*आपके 33 करोड़ देवी-देवता हैं, उनसे किस-किस देवी-देवता का नाम बुलवाओगे*
आप हिन्दू हैं इसलिये आपको जय श्रीराम ही कहना चाहिए क्योंकि श्रीराम आपके लिए आपकी आस्था, आपके विश्वास और आपकी निष्ठा का प्रतीक हैं, आपके भगवान हैं।
वो मुस्लिम हैं उन्हें अल्लाह हू अकबर ही कहना है क्योंकि उनका मज़हब अल्लाह के अलावा किसी और कि इबादत की इजाज़त नहीं देता। वह मस्ज़िद जाएंगे और आप मंदिर जाइये। आप पूजा करिए और उन्हें नमाज़ पढ़ने दीजिये, इसमें झगड़ा कहाँ हैं.
लेकिन अगर आप उनसे कहें कि वह जय श्रीराम कहें या वो आपसे कहें कि आप अल्लाह हू अकबर कहिये तो झगड़ा-फसाद तो होगा ही होगा।
श्रीराम या अल्लाह का कोई ताल्लुक राजनीति से नहीं होना चाहिए और न है। असल मसला धर्म का है ही नहीं, बल्कि मसला सत्ता का है। जो लोग जय श्रीराम का नारा बुलंद कर रहे हैं उन्हें चाहिए कि वह श्रीराम के आदर्शों का भी तो पालन करें। अयोध्या में जाकर जय श्रीराम का नारा लगाएं, वहां श्रीराम का मंदिर बनवाएं, देश में रामराज्य क़ायम करें।आखिर आप कब तक श्रीराम के नाम पर वोट मांगते रहेंगे। कब तक राम नाम पर सियासत करते रहेंगे?
*मुसलमान सिर्फ एक अल्लाह को मानता है, वह आपसे सिर्फ और सिर्फ अल्लाह हू अकबर ही कहलवा सकता है। लेकिन आप 33 करोड़ देवी-देवताओं को मानते हैं, बताइये कि आप उनसे (मुसलमानों से) किस-किस देवी-देवता के नाम बुलवाएँगे।*
आप इस देश के 18 करोड़ मुसलमानों को एक-एक देवी-देवता का नाम भी बुलवाने के लिए दें दें तब भी आपके 15 करोड़ देवी-देवता बच जाएंगे।
इस देश में 18 करोड़ मुसलमानों को आप उठाकर बाहर नहीं फेंक सकते, उनके साथ रहकर उनको समझना पड़ेगा। उनको विश्वास में लेना होगा।
मेरे दृष्टिकोण से समस्या हिन्दू-मुस्लिम के बीच नहीं है और न ही सिख और ईसाई से, दरअसल असल समस्या उन लोगों से है जो हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, जो भाई से भाई को लड़वाने की बात कर रहे हैं। समस्या उन लोगों से है जो संसद में जय श्रीराम और अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हैं।
मौत चाहे भरत यादव की हो या तबरेज अंसारी की, लेकिन मरने वाला आखिर है तो हमारे-तुम्हारे जैसा इंसान ही।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
वो मुस्लिम हैं उन्हें अल्लाह हू अकबर ही कहना है क्योंकि उनका मज़हब अल्लाह के अलावा किसी और कि इबादत की इजाज़त नहीं देता। वह मस्ज़िद जाएंगे और आप मंदिर जाइये। आप पूजा करिए और उन्हें नमाज़ पढ़ने दीजिये, इसमें झगड़ा कहाँ हैं.
लेकिन अगर आप उनसे कहें कि वह जय श्रीराम कहें या वो आपसे कहें कि आप अल्लाह हू अकबर कहिये तो झगड़ा-फसाद तो होगा ही होगा।
श्रीराम या अल्लाह का कोई ताल्लुक राजनीति से नहीं होना चाहिए और न है। असल मसला धर्म का है ही नहीं, बल्कि मसला सत्ता का है। जो लोग जय श्रीराम का नारा बुलंद कर रहे हैं उन्हें चाहिए कि वह श्रीराम के आदर्शों का भी तो पालन करें। अयोध्या में जाकर जय श्रीराम का नारा लगाएं, वहां श्रीराम का मंदिर बनवाएं, देश में रामराज्य क़ायम करें।आखिर आप कब तक श्रीराम के नाम पर वोट मांगते रहेंगे। कब तक राम नाम पर सियासत करते रहेंगे?
*मुसलमान सिर्फ एक अल्लाह को मानता है, वह आपसे सिर्फ और सिर्फ अल्लाह हू अकबर ही कहलवा सकता है। लेकिन आप 33 करोड़ देवी-देवताओं को मानते हैं, बताइये कि आप उनसे (मुसलमानों से) किस-किस देवी-देवता के नाम बुलवाएँगे।*
आप इस देश के 18 करोड़ मुसलमानों को एक-एक देवी-देवता का नाम भी बुलवाने के लिए दें दें तब भी आपके 15 करोड़ देवी-देवता बच जाएंगे।
इस देश में 18 करोड़ मुसलमानों को आप उठाकर बाहर नहीं फेंक सकते, उनके साथ रहकर उनको समझना पड़ेगा। उनको विश्वास में लेना होगा।
मेरे दृष्टिकोण से समस्या हिन्दू-मुस्लिम के बीच नहीं है और न ही सिख और ईसाई से, दरअसल असल समस्या उन लोगों से है जो हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, जो भाई से भाई को लड़वाने की बात कर रहे हैं। समस्या उन लोगों से है जो संसद में जय श्रीराम और अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हैं।
मौत चाहे भरत यादव की हो या तबरेज अंसारी की, लेकिन मरने वाला आखिर है तो हमारे-तुम्हारे जैसा इंसान ही।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*






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