "रावण" का एक अंत निश्चित है

प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक दृष्टिकोण होता है, उसकी अपनी एक समझ होती है और अपना एक तर्क होता है, यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति का दृष्टिकोण, तर्क और समझ सही हो परन्तु वह उसे हमेशा सही मानता है। इसीलिए कहा गया है कि *जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी।*
दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं, पहले वो जो ग़लत को हमेशा ग़लत कहते हैं और सही को सही, दूसरे वह लोग होते हैं जो अपने तर्क, अपने दृष्टिकोण और अपनी ईगो की अनुकूलता के हिसाब से ग़लत और सही की परिभाषा तय करते हैं, अर्थात ऐसे लोगों का मानना होता है कि जो कुछ वह कहते या समझते हैं, वही सही है। तीसरे लोग वह होते हैं जो अपने हित औऱ स्वार्थ के वशीभूत होकर सही और ग़लत को परिभाषित करते हैं, अर्थात ऐसे लोग उसको सही मानते हैं जो उनके पक्ष में है या जिससे उन्हें लाभ है और उनको ग़लत मानते हैं जो उनके विरुद्ध है अथवा जिससे उन्हें नुकसान है।

मेरा मानना है कि वाद या डिबेट उनसे ही करनी चाहिए जो पहली श्रेणी के लोग हैं, अर्थात जो लोग तर्क की कसौटी पर सही और ग़लत का फैसला करते हैं, बाकी दोनों श्रेणियों के लोग केवल कुतर्क करेंगे, अतः उनसे वाद नहीं अपितु विवाद शुरू हो जाएगा।

*मेरे एक परम मित्र डॉ. मुनीर ख़ालिद साहब का कहना है कि "शास्त्री जी, जो ग़लत है वो अगर कुछ ग़लत करता या कहता है तो उसे समझाने का प्रयास मत करो क्योंकि वह ग़लत है और उसके दृष्टिकोण से "ग़लत" ही सही है। अगर आप उसे समझाएंगे तो वह आपको अपना दुश्मन मान लेगा।*

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी उर्फ दीदी को समझाना या टोकना मेरे दृषिटकोण से ग़लत है क्योंकि ममता दीदी के पास कुतर्क हैं, उनका दृष्टिकोण ही ग़लत है, इसलिये उन्हें समझाने का अब कोई लाभ नहीं। ममता दीदी दूसरी श्रेणी में हैं जिन्हें लगता है कि जो वह कह रही या कर रही हैं वही सही है, बाकी सब ग़लत है।
*कल तक वाममोर्चे को ग़लत बताने वाली, उसको तानाशाह बताकर उसके ख़िलाफ़ आंदोलन कर उसकी सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली ममता दीदी आज कुछ वैसा ही "रावणराज" कर रही हैं जिसका कभी उन्होंने पुरज़ोर विरोध किया था। लेकिन वह भूल रही हैं कि हर "रावण" का एक अंत निश्चित है, जिसकी शुरुआत "जय श्रीराम" के उदघोष से होती है।*

-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"

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