जनसंख्या नियंत्रण के नायक की दर्दनाक मौत : संजय गाँधी की पुण्यतिथि पर विशेष
पूर्व
प्रधानमन्त्री स्व. इंदिरा गाँधी और फिरोज गाँधी के छोटे बेटे संजय गाँधी का जन्म
१४ दिसम्बर १९४६ को हुआ था. संजय गाँधी को तेज हवा में विमान उड़ाने का बहुत शौक
था.उनके पास विमान उड़ाने का लाइसेंस भी था. संजय गाँधी ने पहली बार २१ जून १९८० को
एक टू सीटर विमान “पिट्स एस २ए” को हवा में उड़ाया था. २३ जून १९८० को संजय गाँधी
ने दिल्ली फ़्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्पेक्टर सुभाष सक्सेना के साथ उड़ान भरी.
जिसमें कैप्टन सक्सेना पिट्स के अगले हिस्से में और संजय गाँधी पिछले हिस्से में
बैठे थे. 7 बजकर 58 मिनट पर विमान ने उड़ान भरी और फिर कभी उड़ान नहीं भर सका. अशोका
होटल के ऊपर कलाबाजियां खाता हुआ विमान मात्र १० मिनट बाद ही घर्र-घर्र करने लगा
था. माना जाता है कि विमान के इंजन ने काम करना बंद कर दिया था. और पिट्स तेजी से मुड़ा
और नाक के बल जमीन से जा टकराया. इस दुर्घटना में संजय गाँधी और कैप्टन सक्सेना दोनों
की मौत हो गई.
जब डाक्टर्स संजय एक क्षत-विक्षत शव को सही कर रहे थे तब इंदिरा गाँधी भी उनके साथ
खड़ी थीं. तीन घंटे के लगातार प्रयास के बाद जब संजय गाँधी का शव ठीक हो गया तब इंदिरा
गाँधी ने डाक्टर्स से कहा कि मुझे मेरे बेटे के साथ कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दिया
जाये. इंदिरा गाँधी अपने बेटे संजय गाँधी के शव के साथ एक बंद कमरे में करीब चार
मिनट तक रहीं थीं. अंतिम संस्कार के समय जब चिता में अग्नि देने के लिए राजीव ने
हाथ आगे बढ़ाया, तब इंदिरा गाँधी ने उन्हें इशारे से रुकने को कहा. उन्होंने कहा कि
संजय के शरीर से लिपटे कांग्रेस के झंडे को हटाया नहीं गया है. संजय गाँधी के दाह-संस्कार
के अगले दिन बाद ही इंदिरा गाँधी अपने ऑफिस में बैठी फाइल्स देख रही थीं.
जब
दुर्घटना हुई तब उस समय श्रीमती मेनका गाँधी घर पर थीं, जबकि राजीव गाँधी, उनकी
पत्नी सोनिया गाँधी और राहुल व् प्रियंका इटली में छुट्टियाँ मना रहे थे. दुर्घटना
की खबर सुनकर इंदिरा गाँधी अपने सचिव आर के धवन घटनास्थल पर पहुंची. रानी सिंह
अपनी किताब “सोनिया गाँधी : एन एक्स्ट्राऑर्डिनरी लाइफ” में लिखती हैं कि इंदिरा
गाँधी ने राम मनोहर लोहिया अस्पताल की और रुख किया. तब तक डाक्टर्स दोनों लोगों को
मृत घोषित कर चुके थे. इस मौके पर इंदिरा गाँधी ने अपनी आँखों पर काला चश्मा पहन
रखा था. पुपुल जयकर अपनी किताब “इंदिरा गाँधी” में लिखते हैं कि इस दुखद अवसर पर इंदिरा
गाँधी से जब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “इस कठिन समय में आपको बहुत साहस से काम
लेना होगा” तब श्रीमती गाँधी ने कोई प्रतिक्रिया न करते हुए चंद्रशेखर को एक तरफ
ले जाते हुए कहा “मैं कई दिनों से आपसे असम के विषय में बात करना चाह रही थी, वहां
हालत बहुत गम्भीर हैं.” जब चंद्रशेखर ने कहा कि इस पर हम बाद में बात कर सकते हैं
तब इंदिरा गाँधी ने कहा- “नहीं-नहीं, ये बहुत महत्वपूर्ण मसला है”.
पुपुल
जयकर इसी किताब में लिखते हैं कि “शाम को जब अटल बिहारी बाजपेयी, चंद्रशेखर और
हेमवंती नन्दन बहुगुणा मिले तो वाजपेयी ने टिप्पणी की, “या तो उन्होंने दुःख को
आत्मसात कर लिया है और या फिर वो पत्थर की बनी हैं. वो शायद या सिद्ध करना चाह रही
हैं कि इस कठिन घड़ी में भी वह असम और भारत की समस्याओं के बारे में सोच रही हैं.”
अस्पताल
में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह जो कि उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, पहुंचे.
तब इंदिरा गाँधी ने उनसे कहा कि “आप तुरंत लखनऊ वापस जाइये वहां इससे भी
महत्वपूर्ण मसले हल करने के लिए पड़े हैं.” यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मिडिया के हवालों
से ये भी सामने आया था कि इंदिरा गाँधी दुर्घटना स्थल से एक चाबी का गुच्छा और एक
डायरी लेकर गई थीं. जिसका बाद में कोई स्पष्टीकरण नहीं हो पाया.
एक
अंग्रेजी अख़बार ने विकिलीक्स के हवाले से खुलासा किया था कि १९७५ की इमरजेंसी के
दौरान पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे संजय गाँधी की हत्या की तीन बार कोशिश हुई थी.
संकलन-
मनोज चतुर्वेदी
स्रोत- बीबीसी हिंदी, नवोदय
टाइम्स, नवभारत टाइम्स 






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