सरकार किसी की भी हो, मुसलमान आज भी अपने हुनर पर जिंदा है
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का हर चौथा भिखारी मुसलमान है। भारत की आबादी में मुसलमान मात्र 14.23 फीसदी है, जबकि भिखारियों की आबादी में उसकी हिस्सेदारी 24.9 प्रतिशत है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यह बात सामने निकलकर आई है।
30 नवम्बर 2006 को जस्टिस राजेन्द्र सिंह सच्चर आयोग की 403 पेज की रिपोर्ट जब लोकसभा में रखी गई, तब यह बात सामने आई थी कि भारतीय मुसलमानों की आर्थिक स्थिति इस देश के दलित समुदाय से भी बदतर है।
हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अजीम प्रेमजी की सालाना आय 18.5 बिलियन डॉलर है। एक रिपोर्ट के अनुसार अजीम प्रेमजी, शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान की कुल आमदनी का योगदान भारतीय जीडीपी में 1 प्रतिशत बनता है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार आम भारतीय मुसलमान का प्रतिदिन का औसत खर्च 32.7 रुपये है। इस बात से बहुत कम लोग इत्तेफ़ाक़ करेंगे कि आज के समय में भारतीय मुसलमानों की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।
भारतीय मुसलमान एक बेहद जज्बाती और दीनी ख़्याल वाला इंसान है, जिसका भरोसा सरकारी रिपोर्ट्स पर कम और अपने अल्लाह पर ज्यादा है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो मुस्लिम समुदाय अपने कर्म पर अधिक विश्वास करता है, अधिकांश मुस्लिम हाथ के कारीगर हैं। मेरा मानना है कि हिंदुस्तान में एक मुसलमान ही ऐसी कौम है जो सरकारी नौकरियों में जाने की इच्छा न के बराबर ही रखती है। शायद इसीलिए मुसलमानों ने कभी भी आरक्षण की मांग नहीं की और न ही करने के कोई आसार नज़र आये।
सच पूछिए तो मुस्लिम समुदाय केवल अपने हाथों के हुनर पर ही जिंदा है, वह अपने हाथ की कारीगरी की कमाई पर ज़्यादा भरोसा रखता है। लोहार, बढ़ई, ड्राइवर, मनिहार, बुनकर, नाई, धोबी, प्लम्बर, राज मिस्त्री, मैकेनिक आदि, इन्में अधिकांश लोग मुस्लिम समुदाय के ही हैं।
मेरे दृष्टिकोण में मुसलमान एक अकेली ऐसी कौम है, जो केवल अपने मज़हब और अपने हाथ के हुनर पर ही भरोसा करती है। हिन्दू राजपूतों की तरह ही मुसलमान भी सबसे वफ़ादार कौम है, बशर्ते उनके मज़हब पर कोई आंच न आती हो।
यही कारण है कि मुस्लिम समाज दुनियावी पढ़ाई से ज़्यादा दीनी तालीम पर ध्यान देता है, और शायद इसीलिए यह कौम दीन से ज़्यादा कंट्रोल होती है।
मैं तो कहूँगा कि आम भारतीय मुसलमान केवल अपनी रोजी-रोटी में ही मस्त रहता है, उसे राजनीति जैसे अहम मसलों के विषय में चिंतन की कोई ख़ास ज़रुरत नहीं रहती।
शायद यही कारण है कि मुस्लिम समुदाय आज तक किसी भी सरकार से सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर अमल नहीं करा सका। मुस्लिम समुदाय का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि यूपीए सरकार में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई, किन्तु सोनिया गांधी जैसी नेता जोकि कथित तौर पर बाटला एनकाउंटर पर आंसू बहाती हैं, किन्तु जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट सामने आती है, तब अपनी आंखें बंद कर लेती हैं।
उधर मोदी जी को मुस्लिम महिलाओं के वैवाहिक जीवन में दख़ल देने की काफी चिंता रही, किन्तु मुसलमानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का रास्ता निकालने में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई।
कुल मिलाकर आज़ादी के बाद से आज तक मुसलमान अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के अलावा औऱ कुछ नहीं कर पाया, या यूं कहिये कि सरकार किसी की भी हो भारतीय मुसलमान आज भी केवल अल्लाह के भरोसे ही है।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
30 नवम्बर 2006 को जस्टिस राजेन्द्र सिंह सच्चर आयोग की 403 पेज की रिपोर्ट जब लोकसभा में रखी गई, तब यह बात सामने आई थी कि भारतीय मुसलमानों की आर्थिक स्थिति इस देश के दलित समुदाय से भी बदतर है।
हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अजीम प्रेमजी की सालाना आय 18.5 बिलियन डॉलर है। एक रिपोर्ट के अनुसार अजीम प्रेमजी, शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान की कुल आमदनी का योगदान भारतीय जीडीपी में 1 प्रतिशत बनता है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार आम भारतीय मुसलमान का प्रतिदिन का औसत खर्च 32.7 रुपये है। इस बात से बहुत कम लोग इत्तेफ़ाक़ करेंगे कि आज के समय में भारतीय मुसलमानों की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है।
भारतीय मुसलमान एक बेहद जज्बाती और दीनी ख़्याल वाला इंसान है, जिसका भरोसा सरकारी रिपोर्ट्स पर कम और अपने अल्लाह पर ज्यादा है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो मुस्लिम समुदाय अपने कर्म पर अधिक विश्वास करता है, अधिकांश मुस्लिम हाथ के कारीगर हैं। मेरा मानना है कि हिंदुस्तान में एक मुसलमान ही ऐसी कौम है जो सरकारी नौकरियों में जाने की इच्छा न के बराबर ही रखती है। शायद इसीलिए मुसलमानों ने कभी भी आरक्षण की मांग नहीं की और न ही करने के कोई आसार नज़र आये।
सच पूछिए तो मुस्लिम समुदाय केवल अपने हाथों के हुनर पर ही जिंदा है, वह अपने हाथ की कारीगरी की कमाई पर ज़्यादा भरोसा रखता है। लोहार, बढ़ई, ड्राइवर, मनिहार, बुनकर, नाई, धोबी, प्लम्बर, राज मिस्त्री, मैकेनिक आदि, इन्में अधिकांश लोग मुस्लिम समुदाय के ही हैं।
मेरे दृष्टिकोण में मुसलमान एक अकेली ऐसी कौम है, जो केवल अपने मज़हब और अपने हाथ के हुनर पर ही भरोसा करती है। हिन्दू राजपूतों की तरह ही मुसलमान भी सबसे वफ़ादार कौम है, बशर्ते उनके मज़हब पर कोई आंच न आती हो।
यही कारण है कि मुस्लिम समाज दुनियावी पढ़ाई से ज़्यादा दीनी तालीम पर ध्यान देता है, और शायद इसीलिए यह कौम दीन से ज़्यादा कंट्रोल होती है।
मैं तो कहूँगा कि आम भारतीय मुसलमान केवल अपनी रोजी-रोटी में ही मस्त रहता है, उसे राजनीति जैसे अहम मसलों के विषय में चिंतन की कोई ख़ास ज़रुरत नहीं रहती।
शायद यही कारण है कि मुस्लिम समुदाय आज तक किसी भी सरकार से सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर अमल नहीं करा सका। मुस्लिम समुदाय का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि यूपीए सरकार में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई, किन्तु सोनिया गांधी जैसी नेता जोकि कथित तौर पर बाटला एनकाउंटर पर आंसू बहाती हैं, किन्तु जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट सामने आती है, तब अपनी आंखें बंद कर लेती हैं।
उधर मोदी जी को मुस्लिम महिलाओं के वैवाहिक जीवन में दख़ल देने की काफी चिंता रही, किन्तु मुसलमानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का रास्ता निकालने में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई।
कुल मिलाकर आज़ादी के बाद से आज तक मुसलमान अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के अलावा औऱ कुछ नहीं कर पाया, या यूं कहिये कि सरकार किसी की भी हो भारतीय मुसलमान आज भी केवल अल्लाह के भरोसे ही है।
*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*





Comments
Post a Comment
Thanks for your Comments.