हिन्दू खतरे में हो न हो किन्तु मोदी-अमित का राजनीतिक भविष्य जरूर खतरे में नज़र आ सकता है

एससी/एसटी एक्ट पर विधेयक, प्रमोशन में आरक्षण और श्रीराम मंदिर पर चुप्पी, साथ ही बाबा अम्बेडकर को अपना आदर्श बताने के पीछे की सियासत क्या है? कल तक टोपी और मस्जिद से दूरी बनाए रखने वाले श्री नरेन्द्र मोदी आज मस्जिदों की चौखट पर माथा क्यों झुका रहे हैं? क्या कारण है कि मोदी सरकार दलितराज स्थापित करने में लगी है?
क्या वाकई हिन्दू और हिंदुत्व खतरे में है? बहन मायावती बार-बार सम्मानजनक सीटों की बात क्यों कर रही हैं? शिवपाल यादव के सेक्युलर मोर्चे के पर्दे के पीछे क्या छुपा है? कल तक मोदी सरकार की दुहाई देने वाले तोगड़िया आज किस हिन्दू सरकार की बात कर रहे हैं?
इन सभी सवालों का जवाब एक बड़े रहस्य में छुपा है। आइये थोड़ा उस रहस्य को समझने का प्रयास करते हैं।
*आदरणीय मोदी जी का जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ था। इस हिसाब से मोदी जी की आयु 68 वर्ष हो चुकी है। खुद मोदी जी के बनाए कानून के अनुसार 75 वर्ष की आयु के पश्चात उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे मुरली मनोहर जोशी, आडवाणी को भेज दिया गया। यानी रिटायरमेंट, और मार्गदर्शक मंडल में समायोजन।*
अब ऐसे में मोदी जी के पास मात्र 7 साल बचे हैं, यानी 2019 का चुनाव मोदी और उनके ख़ास लोगों के लिए "करो या मरो" वाली स्थिति लेकर आया है।
अगर मोदी जी 2019 में प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं, तब मोदी जी का राजनीतिक भविष्य भी अंधकारमय हो जाएगा, यानी खतरा ही खतरा। मोदी जी के साथ ही उनके प्रियमित्रों के राजनीतिक भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है।
इस बार मोदी जी के परम मित्र और वर्तमान में भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह की योग्यता की भी अग्निपरीक्षा है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2019 में सत्ता उसी के पास होगी जो उत्तर प्रदेश और बिहार की कुल 120 सीटों पर अपना डंका बजवायेगा।
ऐसे में सबसे जरूरी है कि इन दोनों ही राज्यों में मोदी पार्टी अपनी पकड़ को मज़बूत बनाये।
बिहार और उत्तर प्रदेश में दलितों और पिछड़ों का बोलबाला है। बिहार में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान को काबू में करके मोदी पार्टी ने अपनी आधी लड़ाई लगभग जीत ली है।
किन्तु उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस के संभावित गठबन्धन ने मोदी एंड पार्टी की रातों की नींद हराम कर रखी है।
यहाँ सबसे ज्यादा खतरा बसपा से है। चूंकि उत्तर प्रदेश में करीब 20.7 फीसदी दलित आबादी है और 14 लोकसभा व 86 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. इन पर बहनजी की पकड़ बेहद मज़बूत है जिसे हिलाना मोदी एंड पार्टी के बस की बात नहीं है। अब यदि बहनजी ने महागठबंधन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया तब मोदी जी हिट विकेट हो जायेंगे, और यही मोदी एंड पार्टी की सबसे बड़ा सरदर्द है।
मोदी जी ने महाराष्ट्र में रामदास अठावले, बिहार में रामविलास पासवान को तो साध लिया है लेकिन उत्तर प्रदेश में बहनजी को समझाना, मानो लोहे के चने चबाने जैसा ही है।
इसलिए मोदी एंड पार्टी दलितों पर डोरे डालने में लगी है। इसी राह में एक कदम आगे बढ़ते हुए ही भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण को छोड़ा गया।
इससे मोदी पार्टी को दो फायदे हैं, एक तो इससे बहनजी पर दबाव पड़ सकता है, दूसरे दलितों में भी फुट पड़ने की संभावना बन सकती है।
ख़बर मिली है कि मोदी एंड पार्टी एक वरिष्ठ बसपा नेता के जरिये बहनजी से लगातार संपर्क बनाए हुए है, और लगातार इस बात के प्रयास किये जा रहे हैं कि बहनजी मान जाएं और मोदी-माया का गठबन्धन बन जाये। जोकि विपक्ष के लिए हृदय आघात से कम नहीं होगा और मोदी के लिए ब्रह्मास्त्र साबित होगा।
सुना तो यहां तक है कि मोदी एंड पार्टी बहनजी को 40 सीटें ऑफर कर चुकी है। साथ ही पूरे देश में उन्हें सम्मानजनक सीटें भी देना चाहती है।
दूसरी तरफ, मोदी पार्टी का यह मानना है कि यदि इतने पर भी बहनजी नहीं मानतीं तो रावण का उपयोग किया जाएगा, और डिवाइड एंड रूल की रणनीति अपनाई जाएगी।
समाजवादी में पहले ही फुट डाली जा चुकी है। शिवपाल यादव के सेक्युलर मोर्चे के पीछे भाजपा के ही एक बड़े नेता का हाथ बताया जा रहा है, अमर सिंह को भी अपने खेमे में कर लिया गया है।
सुना तो यह भी जा रहा है कि अजित सिंह पर भी डोरे डाले जा रहे हैं, किन्तु इसमें कितना सत्य है यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है।
फिलहाल एक बात तय है कि मोदी एंड पार्टी 2019 के चुनाव की जीत के लिए पैरों के नाखून से लेकर सिर के बालों तक दलित प्रेम में डूब चुकी है।
क्योंकि *खतरा हिन्दू या हिंदुत्व को नहीं ,बल्कि मोदी एंड पार्टी को है। हिन्दू खतरे में हो न हो किन्तु मोदी-अमित का राजनीतिक भविष्य जरूर खतरे में नज़र आ रहा है।*
*-पण्डित मनोज चतुर्वेदी "शास्त्री"

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