पूर्व विधायक इकबाल ठेकेदार हैं दलित-मुस्लिम गठबंधन के फेविकोल

*पूर्व विधायक इकबाल ठेकेदार हैं दलित-मुस्लिम गठबंधन के फेविकोल*

पूर्व विधायक और बसपा के दिग्गज नेता इकबाल ठेकेदार के पार्टी से निष्कासन को लेकर चाँदपुर क्षेत्र के मुस्लिम और दलित समाज के लोगों के एक बड़े वर्ग में बेहद रोष व्याप्त है। 
इस सम्बंध में एक प्रेस नोट भी जारी किया गया है, जिसपर करन सिंह, देवराज सिंह जाटव, कालूराम, तुलाराम, बृजपाल सिंह जाटव, जितेंद्र सिंह, परम सिंह, होराम सिंह, विजयपाल, करतार सिंह, वीरसिंह जाटव, डॉ. राजेश कुमार, चेतराम, पदम सिंह सहित कई लोगों के हस्ताक्षर हैं।
इस प्रेस नोट के अनुसार इन सभी लोगों ने बसपा सुप्रीमों मायावती से यह मांग की गई है कि जो लोग पार्टी को कमजोर करने के लिए निराधार और भ्रामक प्रचार कर रहे हैं, उन्हें तत्काल पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
इस प्रेस नोट के अनुसार पूर्व विधायक मौहम्मद इकबाल ठेकेदार के विरुद्ध जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव करने के जो कथित आरोप लगाए गए हैं,वह मिथ्या हैं और उनका कोई ठोस आधार भी नहीं है।
इसमें यह भी लिखा गया है कि इकबाल ठेकेदार दलित समाज के समस्त उत्सवों, विवाह समारोह व अन्य सभी सुख-दुःख में शामिल होते रहते हैं। 
इस बात को प्रमुखता से लिखा गया है कि इकबाल ठेकेदार मुस्लिम और दलित गठजोड़ के लिए हरसम्भव प्रयास करते रहे हैं, और इकबाल ठेकेदार के विधायक रहते, विधानसभा-23 चाँदपुर में दलित-मुस्लिम गठजोड़ और बेहतर बना है। 
कुल मिलाकर इस प्रेस नोट का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि क्षेत्र में मुस्लिम-दलित गठजोड़ को मजबूती प्रदान करने के लिए मौहम्मद इकबाल ठेकेदार नामक "फेविकोल" बेहद ज़रूरी है। 
इस विषय में मौहल्ला पतियापाड़ा के जमाल खान, शब्बू खान आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए और उन्होंने कहा कि *"इकबाल ठेकेदार जैसे अनुभवी और कुशल राजनीतिज्ञों की इस समय पार्टी में बेहद आवश्यकता है।*
*भाजपा का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट होने के साथ-साथ ऐसे लोगों को भी साथ लेकर चलना होगा जो सर्वसमाज को साथ लेकर चलने में सक्षम हों और उनमें राजनीतिक दूरदर्शिता भी हो। और ऐसे लोगों में इकबाल ठेकेदार का नाम जिले में नहीं वरन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुशल राजनीतिज्ञों की टॉप टेन की लिस्ट में आता है।"*

फिलहाल एक बात तो तय है कि कुछ तो है जिसकी पर्देदारी है। सुनने में तो यह भी आया है कि यह सारा घटनाक्रम  बसपा की रणनीति का ही एक हिस्सा है।
यूं भी यह बात समझ से बाहर ही है कि कोई भी पार्टी चुनावी युद्ध से ठीक पहले अपने कुशल लड़ाके को मैदान से बाहर क्यों खड़ा रखेगी और वो भी ऐसी परिस्थितियों में जबकि उनको किसी भी हालत में युद्ध में विजय हासिल करनी ही है।

कुल मिलाकर यह मामला क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। कुछ लोगों का तो यह भी पूछना है कि *क्या दलबदलुओं को पार्टी में लेकर और अपने वफादारों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर बसपा सही रणनीति अपना रही है?*

*-मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"*
राजनीतिक विश्लेषक
सह-सम्पादक-हिंदी दैनिक उगता भारत
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