जब महात्मा गाँधी के ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल गाँधी ने इस्लाम धर्म अपनाया था
महात्मा गाँधी के सबसे बड़े बेटे हरिलाल गाँधी थे. उनका जन्म साल 1888 को नई दिल्ली में हुआ था और उनका देहांत 18 जून को 1948 को हुआ. हरीलाल ने गुलाब गांधी से शादी की थी. दोनों के 5 बच्चे थे. 2 बेटियां रानी और मनु, 3 बेटे कांतिलाल, रसिकलाल और शांतिलाल. रसिकलाल और शांतिलाल की कम उम्र में ही मौत हो गई थी. हरीलाल के 4 पोते- पोतियां थे. अनुश्रेया, प्रबोध, नीलम और नवमालिका. महात्मा गांधी के सबसे बड़े बेटे हरिलाल गांधी धर्मांतरण कर मुसलमान हो गए थे ! हरिलाल गाँधी २८ मई १९३६ को नागपुर में अत्यंत गोपनीय ढंग से मुस्लमान बनाये गये और उनका नाम अब्दुल्लाह गाँधी रखा गया ! २९ मई को बम्बई की जुम्मा मस्जिद में उनके मुस्लमान बनने की विधिवत घोषणा की गई।
इसके पूर्व यह समाचार फैला था कि वे ईसाई होने वाले हैं, किन्तु हरिलाल गाँधी ने
स्वयँ ईसाई न होने की घोषणा की और कहा कि वे अपने पिता महात्मा गाँधी से मतभेद
होने के कारण मुसलमान हो गये हैं।
हरिलाल के धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन जाने पर २ जून को बंगलौर में महात्मा
गाँधी जी ने कहा था - "पत्रों में समाचार
प्रकाशित हुआ हैं कि मेरे पुत्र हरिलाल के धर्म परिवर्तन की घोषणा पर जुम्मा
मस्जिद में मुस्लिम जनता ने अत्यंत हर्ष प्रकट किया हैं। यदि उसने ह्रदय से और
बिना किसी सांसारिक लोभ के इस्लाम धर्म को स्वीकार किया होता तो मुझे कोई आपत्ति
नहीं थी। क्यूंकि मैं इस्लाम को अपने धर्म के समान ही सच्चा समझता हूँ ! किन्तु
मुझे संदेह हैं कि वह धर्म परिवर्तन ह्रदय से तथा बगैर किसी सांसारिक लाभ की आशा
के किया गया हैं।" (सन्दर्भ-सार्वदेशिक पत्रिका जुलाई अंक १९३६)
जिन मुसलमानों ने हरिलाल के मुसलमान बनने और उसकी बाद की
हरकतों में रूचि दिखाई, उनको संबोधन करते हुए कस्तूरबा बा ने लिखा था –
"आप लोगों के व्यवहार को
मैं समझ नहीं सकी। मुझे तो सिर्फ उन लोगों से कहना है, जो इन दिनों मेरे पुत्र
की वर्तमान गतिविधियों में तत्परता दिखा रहे हैं। मैं जानती हूँ और मुझे इससे
प्रसन्नता भी है कि हमारे चिर-परिचित मुसलमान मित्रों और विचारशील मुसलमानों ने इस
आकस्मिक घटना की निंदा की है। आज मुझे उच्चमना डॉ अंसारी की उपस्थित का अभाव बहुत
खल रहा है, वे यदि होते तो आप लोगों
और मेरे पुत्र को सत्परामर्श देते, मगर उनके समान ही और भी प्रभावशाली तथा उदार मुसलमान हैं, यद्यपि उनसे मैं सुपरिचित
नहीं हूँ, जोकि मुझे आशा है, तुमको उचित सलाह देंगे। मेरे
लड़के के इस नाममात्र के धर्म परिवर्तन से उसकी आदतें बद से बदतर हो गई हैं। आपको
चाहिए कि आप उसको उसकी बुरी आदतों के लिए डांटे और उसको उलटे रास्ते से अलग करें।
परन्तु मुझे यह बताया गया है कि आप उसे उसी उलटे मार्ग पर चलने के लिए बढ़ावा देते
हैं।
कुछ लोगों ने मेरे लड़के को "मौलवी" तक कहना शुरू कर दिया है। क्या
यह उचित है? क्या आपका धर्म एक शराबी
को मौलवी कहने का समर्थन करता है? मद्रास में उसके असद आचरण के बाद भी स्टेशन पर कुछ मुसलमान
उसको विदाई देने आये। मुझे नहीं मालूम उसको इस प्रकार का बढ़ावा देने में आप क्या
ख़ुशी महसूस करते हैं। यदि वास्तव में आप उसे अपना भाई मानते हैं, तो आप कभी भी ऐसा नहीं
करेगे, जैसा कि कर रहे हैं, वह उसके लिए फायदेमंद
नहीं हैं। पर यदि आप केवल हमारी फजीहत करना चाहते हैं, तो मुझे आप लोगो को कुछ
भी नहीं कहना हैं। आप जितनी भी बुरे करना चाहे कर सकते हैं। लेकिन एक दुखिया और
बूढ़ी माता की कमजोर आवाज़ शायद आप में से कुछ एक की अन्तरात्मा को जगा दे। मेरा यह
फर्ज है कि मैं वह बात आप से भी कह दूँ जो मैं अपने पुत्र से कहती रहती हूँ। वह यह
है कि परमात्मा की नज़र में तुम कोई भला काम नहीं कर रहे हो।“
अपने नये अवतार में हरिलाल : इस्लाम अपनाने के बाद हरिलाल
गाँधी उर्फ़ अब्दुल्ला गाँधी ने अनेक स्थानों का दौरा किया एवं अपनी तकरीरों में
इस्लाम और पाकिस्तान की वकालत की। कानपुर में एक सभा में भाषण देते हुए हरिलाल ने
यहाँ तक कहा कि “अब मैं हरिलाल नहीं बल्कि अब्दुल्ला हूँ। मैं शराब छोड़ सकता हूँ लेकिन इसी
शर्त पर कि बापू और बा दोनों इस्लाम कबूल कर लें।”
हरीलाल ने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर
अब्दुल्ला रख लिया. इस दौरान वे कई दिनों तक मध्यप्रदेश के सतना में ही रहे और
वहीं पर भैसा खाना के नजदीक स्थित एक मस्जिद में रोजाना सुबह नमाज पढने जाया करते
थे. वह मस्जिद आज भी वहां मौजूद है. वे करीब तीन महीनों तक यहाँ मैथलीशरण चौक में
सेठ मौला बख्स की इमारत में ठहरे हुए थे.
तभी एक घटना घटी, जिसने हरिलाल को उसकी
गलती का अहसास करा दिया ! हरिलाल गाँधी उर्फ़ अब्दुल्लाह गाँधी का मन अब वापिस हरिलाल
बनने को कर रहा था परन्तु अभी भी मन में कुछ संशय बचे थे। उसी काल में उन्हें
आर्यसमाज बम्बई के श्री विजयशंकर भट्ट द्वारा वेदों की इस्लाम पर श्रेष्ठता विषय
पर दो व्याख्यान सुनने को मिले और उनके मन में बचे हुए बाकि संशयों की भी निवृति
हो गई। मुम्बई में खुले मैदान में, हजारों की भीड़ के सामने, अपनी माँ कस्तूरबा और अपने भाइयों के समक्ष आर्य समाज
द्वारा अब्दुल्लाह को शुद्ध कर वापिस हरिलाल गाँधी बनाया गया।
हरिलाल गांधी द्वारा अपनी शुद्धि के समय दिया गया वक्तव्य
“कुछ आदमियों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैंने पुन: क्यूँ धर्म परिवर्तन
किया। बहुत से हिन्दू और मुस्लमान बहुत सी बातें सोच रहे होगे परन्तु मैं अपना दिल
खोले बगैर नहीं रह सकता हूँ। वर्त्तमान में जो "धर्म" कहा गया है, उसमें न केवल उसके
सिद्धांत होते हैं वरन उसमें उसकी संस्कृति और उसके अनुयायियों का नैतिक और
सामाजिक जीवन भी सम्मिलित होता है। इन सबके तजुर्बे के लिए मैंने मुसलमानी धर्म
ग्रहण किया था। जो कुछ मैंने देखा और अनुभव किया है उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ
कि प्राचीन वैदिक धर्म के सिद्धांत, उसकी संस्कृति, भाषा, साहित्य और उसके अनुयायियों का नैतिक और सामाजिक जीवन
इस्लाम और देश के दूसरे प्रचलित मतों के सिद्धांत और अनुयायियों के मुकाबले में
किसी प्रकार भी तुच्छ नहीं है, वरन उच्च ही है।
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म के वास्तविक रूप
को यदि हम समझे तो द्रढ़ता पूर्वक कह सकते हैं कि इस्लाम और दूसरे मतों में जो
सच्चाई और सार्वभौम सिद्धांत मिलते हैं वे सब वैदिक धर्म से आये हैं इस प्रकार
दार्शनिक दृष्टि से सत्य की खोज के अलावा धर्म परिवर्तन और कोई चीज नहीं हैं। जिस
भांति सार्वभौम सच्चाइयों अर्थात वैदिक धर्म का सांप्रदायिक असूलों के साथ मिश्रण
हो जाने से रूप विकृत हो गया, इसी भांति भारत के कुछ मुसलमानों के साथ अपने संपर्क के
आधार पर मैं कह सकता हूँ कि वे लोग मुहम्मद साहिब कि आज्ञाओं और मजहबी उसूलों से
अभी बहुत दूर हैं।
जहाँ तक मुझे मालूम है हज़रात ख़लीफ़ा उमर ने दूसरे धर्म वालो के धर्म संस्थाओं
और संस्थाओं को नष्ट करने का कभी हुकुम नहीं दिया था, जो वर्त्तमान में हमारे
देश की मुख्य समस्याएँ हैं।
इस सब परिस्थितियों और बातों पर विचार करते हुए मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि
"मैं" आगे इस्लाम की किसी प्रकार भी सेवा नहीं कर सकता हूँ।
जिस प्रकार गिरा हुआ आदमी चढ़कर अपनी असली जगह पर पहुँच जाता है इसी प्रकार
महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म की सच्चाइयों को जानने और उन तक
पहुँचने की मैं कोशिश कर रहा हूँ। ये सच्चाइयाँ मौलिक, स्पष्ट स्वाभाविक और
सार्वभौम हैं तथा सूरज की किरणों की तरह देश, जाति और समाज के भेदभाव से शून्य तमाम मानव समाज के लिए
उपयोगी हैं। इन सच्चाईयों और आदर्शों के विषय में स्वामी दयानंद द्वारा उनकी
पुस्तकों सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका और
दूसरी किताबों में बिना किसी भय वा पक्ष के व्याख्या की गई है। इस प्रकार मैं
स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं की कृपा और आर्यसमाज के उद्घोष से अपने धर्म
रुपी पिता और संस्कृति रुपी माता के चरणों में बैठता हूँ। यदि मेरे माता-पिता, सम्बन्धी और दोस्त इस खबर
से प्रसन्न हो तो मैं उनके आशीर्वाद की याचना करता हूँ।
अंत में प्रार्थना करता हूँ प्रभु , मेरी रक्षा करो, मुझ पर दया करो। और मुझे क्षमा करो। मैं मुम्बई आर्यसमाज के
कार्यकर्ताओं और उपस्थित सज्जनों को सहृदय धन्यवाद देता हूँ।
सन्दर्भ : 'तमसो माँ ज्योतिर्मय' बम्बई हरिलाल गांधी१४-११-३६(सन्दर्भ- सार्वदेशिक
मासिक दिसंबर १९३६)
हरीलाल के इस्लाम धर्म कबूल करने के कुछ समय
पश्चात ही उन्होंने वापस हिन्दू धर्म अपना लिया था. लेकिन बापू की नाराजगी को वे
बदल नहीं पाए. हरीलाल अपने आखिरी समय में बहुत ही बुरी हालत में थे वे अपने पिता
के अंतिम संस्कार में नशे में चूर होकर पहुंचे थे. अपनी जिंदगी के आखिरी समय तक वे
नशे में ही रहे. अंततः उनकी मृत्यु 18 जून 1948 को मुंबई में हो गई. हरीलाल गांधी की
जिंदगी पर एक हिंदी फिल्म ‘गांधी माय फादर’ भी बन चुकी है.






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