या तो इस्लाम अपनाओ, या कश्मीर छोड़ दो


कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के दुर्दिनों की शुरुआत १४ सितम्बर १९८९ से हुई, उस समय भारत में राजीव गाँधी प्रधानमन्त्री थे जबकि पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो थी. जब भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी. इसके बाद जस्टिस नीलकांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई. कश्मीरी हिंदुओं पर कहर बरपाने वाला आतंकवादी संगठन था जमात-ए-इस्लामी. जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया था. उसने नारा दिया था “हम सब एक, तुम सब मरो.”
एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- “सभी हिन्दू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़कर चले जाएँ.” कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया गया, जिसमें लिखा था “या तो मुस्लिम बन जाओ, या कश्मीर छोड़ दो.” २१ जनवरी १९९० की रात को करीब तीन लाख कश्मीरी हिन्दू रातोंरात घाटी छोड़कर भाग निकले, उस समय केंद्र में चंद्रशेखर सरकार थी.
कश्मीर में इसके बाद बड़े-बड़े नरसंहार हुए जिसमें डोडा नरसंहार (१४ अगस्त, १९९३), संग्रामपुर नरसंहार (२१ मार्च, १९९७), वंधामा नरसंहार( २५ जनवरी, १९९८) सहित प्रानकोट नरसंहार भी शामिल है जिसमें एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के २७ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, जिसमें ११ बच्चे भी शामिल थे. उसके बाद पौनी और रियासी के १००० हिन्दुओं ने पलायन किया था.
२० मार्च २००० को चित्ती सिंघपोरा में होला मना रहे ३६ सिक्खों को गुरुद्वारे के सामने गोलियों से भून दिया गया. २००२ में क्वासिम नगर में २९ हिन्दू मजदूरों को मार डाला गया जिसमें १३ महिलाएं और एक बच्चा शामिल था. २००३ में पुलवामा जिले के नदिमार्ग गाँव में २४ हिन्दुओं को मौत के घात उतार दिया गया. इसके अलावा जम्मू के रघुनाथ मन्दिर पर दो बार हमला किया गया जिसमें १५ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई.
कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को मारकर भगाने के लिए चलाये गए अभियान के बाद जम्मू के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में “हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ” अभियान चलाया गया. इस अभियान से पहले १९८४ से ८६ के बीच में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुस्लिम जिहादियों को भारतीय कश्मीर में बसाया गया और घाटी में जनसंख्या संतुलन मुस्लिम जिहादियों के पक्ष में बनाकर हिन्दुओं पर हमले शुरू करवाए गए. ये सब पाकिस्तान के इशारे पर हुआ. शुक्रवार, १६ जून, २०१७ को वेबदुनिया नामक एक हिन्दू वेबसाइट में छपे एक लेख “कश्मीर का काला” में लेखक ने लिखा है कि “हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ” नामक इस हिन्दू विरोधी अभियान में जिहादियों ने हिन्दुओं के कत्ल से पहले उन्हें भयानक अमानवीय यातनाएं भी दीं थीं.
मीडिया में प्रकाशित केंद्र सरकारों की रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर घाटी में ४३० मन्दिर थे जबकि अब इनमें से मात्र २६० सुरक्षित रह गए, १७० मन्दिरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. ५९४४२ पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं. हालाँकि गैर-सरकारी सूत्रों के अनुसार ९० के दशक में कश्मीर में करीब ६००० कश्मीरी पंडितों को मारा गया. करीब ७ लाख हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर किया गया.(हिंदी वेबसाइट वेबदुनिया में प्रकाशित एक लेख के अनुसार)
लेकिन विडम्बना देखिये कि इतने बड़े-बड़े नरसंहारों और बड़ी संख्या में पलायन के बावजूद उस समय की सरकारें, नेता, अधिकारी, लेखक, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और बात-बात पर फतवे देने वाले, तथाकथित भाईचारा और छद्म धर्मनिरपेक्ष दोगली मीडिया और कथित मानवाधिकार संगठन भी मुहं में दही जमाये बैठे रहे.
यहाँ यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि ३१ अक्टूबर, १९८४ से २ दिसम्बर, १९८९ तक केंद्र में राजीव गाँधी की सरकार थी. २ दिसम्बर, १९८९ से १० नवम्बर, १९९० तक स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे. १० नवम्बर १९९०, से २१ जून, १९९१ तक स्व. चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे. २१ जून, १९९१ से १६ मई, १९९६ तक स्व. पी.वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री रहे.   
विशेष नोट- इस लेख में छपी जानकारी विभिन्न वेबसाइट में प्रकाशित लेखों से संकलित की गई है. इस लेख का उद्देश्य किसी भी प्रकार से साम्प्रदायिक दुर्भावना फैलाना नहीं है. 

संकलन- मनोज चतुर्वेदी
स्रोत- दैनिक भास्कर, वेबदुनिया, यंगिस्तान 

Comments

Disclaimer

The views expressed herein are the author’s independent, research-based analytical opinion, strictly under Article 19(1)(a) of the Constitution of India and within the reasonable restrictions of Article 19(2), with complete respect for the sovereignty, public order, morality and law of the nation. This content is intended purely for public interest, education and intellectual discussion — not to target, insult, defame, provoke or incite hatred or violence against any religion, community, caste, gender, individual or institution. Any misinterpretation, misuse or reaction is solely the responsibility of the reader/recipient. The author/publisher shall not be legally or morally liable for any consequences arising therefrom. If any part of this message is found unintentionally hurtful, kindly inform with proper context — appropriate clarification/correction may be issued in goodwill.