ब्राह्मणों, बन्द करो ये जय श्रीराम का राग अलापना

बीती 17 तारीख को बिजनौर में "अंतराष्ट्रीय हिन्दू परिषद" के अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया का आगमन हुआ था।

वहां यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि जिला बिजनौर के कई ब्राह्मण मौजूद थे। इसलिए एक आशा बंधी कि निश्चित रूप से मौजूद वक्ता एससी/एसटी एक्ट और आरक्षण की समस्या पर जरूर बोलेंगे।
किन्तु यह देखकर बड़ा अफसोस हुआ कि एक अधीर कौशिक को छोड़कर कोई भी वक्ता इस ज्वलंत मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला।

खुद प्रवीण तोगड़िया भी केवल श्रीराम मंदिर निर्माण पर ही ज़ोर देते नज़र आये।

वास्तव में जिस अंदाज़ में प्रवीण तोगड़िया ने अपना भाषण शुरू किया था और जय श्रीराम, हर हर महादेव के नारे लगाए गए, उससे ही यह बात स्पष्ट नज़र आ रही थी कि वहां बैठे सभी लोगों को धर्म की अफीम चटवाने की पूरी तैयारी की जा चुकी थी।

धर्म एक ऐसा नशा है जो चढ़ता बहुत जल्दी से है, लेकिन उतरता बहुत देर से है। और ये बात तोगड़िया जैसे परिपक्व नेताओं से बेहतर कौन जान सकता है।

मज़े की बात यह है कि हिंदुस्तान में हर व्यक्ति इस नशे का आदि है। और इस नशे पर कोई कानून लागू नहीं होता। इंसान इतना डूब जाता है कि अपनों की ही जान ले लेता है। भाई-भाई का और पड़ोसी-पड़ोसी का दुश्मन हो जाता है।

जय श्रीराम के उदघोष के बात तो मानो सारा पंडाल एक धार्मिक उन्माद में डूब गया। वहां बैठे लोग ये भूल गए कि आरक्षण नामक अजगर और एससी/एसटी एक्ट नाम की पूतना उनके घर में, उनके ही बच्चों को निगलने के लिए तैयार बैठी है।

धार्मिक दलदल में गले-गले तक धंस चुका हुआ वहां बैठा सवर्ण समाज ये भूल गया कि आने वाले समय में उनके बच्चे बेरोजगारी की गर्त में घुसते जा रहे हैं। घर में भले ही हमारे बच्चों को दो वक्त की रोटी, तन ढकने को कपड़े न हों, लेकिन हम धर्म की अफीम के नशे में डूबे हुए बस इस बात पर तालियां बजा रहे हैं कि अयोध्या में राममन्दिर बनना है।

हमें न अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा की चिंता है, न उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की चिंता है, और न ही अपने सिर पर छत की आवश्यकता है लेकिन हम अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने की धुन में लगे हैं।

हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां शराब बेचने वालों, ड्रग्स बेचने वालों और नशा बेचने वालों पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन धर्म की अफ़ीम बेचने वाले नेताओं, पार्टियों और संगठनों पर कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है। बल्कि उन्हें तो कानूनी और सामाजिक संरक्षण मिलता है।

धिक्कार है, उन लोगों पर जो हमारे देश की युवापीढ़ी की नसों में धर्म के नशों के इंजेक्शन लगाकर उनको खोखला बना रही है।

युवाओं के रोजगार, बच्चों की शिक्षा, रोटी-कपड़ा और मकान की चिंता किसी को नहीं है लेकिन अयोध्या में राममंदिर की सबको चिंता है।

राममंदिर बनाने की मांग करने वाले सभी मोदीभक्तों, तोगड़िया भक्तों, रामभक्तों और तमाम ब्राह्मणों से मेरे सीधे सवाल-

क्या राममंदिर बनने के बाद सब ब्राह्मणों को रोजगार मिल जाएगा? क्या हमारे बच्चों को उच्च शिक्षा मिल जाएगी? क्या आरक्षण ख़त्म हो जाएगा? क्या एससी/एसटी एक्ट ख़त्म हो जाएगा? क्या लाखों कश्मीरी पंडितों को उनका अधिकार मिल जाएगा? क्या हमारे देश के शहीद जवानों की शहादत रुक जाएगी??

यदि हाँ, तो मैं भी आप सबके साथ अयोध्या जाऊंगा, राममंदिर वहीं बनाऊंगा। और यदि नहीं, तो डूब मरो चुल्लूभर पानी में।।
बन्द करो ये जय श्री राम का राग अलापना।

सबको शिक्षा-सबको रोजगार
की बात करो

*-मनोज चतुर्वेदी शास्त्री*

स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक-सामाजिक टिप्पणीकार

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