भंगी (वाल्मीकि), मेहतर किसी भी दृष्टिकोण से अछूत नहीं हैं, ये हमारे ही वंशज हैं

साभार 
भृगु से भार्गव, च्वयन, और्व, आप्नुवान, जमदग्नि, दधिची आदि के नाम से गोत्र चले. यदि हम ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु की बात करें तो वे आज से लगभग ९,४०० वर्ष पूर्व हुए थे. इनके बड़े भाई का नाम अंगिरा था. अत्रि, मरीचि, दक्ष, वशिष्ठ, पुलस्त्य, नारद, कर्दम, स्वयंभुव मनु, कृतु, पुलह, सनकादि ऋषि इनके भाई हैं. ये विष्णु के श्वसुर और शिव के साडू थे. महर्षि भृगु को भी सप्तऋषि मंडल में स्थान मिला है.
पारसी धर्म के लोगों को अत्रि, भृगु और अंगिरा के कुल का माना जाता है. पारसी धर्म के संस्थापक जरथूष्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिक माना गया है. पारसियों का धर्मग्रन्थ “जेंद अवेस्ता” है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है. मान्यता है कि अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया. अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ. जरथ्रुस्त्र ने इस धर्म को एक व्यवस्था दी तो इस धर्म का नाम “जरथ्रुस्त्र” या “जोराबियन धर्म” पड़ गया.
भृगु ऋषि के ३ प्रमुख पुत्र थे उशना, शुक्र एवं उनका परिवार दैत्यों के पक्ष में शामिल होने के कारण नष्ट हो गया. इस प्रकार च्वयन ऋषि ने भार्गव वंश की वृद्धि की. महाभारत में च्वयन ऋषि का वंश क्रम इस प्रकार है. च्वयन (पत्नी मनुकन्या आरुशि), और्व, और्व से ऋचीक, ऋचीक से जमदग्नि और जमदग्नि से परशुराम. भृगु ऋषि के पुत्रों में से च्वयन ऋषि एवं उसका परिवार पश्चिम हिंदुस्तान में आनर्त देश से सम्बन्धित था. उशनस शुक्र उत्तर भारत के मध्य भाग से सम्बन्धित था. इस वंश के प्रमुख व्यक्ति थे- ऋचीक, और्व, जमदग्नि, परशुराम, इन्द्रोत शौनक, प्राचेतस और वाल्मीकि.
वाल्मीकि वंश के कई लोग आज ब्राह्मण भी हैं और शूद्र भी. ऐसा कहा जाता कि मुगलकाल में जिन ब्राह्मणों ने मजबूरीवश जनेऊ भंग करके उनका मैला ढोना स्वीकार किया उनको शूद्र कहा गया. जिन क्षत्रियों को शूद्रों के ऊपर नियुक्त किया गया उन्हें महत्तर कहा गया, जो बाद में बिगड़कर मेहतर हो गया.
प्रख्यात साहित्यकार अमृतलाल नागर ने अनेक वर्षों के शोध के बाद पाया कि जिन्हें "भंगी", "मेहतर" आदि कहा गया, वे ब्राह्मण और क्षत्रिय थे. स्टेनले राईस ने अपनी पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एंड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय वे बहादुर जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए. गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन १९२५ में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम "पतित प्रभाकर" अर्थात मेहतर जाति का इतिहास था. इस छोटी सी पुस्तक में "भंगी. मेहतर, हलालखोर, चुहड़" आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं. श्री अमृत लाल नागर ने अपने उपन्यास "नाच्यो बहुत गोपाल" में 'पतित प्रभाकर' पुस्तक के हवाले से एक सूची प्रकाशित की जिसमें उन्होंने दर्शाया कि भंगियों के सरनेम तथा राजपूत सरनेम आपस में बिलकुल मिलते हैं. इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध किया कि मेहतर के मूल राजपूत होने में कोई संदेह नहीं है. अपने एक उपन्यास में यह निष्कर्ष निकाला है कि कुछ जातियों को जोर-जबरदस्ती से भंगी बनाया गया. इसके समर्थन में उन्होंने "मार-मार कर भंगी बनाना" कहावत का भी हवाला भी दिया. 
इन जातियों के जो यह सब भेद हैं, वह सबके सब क्षत्रिय जाति के भेद या किस्म हैं. (देखिये ट्राइब एंड कास्ट ऑफ़ बनारस, छापा सन १८७२ इसवी) यह भी देखिये कि सबसे अधिक इन अनुसूचित जातियों के लोग आज के उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है, जहाँ मुगलों के शासन का सीधा हस्तक्षेप था और जहाँ सबसे अधिक धर्मांतरण हुआ. 
एन्थोबिन शब्दकोश के अनुसार "उच्च वर्ण के सामाजिक बन्धनों और आचार संहिता का पालन न करने वाले लोगों को बहिष्कृत किया जाता था, और वे ही बाद में भंगी बन गए." 
हमारे लेख का विषयवस्तु सिर्फ यह नहीं है कि हम यह सिद्ध करने का यत्न करें कि मेहतर क्षत्रिय थे अथवा ब्राहमण भंगी. किन्तु हम पाठकों का ध्यान इस ओर भी आकर्षित करना चाहेंगे कि उक्त तथ्यों के आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मेहतर या भंगी किसी भी दृष्टिकोण से अछूत नहीं हैं.
संकलन - मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

Comments

Disclaimer

The views expressed herein are the author’s independent, research-based analytical opinion, strictly under Article 19(1)(a) of the Constitution of India and within the reasonable restrictions of Article 19(2), with complete respect for the sovereignty, public order, morality and law of the nation. This content is intended purely for public interest, education and intellectual discussion — not to target, insult, defame, provoke or incite hatred or violence against any religion, community, caste, gender, individual or institution. Any misinterpretation, misuse or reaction is solely the responsibility of the reader/recipient. The author/publisher shall not be legally or morally liable for any consequences arising therefrom. If any part of this message is found unintentionally hurtful, kindly inform with proper context — appropriate clarification/correction may be issued in goodwill.