हत्या से ठीक एक रात पहले गाँधीजी ने कांग्रेस को राजनीतिक संगठन के रूप में भंग करने का मसौदा तैयार किया था


गाँधी जी का मानना था कि कांग्रेस आजादी के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर चुकी है, इसलिए उनका सुझाव था कि राजनीतिक संगठन के रूप में अब इसे भंग करके “लोक सेवा संघ” बनाया जाये, जो राजनीति से ऊपर उठकर जनसेवा का उपकरण बने.
३० जनवरी, १९४८ ईसवी(शुक्रवार) के दिन गाँधी जी रोज की तरह प्रातः तड़के उठ गए थे. वे अपने उस मसविदे में लगे थे, जिसे कि उनके जीवनी लेखकों ने “गाँधी जी की अंतिम इच्छा या वसीयत” कहकर पुकारा है. २९ जनवरी को हत्या से ठीक एक शाम पहले गाँधी जी ने कांग्रेस के लिए इस संविधान को तैयार किया था. यह एक ऐसी प्रस्तावित योजना थी, जिसमें कांग्रेस की भावी रूपरेखा को प्रस्तुत किया गया था, जिसपर कि कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं को विचार करना था. हालाँकि कांग्रेस की स्थापना में गाँधी जी का कोई योगदान नहीं था, तथापि इसे आम जनता का प्रतिनिधि बनाने में गाँधी जी का योगदान अन्य किसी नेता से कहीं ज्यादा था.
गाँधी जी ने कहा था “दो टुकड़ों में बंटकर ही सही आख़िरकार भारत राजनीतिक रूप से आजाद हो गया. आजादी की इस जमीन को रचने में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अहम भूमिका रही, लेकिन अब इसके वर्तमान रूप और आकार में किसी प्रचारतंत्र या संसदीय यंत्र जैसी गंध महसूस होती है. इसकी उपादेयता चूकने लगी है. देखा जाये तो भारत को, यहाँ के सात लाख गाँवों और कस्बों को अभी भी सामाजिक, नैतिक और आर्थिक स्वतंत्रता की दरकार है”.
कांग्रेस के वे नेता, जो उनके आदर्श में विश्वास करते थे, उनसे उनकी अपील थी कि वे इस “लोक सेवा संघ” में शामिल होकर इस कार्य में जुट जाएँ और गांवों के करोड़ों-भूखों व् बेसहारों की सेवा करो. अब वे कांग्रेस को किसी संसदीय यंत्र के रूप में नहीं, बल्कि जनसेवकतन्त्र के रूप में बढ़ते देखना चाहते थे. “हरिजन” के १५ फरवरी, १९४८ के अंक में छपे में “हिज लास्ट विल एंड टेस्टामेंट” शीर्षक से प्रकाशित आलेख बताता है कि सामाजिक, नैतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के लक्ष्य में कांग्रेस की क्या और कैसी भूमिका चाहते थे. सम्पूर्ण वांगमय में यही दस्तावेज कांग्रेस के संविधान का मसौदा शीर्षक से मौजूद है. इस मसौदे में गाँधी जी ने लिखा है- “ भारत को सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है. भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर जनसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है. हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है. ऐसे ही कारणों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार “लोक सेवक संघ” के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है.
गाँधीजी ने ये मसौदा २९ जनवरी १९४८ की रात में तैयार किया था, जिसके अगले ही दिन उनकी हत्या कर दी गई. चूँकि ऐसा करने के कुछ ही घंटों के बाद ही उनकी हत्या कर दी गई. इसलिए इसपर कोई कार्य नहीं किया जा सका.
एक सच्चाई ये भी है कि आजादी मिलने के बाद से ही कांग्रेस के भीतर संविधान में फेरबदल के जरूरत महसूस की जा रही थी. १६ नवम्बर १९४७ को कांग्रेस कार्यसमिति ने इसके लिए पारित प्रस्ताव में कहा था: “चूँकि विदेशी प्रभुत्व से पूर्ण स्वतंत्र होने का लक्ष्य अब पूर्ण हो चूका है. बदली हुई परिस्थितियों में कांग्रेस संगठन को नए सिरे से ढालना होगा, उसके लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी वर्तमान कांग्रेस संविधान को सुधारने की दृष्टि से कमेटी में निम्नलिखित लोगों को नियुक्त करती है. फिर यह कमेटी इस प्रकार सुधारे गए संविधान के मसौदे को खासतौर पर बुलाये गए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में पेश करेगी. और जब तक इस संविधान पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अपनी अंतिम स्वीकृति नहीं दे देती, तब तक वर्तमान संविधान के तहत सभी कांग्रेस चुनावों का कार्य स्थगित रहेगा”.

स्रोत – १. “भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन” (ज्ञान सदन प्रकाशन) जिसके (लेखक मुकेश बरनवाल) में प्रकाशित लेख “गाँधी जी की हत्या एवं सम्बन्धित अभियुक्त”
२. क्विंट हिंदी में प्रकाशित लेख (क्या गांधीजी वाकई कांग्रेस को खत्म करना चाहते थे?)


Comments

Disclaimer

The views expressed herein are the author’s independent, research-based analytical opinion, strictly under Article 19(1)(a) of the Constitution of India and within the reasonable restrictions of Article 19(2), with complete respect for the sovereignty, public order, morality and law of the nation. This content is intended purely for public interest, education and intellectual discussion — not to target, insult, defame, provoke or incite hatred or violence against any religion, community, caste, gender, individual or institution. Any misinterpretation, misuse or reaction is solely the responsibility of the reader/recipient. The author/publisher shall not be legally or morally liable for any consequences arising therefrom. If any part of this message is found unintentionally hurtful, kindly inform with proper context — appropriate clarification/correction may be issued in goodwill.