शायद इन आंकड़ों को समझकर ही कांग्रेस ने अपने आप को कथित रूप से मुस्लिम पार्टी घोषित किया है


अमेरिका के मशहूर समाजशास्त्री लुईस वर्थ ने माइनॉरिटी (अल्पंख्यक) की जो परिभाषा दी, उसके मुताबिक, “ऐसे लोग जो शारीरिक और सांस्कृतिक विशेषताओं की वजह से अलग हों, अथवा जिनके साथ समाज में असमान व्यवहार या भेदभाव किया जाता हो, को अल्पसंख्यक कहा जायेगा.”
भारत में १९९२ में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कानून बना और इस कानून के सेक्शन 2(C) के मुताबिक अल्पसंख्यक वो है, जिसे केंद्र नोटिफाई करे. १९९३ में मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोग राष्ट्रीय अल्पसंख्यक के तौर पर चिन्हित किये गए. २०१४ में जैन समुदाय के लोगों को भी अल्पसंख्यक माना गया था. देश के १२ राज्यों में राज्य स्तर पर भी अल्पसंख्यक आयोग काम कर रहे हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्य ऐसे हैं जहाँ अल्पसंख्यक आयोग बना ही नहीं. २०१२ में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने कश्मीरी पंडितों और राज्य के दुसरे अल्पसंख्यकों के लिए कानून बनाने की मांग की थी, लेकिन तब की उमर अब्दुल्ला सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. और आज भी जम्मू-कश्मीर में कोई अल्पसंख्यक आयोग नहीं है. आज भी जम्मू-कश्मीर की सरकार ने राज्य में अल्पसंख्यकों के तौर पर किसी समुदाय को चिन्हित नहीं किया है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९ और ३० में अल्पसंख्यकों के लिए सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार का प्रावधान किया गया है. संविधान के अनुच्छेद २९(१) के अनुसार किसी भी समुदाय के लोग जो भारत के किसी राज्य में रहते हैं या कोई क्षेत्र जिसकी अपनी आंचलिक भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उस क्षेत्र को संरक्षित करने का उन्हें पूरा अधिकार होगा.
२०११ की जनगणना के मुताबिक भारत में ७९.८ आबादी हिन्दुओं की है जबकि मुसलमानों की कुल जनसंख्या १७ करोड़ २२ लाख है, जो कि कुल आबादी का १४.२ प्रतिशत है. पिछली यानि २००१ की जनगणना में यह आबादी कुल आबादी की १३.४ फीसदी थी. अर्थात मुसलमानों की आबादी में आनुपातिक तौर पर ८ फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. वहीँ देश का बहुसंख्यक समुदाय अर्थात हिन्दू समुदाय कुल जनसंख्या का ७९.८ फीसदी है, जो कि २००१ में ८०.५ फीसदी था. अर्थात हिन्दुओं की हिस्सेदारी कम हो रही है. इसके अतिरिक्त अगर अन्य अल्पसंख्यक समुदाय और जैन समुदाय की स्थिति में कोई कमी नहीं आई है, जबकि सिक्ख समुदाय की हिस्सेदारी में ०.२ प्रतिशत की मामूली कमी आई है. लगभग ऐसी ही स्थिति बौध समुदाय की भी है. कुल मिलाकर मुस्लिम समुदाय की वृद्धि दर कुल जनसंख्या की वृद्धि दर से ६.९ प्रतिशत ज्यादा है. देश की जनसंख्या इन वर्षों में १७.७ प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जबकि मुसलमान समुदाय की वृद्धि दर २४.६ प्रतिशत रही है. जबकि हिन्दुओं में यही वृद्धि दर मात्र १६.८ प्रतिशत है जो ०.९ प्रतिशत कम है.
उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों में मुस्लिम आबादी तुलनात्मक रूप से अधिक है. उत्तर प्रदेश के २१ जिले ऐसे हैं, जहाँ मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी २० प्रतिशत से अधिक है. उत्तर प्रदेश के  जिले ऐसे हैं जहाँ मुस्लिम समुदाय और हिन्दू समुदाय जनसंख्या में बराबर हैं. २०११ के आंकड़ों के अनुसार मिजोरम में २.७५ प्रतिशत, लक्षदीप में २.७७ प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर में २८.४४ प्रतिशत, नागालैंड में ८.७५ प्रतिशत, मेघालय में ११.५३ प्रतिशत, मणिपुर में ४१.३९ प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में २९.०४ प्रतिशत और पंजाब में ३८.४ प्रतिशत हिन्दू हैं. कुल मिलाकर हिन्दू और मुस्लिम ९४ प्रतिशत हैं. बाकी ६ प्रतिशत लोग दुसरे धर्मों के हैं.
अमेरिका के थिंक टैंक PEW Research के मुताबिक 2050 तक भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमान होंगे. अभी दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान इंडोनेशिया में रहते हैं. इंडोनेशिया में २२ करोड़ मुसलमान हैं और भारत में १९ करोड़ मुस्लिम हैं, जो कि मुस्लिम समुदाय की विश्व में दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 में भारत में ३० करोड़ मुसलमान हो जायेंगे. इसी भविष्यवाणी के चलते कुछ राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को रिझाना शुरू कर दिया है. जाहिर है आने वाले समय में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीती करने वाले दलों की चांदी होगी, शायद इसीलिए कांग्रेस ने कथित रूप से अपने को मुस्लिम पार्टी घोषित कर दिया है.    
संकलन- मनोज चतुर्वेदी

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