अपने को शेर कहने वाले ब्राह्मणों, एक दिन तुम गीदड़ से भी बदतर जिंदगी जियोगे
मथुरा जिले के नौहझील ब्लॉक के भैरई गांव की एक एससी महिला ने पहले अपने पति की हत्या के शक में एक ब्राह्मण युवक को जेल भिजवाया और मुआवजे में मिले 8.5 लाख रुपये डकार गई। उसके बाद उसने उसी ब्राह्मण परिवार के 6 लोगों को अपने बेटे की हत्या के आरोप में जेल भिजवा दिया, और सवा चार लाख रुपये का मुआवजा हासिल कर लिया। इन 6 लोगों में से 2 महिलाएं भी थीं।
इन लोगों ने अपने निर्दोष होने की बहुत दुहाई दी किन्तु किसी ने उनकी एक न सुनी। तब उन लोगों ने नरवारी और नौहवारी समाज से गुहार लगाई और पंचायत बैठी, जिसने पुलिस पर निष्पक्ष जांच का दबाव बनाया।
जांच में यह पाया गया कि अनुसूचित जाति की इस महिला ने मुआवजे की भारी-भरकम रकम के लालच में अपने ही देवर के साथ मिलकर अपने बेटे की निर्मम हत्या की थी। और उसका आरोप निर्दोष ब्राह्मण परिवार पर लगा दिया था।
इसके बाद उप्र एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने डीएम को आदेश दिया कि वह हत्यारोपित महिला से एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत लिए गए मुआवजे की रकम वसूल करें।
एक ऐसा ही प्रकरण बाँदा में आया जहां एक सामान्य वर्ग के व्यक्ति पर एससी/एसटी व्यक्ति की जहर देकर हत्या का आरोप लगाया गया। जबकि जांच में सामने आया कि उक्त व्यक्ति की मृत्यु शराब पीने के कारण हुई थी।
एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने माना कि उनके कार्यकाल में अब तक 500 केसों का निस्तारण किया गया है, जिनमें से 10-15 प्रतिशत से अधिक मामले झूठे पाए गए हैं। आयोग अध्यक्ष ने माना कि हत्या जैसे संगीन अपराध में एससी/एसटी एक्ट को हथियार की तरह इस्तेमाल करना बेहद गम्भीर मसला है। उन्होंने आगे कहा कि कई मामलों में निजी स्वार्थ के लिए इस एक्ट का दुरुपयोग किया जाता है।
श्री बृजलाल ने स्पष्ट तौर पर कहा कि केवल एफआईआर दर्ज होने से कोई मुलजिम नहीं बन जाता। एफआईआर का अर्थ सही मायने में कई गई शिकायत होती है।
पर प्रश्न यह है कि क्या केवल मथुरा प्रकरण में ही सच्चाई सामने आई है, निसंदेह ऐसे न जाने कितने ब्राह्मण परिवार निर्दोष होकर भी जेल में एड़ियां रगड़ रहे होंगे, जिनकी सच्चाई शायद ही सामने आ पाए।
इस एक्ट में सबसे बड़ा दोष है मुआवजे की रकम का लालच। जिसके चलते झूठे केसों को प्रोत्साहन मिलता है। समाज की यह सोच कि एससी/एसटी पर वर्षों से एक जाति विशेष के लोग ही अत्याचार करते आये हैं, इसलिए उनपर दोषारोपण करना ज्यादा उचित है।
मथुरा प्रकरण में सच सामने आ गया, किन्तु क्या किसी ने सोचा उस ब्राह्मण परिवार की पीड़ा को गहराई से महसूस किया जिसके एक ही परिवार के 6 सदस्य जिनमें 2 महिलाओं को भी आरोपी बनाया गया था, जेल में डाल दिये गए।
जरा सोचिए कि उस परिवार की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक स्थिति के बारे में, कल्पना कीजिये उस दंश की जो उस परिवार को आजीवन भुगतना पड़ेगा।
उन बच्चों की मानसिक स्थिति के विषय में जिह्नोंने अपने परिवार के बड़ों को रोज तिल-तिल मरते देखा है, घुटन भरी जिंदगी, पुलिस और समाज की प्रताड़ना, यह सब उन्हें किस मानसिक स्थिति की ओर ले जा रहा है, इसकी कल्पना करना भी भयावह है।
मैं पूछता हूँ भाजपा और अन्य पार्टियों के कथित ब्राह्मण नेताओं से, क्या वह उस परिवार को उस पीड़ा, घुटन, भय, अपमान से बाहर निकाल पाएंगे?
कहाँ हैं वह ब्राह्मण संगठन जो लाखों रुपये का चंदा वसूल करते हैं, और जाकर किसी ब्राह्मण विरोधी नेता की गोद में बैठ जाते हैं।
भले ही आज आप मेरी बात से सहमत न हों, भले ही आज आप किसी पार्टी विशेष की दलाली में लगे हों, भले ही कथित हिंदुत्व का पर्दा आपकी आंख पर पड़ा हो, लेकिन एक दिन यह आग आपके घर तक जरूर पहुँचेगी।
*अपने को शेर कहने वाले ब्राह्मणों एक दिन तुम गीदड़ से भी बदतर हालात में जियोगे, उस समय पूछुंगा कि कौन सा हिंदुत्व तुम्हें पसन्द है?*
*-मनोज चतुर्वेदी शास्त्री*
ब्राह्मण संस्कृति सेवासंघ
*स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक-सामाजिक टिपण्णीकार*





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